Updated May 4th, 2024 at 17:54 IST
कांग्रेस जिस रायबरेली को मान रही मजबूत किला, वहां BJP पहले ही मार चुकी सेंध, राहुल के लिए कितना सेफ?
रायबरेली का इतिहास कहता है कि 1977, 1996 और 1998 के 3 चुनावों को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस ने यहां दशकों से राज किया है। अभी राहुल गांधी को मैदान में उतारा है।
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Rahul Gandhi in Raebareli: रायबरेली गांधी परिवार के लिए सबसे सुरक्षित लोकसभा सीट रही है। पिछले 2 दशक से सोनिया गांधी रायबरेली का नेतृत्व करती आई हैं। राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी और दादा फिरोज गांधी भी रायबरेली का प्रतिनिधित्व कर चुके थे। शायद इसीलिए अमेठी को छोड़कर राहुल गांधी ने गांधी परिवार की परंपरागत सीट रायबरेली से चुनाव लड़ना अपने लिए मुफीद समझा है। वैसे पहले अमेठी सीट भी कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी, लेकिन 2019 में मिली करारी शिकस्त ने यहां से गांधी परिवार को नाम मिटा दिया। नतीजा ये है कि गांधी परिवार का कोई सदस्य तकरीबन 25 बरस के बाद अमेठी से चुनाव नहीं लड़ रहा है। खुद 15 साल अमेठी से सांसद रहे राहुल गांधी ने इस बार रायबरेली को चुना है।
राहुल गांधी शुक्रवार को अपनी मां सोनिया गांधी, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और बहन प्रियंका गांधी की मौजूदगी में रायबरेली से पर्चा भरकर आए। अमेठी के बजाय रायबरेली से चुनाव लड़ने का निर्णय लेकर राहुल गांधी ने चुनावी बिसात पर जो चाल चली है, उससे उम्मीद यही होगी कि उनके विरोधी चारों खाने चित्त हो जाएंगे। हालांकि रायबरेली को कांग्रेस राहुल गांधी के लिए जिनकी सेफ सीट मानकर चल रही है, उसकी संभावनाएं जमीनी स्तर पर कमतर दिखाई देती हैं। वजह ये है कि 2019 के मुकाबले 2024 में रायबरेली के भीतर गांधी परिवार और कांग्रेस की पकड़ के बावजूद समीकरण काफी बदल चुके हैं।
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रायबरेली में BJP पहले ही मार चुकी सेंध
भारतीय जनता पार्टी रायबरेली में राहुल गांधी के उतरने से पहले ही बड़ी सेंधमारी कर चुकी है। अदिति सिंह, जो रायबरेली सदर सीट से विधानसभा का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर जीतकर आई थीं। वो इस वक्त भारतीय जनता पार्टी का हिस्सा है। अदिति सिंह के पिता अखिलेश सिंह का रायबरेली सदर सीट पर दबदबा रहा था। उसके बाद अदिति सिंह अपने पिता की सियासत को आगे बढ़ा रही हैं।
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रायबरेली में बीजेपी का पक्ष इसलिए और मजबूत हो जाता है कि ऊंचाहार से समाजवादी पार्टी के विधायक मनोज पांडे के बेटे बीजेपी में आ चुके हैं। मनोज पांडेय ने बीजेपी ज्वाइन तो नहीं की है, लेकिन राज्यसभा चुनाव में भगवा पार्टी के पक्ष में वोटिंग करके उन्होंने अपना झुकाव जरूर स्पष्ट कर दिया था। अब अदिति सिंह के अलावा मनोज पांडे ने बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाया, तो राहुल गांधी के लिए चुनौती और कड़ी हो जाएगी।
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रायबरेली में घटता वोटबैंक कांग्रेस के लिए चिंता
पिछले कुछ चुनावों में घटता वोटबैंक भी कांग्रेस के लिए बड़ी मुसीबत बन सकता है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले 3 चुनावों से रायबरेली में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 15 फीसदी से ज्यादा घट चुका है। सोनिया गांधी को 2009 में 72 फीसदी, 2014 में 63.80 फीसदी और 2019 में 55.80 फीसदी वोट हासिल हुए, जो कांग्रेस के घटते वोटबैंक को साफ दिखाता है।
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रायबरेली का जातिगत समीकरण क्या है?
अब अगर रायबरेली के जातीय समीकरण को समझा जाए तो इस लोकसभा क्षेत्र में तकरीबन 35 फीसदी दलित मतदाता बताए जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, यहां ब्राह्मण, यादव और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग बराबरी (12-12 फीसदी) वाली है। उसके अलावा 5 फीसदी राजपूत मतदाता, 6 फीसदी लोधी और 4 फीसदी कुर्मी मतदाता बताए जाते हैं। हालांकि रायबरेली के जातिगत आंकड़ों को लेकर ये जानकारी ठोस नहीं है।
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रायबरेली में कांग्रेस का इतिहास क्या रहा है?
रायबरेली का चुनावी इतिहास कहता है कि 3 चुनावों (1977, 1996 और 1998) को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस ने यहां दशकों से राज किया है। फिरोज गांधी ने रायबरेली में पहली बार में ही कांग्रेस की मजबूत नींव रखी थी। शुरुआत के दो चुनावों 1952 और 1957 में फिरोज गांधी ने रायबरेली पर कब्जा किया। 1960 के उपचुनाव में रायबरेली से कांग्रेस के आरपी सिंह जीते तो 1962 के चुनाव में कांग्रेस नेता बैजनाथ कुरील ने कब्जा जमाया। उसके बाद फिरोज गांधी की पत्नी और राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी ने यहां कांग्रेस को और मजबूती दी। 1967, 1971 और 1980 के चुनाव में इंदिरा ने जनता के बीच अपनी जगह बनाकर सफलता हासिल की।
1977 में पहली बार कांग्रेस के हाथ से रायबरेली सीट जनता पार्टी के राज नारायण ने छीनी थी। राज नारायण ने इंदिरा गांधी को हराया था, जो उस समय देश की प्रधानमंत्री थीं। इसके बाद इंदिरा गांधी की बहू सोनिया गांधी ने राजनीति में एंट्री ली और 1980 में रायबरेली से चुनाव जीता।
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बाद में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के करीबी माने जाने वाले अरुण नेहरू ने 1980 के उपचुनाव और 1984 के आम चुनाव में रायबरेली पर कांग्रेस का परचम लहराए रखा। इसी तरह आगे भी अरुण नेहरू से लेकर शीला कौल तक रायबरेली सीट गांधी परिवार के सदस्यों और उनके करीबियों के पास ही रही। शीला कौल इंदिरा गांधी की रिश्तेदार थीं, जिन्होंने 1989 और 1991 में रायबरेली का संसद में नेतृत्व किया। 1999 में सतीश शर्मा को कांग्रेस के टिकट पर रायबरेली से संसद जाने का मौका मिला।
बीच में 1996 और 1998 में बीजेपी के अशोक सिंह ने रायबरेली में कमल खिलाया था। ये आखिरी मौका था, जब किसी गैर-कांग्रेस नेता को रायबरेली की जनता ने चुना था। 1999 के बाद से सतीश शर्मा और फिर सोनिया गांधी रायबरेली का नेतृत्व करती आई हैं।
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राहुल के लिए कितना सेफ?
अपने इतिहास को देखकर कांग्रेस जरूर राहुल गांधी के लिए रायबरेली को मजबूत मान रही है। राहुल को रायबरेली से चुनाव मैदान में उतारने के पीछे पार्टी का आकलन भी होगा कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष के लिए रायबरेली अमेठी से बेहतर और सुरक्षित सीट है। बहरहाल, राहुल गांधी के लिए रायबरेली सीट कितनी सेफ है, ये यहां की जनता के फैसले के बाद ही पता चलेगा।
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Published May 4th, 2024 at 15:53 IST
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