Advertisement

Updated April 17th, 2024 at 14:11 IST

भगवान और विज्ञान का मिलन, ग्राउंड फ्लोर पर रामलला, फिर कैसे हुआ सूर्य तिलक? जानें इसके पीछे का साइंस

Ram Lalla Surya Tilak: अयोध्या में राम नवमी के मौके पर रामलला का सूर्य तिलक हुआ। सूर्य की किरणें भगवान राम के मस्तक पर पड़ी कैसे? जानें इसके पीछे का साइंस

Reported by: Ritesh Kumar
ram lalla surya tilak in ayodhya ram mandir
रामलला का सूर्य तिलक के पीछे का साइंस | Image:republic
Advertisement

Science Behind Ram Lalla Surya Tilak: 22 जनवरी 2024 के बाद एक बार फिर वो अद्भुत नजारा देखने को मिला जिससे पूरा भारत राममय हो गया। जी हां, 17 अप्रैल 2024 को रामनवमी के महाउत्सव पर अयोध्या में अलौकिक दृश्य दिखा। सूर्य की किरणें राम लला के मस्तक पर पड़ी और पूरे देश में राम नाम की गूंज होने लगी। अयोध्या में राम लला का सूर्य तिलक हुआ। प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के बाद पहली बार रामनवमी पर प्रभु राम का धूम-धाम से जन्मदिन मनाया गया।

लेकिन इस बीच बीच देशवासी ये जानने के लिए भी बेकरार हैं कि आखिर ये कौन का टेक्निक है जिसके कारण अयोध्या में राम लला के मस्तक पर सीधे सूर्य की किरणें पड़ी। आइए विस्तार से बताते हैं।

Advertisement

सूर्य तिलक के पीछे का साइंस

अत्याधुनिक वैज्ञानिक विशेषज्ञता का उपयोग करते हुए, 5.8 सेंटीमीटर प्रकाश की किरण देवता के माथे पर गिरी। इस उल्लेखनीय घटना को प्राप्त करने के लिए, एक विशेष उपकरण डिजाइन किया गया था। राम मंदिर में तैनात दस प्रतिष्ठित भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने राम नवमी पर इस शुभ आयोजन की सफलता सुनिश्चित की। दोपहर 12 बजे से लगभग 3 से 3.5 मिनट तक, दर्पण और लेंस के संयोजन का उपयोग करके सूर्य की रोशनी को मूर्ति के माथे पर सटीक रूप से निर्देशित किया गया था।

Advertisement

मंदिर ट्रस्ट द्वारा नियुक्त, एक प्रमुख सरकारी संस्थान के वैज्ञानिकों ने दर्पण और लेंस से युक्त एक परिष्कृत उपकरण तैयार किया। यह तंत्र, जिसे आधिकारिक तौर पर 'सूर्य तिलक तंत्र' कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग उपलब्धि का प्रतीक है।

बता दें कि 'सूर्य तिलक' तंत्र के विकास में सीबीआरआई, रूड़की और भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईएपी), बेंगलुरु के वैज्ञानिकों के बीच सहयोग शामिल था। एक विशेष गियरबॉक्स का उपयोग करके और परावर्तक दर्पणों और लेंसों का उपयोग करके, टीम ने सौर ट्रैकिंग के स्थापित सिद्धांतों का उपयोग करके मंदिर की तीसरी मंजिल से आंतरिक गर्भगृह (गर्भ गृह) तक सूर्य की किरणों के सटीक संरेखण को व्यवस्थित किया। भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के तकनीकी सहयोग और बेंगलुरु स्थित कंपनी ऑप्टिका की विनिर्माण विशेषज्ञता ने परियोजना के कार्यान्वयन में और मदद की।

आपको बताते चलें कि इसी तरह का 'सूर्य तिलक' तंत्र कुछ जैन मंदिरों और कोणार्क के सूर्य मंदिर में पहले से मौजूद है, लेकिन उन्हें अलग तरीके से डिजाइन किया गया है।

Advertisement

इसे भी पढ़ें: 500 साल का इंतजार...अयोध्या में विराजमान हुए रामलला तो राममय हुआ देश, PM मोदी ने ऐसे मनाया जश्न


 

Advertisement

Published April 17th, 2024 at 14:11 IST

आपकी आवाज. अब डायरेक्ट.

अपने विचार हमें भेजें, हम उन्हें प्रकाशित करेंगे। यह खंड मॉडरेट किया गया है।

Advertisement

न्यूज़रूम से लेटेस्ट

20 घंटे पहलेे
21 घंटे पहलेे
2 दिन पहलेे
2 दिन पहलेे
3 दिन पहलेे
Advertisement
Advertisement
Advertisement
Whatsapp logo