Updated May 9th, 2024 at 15:57 IST
'मुसलमान लिव-इन-रिलेशनशिप के अधिकार का दावा नहीं कर सकते...', इलाहाबाद हाई कोर्ट की बड़ी टिप्पणी
Allahabad High Court: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने एक मामले में टिप्पणी करते हुए ये बातें कही हैं।
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Allahabad High Court: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने एक मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि मुसलमान लिव-इन रिलेशनशिप के अधिकारों का दावा नहीं कर सकते क्योंकि इस्लाम किसी विवाहित व्यक्ति के लिए लिव-इन रिलेशनशिप की अनुमति नहीं देता है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने क्या कहा?
न्यायमूर्ति एआर मसूदी और न्यायमूर्ति एके श्रीवास्तव की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के निवासी स्नेहा देवी और मोहम्मद शादाब खान की रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि वे लिव-इन रिलेशनशिप में हैं लेकिन महिला के परिवार ने शादाब के खिलाफ FIR दर्ज कराई थी और आरोप लगाया था कि उसने उनकी बेटी का अपहरण कर लिया और उससे शादी कर ली।
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सुनवाई के दौरान अदालत के सामने आया कि शादाब की शादी 2020 में फरीदा खातून से हुई जिससे उसे एक बच्ची भी है। फरीदा इस समय अपने माता पिता के साथ मुंबई में रह रही है। मामले के तथ्यों पर गौर करने के बाद अदालत ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 21 उन प्रकार के मामलों में सुरक्षा का अधिकार नहीं प्रदान करता जिनमें रूढ़ियां और प्रथायें भिन्न-भिन्न मत वाले व्यक्तियों को कोई कृत्य करने से मना करती हों। क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 13 रूढ़ियों और प्रथाओं को भी कानून मानता है। सुरक्षा पाने का कोई अधिकार नहीं
अदालत ने कहा कि चूंकि इस्लाम शादीशुदा मुसलमान व्यक्ति को ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रहने की इजाजत नहीं देता अतः याचिकाकर्ताओं को ‘लिव इन रिलेशन’ में रहने के दौरान सुरक्षा पाने का कोई अधिकार नहीं है।
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अदालत ने कहा कि संवैधानिक नैतिकता और सामाजिक नैतिकता में सामंजस्य बनाये जाने की आवश्यकता है ताकि समाज में शांति कायम रह सके और सामाजिक ताना बाना बना रहे।
(PTI इनपुट के साथ)
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Published May 9th, 2024 at 15:51 IST
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