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Updated March 29th, 2024 at 13:30 IST

मुख्तार अंसारी की सियासत; विरासत में मिली राजनीति, कभी निर्दलीय तो कभी खुद की पार्टी बना जीते चुनाव

मुख्तार अंसारी 5 बार उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य बने। 2007, 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव मुख्तार अंसारी ने जेल में रहते हुए लड़े थे।

Reported by: Dalchand Kumar
Mukhtar Ansari
मुख्‍तार अंसारी | Image:PTI/File
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Mukhtar Ansari Politics: अपराध की दुनिया से राजनीति में कदम रखने वालों में एक नाम मुख्तार अंसारी का भी है। लंबी-चौड़ी कद-काठी और दमदार आवाज वाले बाहुबली मुख्तार अंसारी का पूर्वांचल में बड़ा नाम था। इसीलिए रसूख और रुतबे के आगे सियासत के अखाड़े में भी मुख्तार को कोई मात नहीं दे पाया। मुख्तार अंसारी को सियासत विरासत के रूप में मिली थी, क्योंकि दादा-बाप से लेकर भाई तक राजनीति के इर्द-गिर्द जुड़े थे। इससे मुख्तार की लोगों के बीच पकड़ और मजबूत बनी थी। पूर्वांचल धरती पर प्रभावशाली परिवार में जन्मे मुख्तार अंसारी की अब मौत हो चुकी है।

लंबे समय से जेल में बंद माफिया मुख्तार अंसारी की तबीयत बिगड़ी थी। गुरुवार देर शाम उन्हें बांदा के रानी दुर्गावाती मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया, लेकिन डॉक्टरों की तमाम कोशिशें भी काम नहीं आईं। दिल का दौरा पड़ने से मुख्तार अंसारी की मौत हो गई। मेडिकल बुलेटिन में कहा गया, ''गुरुवार को रात 8:25 बजे जेलकर्मी बेहोशी की हालत में मुख्तार अंसारी को रानी दुर्गावती मेडिकल कॉलेज बांदा के आकस्मिक विभाग में लाए। 9 चिकित्सकों की टीम ने मुख्तार का तुरंत इलाज शुरू किया,  लेकिन भरसक प्रयासों के बावजूद दिल का दौरा पड़ने से मरीज की मौत हो गई।'

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15 साल की उम्र में अपराध की दुनिया में कदम रखा

साल 1978 की शुरुआत में महज 15 साल की उम्र में अंसारी ने अपराध की दुनिया में कदम रखा। अंसारी खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 506 (आपराधिक धमकी) के तहत गाजीपुर के सैदपुर थाने में पहला मामला दर्ज किया गया था। लगभग एक दशक बाद 1986 में, जब तक वो ठेका माफियाओं के बीच एक जाना-पहचाना चेहरा बन चुका था, तब तक उसके खिलाफ गाजीपुर के मोहम्मदाबाद थाने में भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत एक और मामला दर्ज हो चुका था। अगले एक दशक में वो अपराध की दुनिया में कदम जमा चुका था और उसके खिलाफ जघन्य अपराध के तहत कम से कम 14 और मामले दर्ज हो चुके थे। हालांकि अपराध में बढ़ता अंसारी का कद राजनीति में उसके प्रवेश में बाधा नहीं बना।

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मुख्तार को विरासत में मिली सियासत

मुख्तार अंसारी के पहले उनका परिवार राजनीति से जुड़ा रहा। मुख्तार अंसारी के दादा मुख्‍तार अहमद अंसारी किसी जमाने में महात्‍मा गांधी के करीबी रहे थे। वो देश की आजादी के संघर्ष में महात्मा गांधी का साथ देने वाले नेता के रूप में जाने जाते थे। हालांकि उसके पहले मुख्‍तार अहमद अंसारी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष (1926-27 में) रह चुके थे। मुख्‍तार अहमद की विरासत को उनके बेटे सुभानउल्ला अंसारी (मुख्तार अंसारी के पिता) ने आगे बढ़ाया। वो स्थानीय राजनीति में सक्रिय रहे। सुभानउल्ला अंसारी के छोटे भाई हामिद अंसारी भी सक्रिय राजनीति में आए और बाद में वो देश के उपराष्ट्रपति भी बने थे। फिर अगली पीढ़ी में मुख्तार अंसारी बड़े भाई अफजाल अंसारी आए।

अफजाल अंसारी गाजीपुर की मोहम्मदाबाद विधानसभा से लगातार 5 बार (1985 से 1996 तक) विधायक रहे। 2004 में गाजीपुर से अफजाल अंसारी ने सांसदी का चुनाव जीता। मुख्तार के दूसरे भाई सिबकातुल्ला भी मोहम्मदाबाद से दो बार (2007 और 2012) विधायक रह चुके हैं। बीच में मुख्तार अंसारी भी सक्रिय राजनीति में आ गए और पहली बार 1996 में मऊ से विधानसभा का चुनाव जीता था। अलग-अलग दलों के टिकट पर मुख्तार अंसारी 5 बार विधायक बने।

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मुख्तार अंसारी की सियासत

1996 विधानसभा चुनाव: बीएसपी के टिकट पर मुख्तार अंसारी ने चुनाव लड़ा और करीब 26 हजार वोटों के अंतर से जीत हासिल की। मुख्तार की ये पहली जीत थी। उन्होंने बीजेपी के विजय प्रताप सिंह को हराया था।
2002: मुख्तार अंसारी ने इस बार विधानसभा चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था। मुकाबला समता पार्टी की सीता से था। मुख्तार ने सीता को 33 हजार वोटों से हराया था।
2007: मुख्तार अंसारी एक बार फिर निर्दलीय खड़े हुए। इस बार उनका मुकाबला बीएसपी के प्रत्याशी विजय प्रताप से था। 7 हजार वोटों से जीत मुख्तार को मिली। 
2012: विधानसभा चुनाव से पहले मुख्तार अंसारी अपनी खुद की पार्टी बना चुके थे। उन्होंने कौमी एकता दल नाम से पार्टी बनाई थी और खुद पार्टी के सिंबल पर चुनावी मैदान में उतरे। खुद की पार्टी बनाकर चुनाव लड़े मुख्तार को उस समय करीब 6 हजार वोटों से जीत मिली थी।
2017: चुनाव से पहले मुख्तार अपनी पार्टी का बीएसपी में विलय कर चुके थे और ऐसे में उन्हें बीएसपी के टिकट पर फिर से चुनाव लड़ना पड़ा था। 2017 में मुख्तार ने करीब साढ़े 8 हजार वोटों के अंतर से सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रत्याशी महेंद्र राजभर को हराया था।

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जेल में रहते आखिरी 3 चुनाव जीते

सबसे अहम बात ये कि 2007, 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव मुख्तार अंसारी ने जेल में रहते हुए लड़े थे। क्योंकि 2005 में गाजीपुर जिले में तत्कालीन विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के बादमुख्तार अंसारी जेल में बंद थे। ऐसे में आखिरी तीन चुनाव मुख्तार ने देश की अलग-अलग जेलों में बंद रहते हुए लड़े और जनता उन्हें वोट देकर चुनाव में जिताए भी थे। 

कभी बसपा, कभी निर्दलीय तो कभी खुद की पार्टी बनाकर चुनाव लड़े मुख्तार अंसारी 5 बार उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य बने। हालांकि उनका संसद पहुंचने का सपना कभी पूरा नहीं हुआ। मुख्तार अंसारी ने दो बार वाराणसी से लोकसभा का चुनाव लड़ा था। हालांकि जीत नहीं मिली। बहरहाल, मुख्तार अंसारी की मौत के साथ अपराध के एक युग और राजनीति के साथ उसके गठजोड़ के एक अध्याय का भी अंत हो चुका है।

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Published March 29th, 2024 at 13:06 IST

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