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Updated March 8th, 2019 at 12:23 IST

अयोध्या विवाद पर कोर्ट का सुप्रीम आदेश, यहां पढ़ें- फैसले की 10 बड़ी बातें

इन सबके बीच सवाल ये है कि क्या वाकई मध्यस्थता से निकलेगा मंदिर निर्माण का रास्ता? क्या 8 हफ्तों में सभी पक्ष मध्यस्थता के फैसले से एकमत होंगे?

Reported by: Ayush Sinha
| Image:self
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सैकड़ों साल पुराने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर छिड़ा घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस बीच शुक्रवार को देश की सर्वोच्च अदालन ने विवाद के निपटारे के लिए मध्यस्थता के लिए सौंप दिया है। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जस्टिस इब्राहिम कलीफुल्लाह इस मामले में मध्यस्थता करने वाले पैनल के मुखिया होंगे।

अदालत ने अयोध्या मामले में मध्यस्थता की कार्यवाही की रिपोर्टिंग करने से मीडिया पर रोक लगाई है। इसके साथ ही कोर्ट ने अयोध्या मामले में मध्यस्थता की कार्यवाही बंद कमरे में करने का निर्देश दिया है। 

यहां पढ़ें सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अहम बातें...

फ़ैसले की 10 बड़ी बातें

  1. SC ने मध्यस्थता का सुनाया आदेश
  2. मध्यस्थता के लिए तीन लोगों का पैनल
  3. रिटायर्ड जस्टिस कलीफ़ुल्ला करेंगे अगुवाई
  4. आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर भी शामिल
  5. सीनियर वकील श्रीराम पंचू भी पैनल में
  6. मध्यस्थता के लिए 8 हफ़्ते की मोहलत
  7. 4 हफ़्तों में शुरुआती रिपोर्ट देगी होगी
  8. फ़ैज़ाबाद में होगी मध्यस्थता
  9. पूरी प्रक्रिया को गोपनीय रखने का आदेश
  10. एक हफ़्ते के भीतर मध्यस्थता शुरु होगी

ज़ाहिर है, राम मंदिर और बाबरी मस्जिद पर मध्यस्थता के लिए बनाए गए तीन सदस्यीय पैनल में जस्टिस इब्राहिम कलीफुल्लाह, श्री श्री रविशंकर और श्रीराम पंचू शामिल किए गए हैं। इस पैनल की अध्यक्षता जस्टिस कलीफुल्लाह करेंगे। फैसले के मुताबिक मध्यस्थता की मीडिया कवरेज नहीं होगी, जबकि रिकॉर्डिंग की जाएगी। इस पैनल को 8 हफ्ते में पूरी रिपोर्ट देनी होगी... इसके अलावा 4 हफ्ते में प्रोग्रेस बताना होगा।

इन 5 जजों की बेंच कर रही है मामले की सुनवाई

  1. सीजेआई रंजन गोगोई 
  2. न्यायमूर्ति एस ए बोबडे
  3. न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़
  4. न्यायमूर्ति अशोक भूषण 
  5. न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर 

आपको बताते है कि राम मंदिर विवाद का इतिहास क्या है, साल 1528 में बाबर ने अयोध्या में राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाई, साल 1885 में  फैजाबाद अदालत में मंदिर निर्माण के लिए पहला केस दर्ज हुआ, जिसके बाद साल 1949 में विवादित ढांचे में रामलला की मूर्ति की पूजा शुरु हुई। साल 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने मालिकाना हक के लिए मुकदमा किया, साल 1961 में यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मालिकाना हक के लिए मुकदमा  किया, साल 1986 में हिंदुओं को राम लला की पूजा की इजाजत दी गई। साल 1989 में रामलला विराजमान नाम से पांचवा मुकदमा दाखिल किया गया। जिसके बाद साल 1991 में सरकार ने ढांचे के पास की 2.77 एकड़ भूमि को कब्जे में लिया। साल 1992 में कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर विवादित ढांचे को गिरा दिया। इसके बाद अप्रैल 2002 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू हुई। सितंबर 2010 में  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांट दिया और मई 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। तब से लेकर अब तक मामले की सुनवाई जारी है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला...

आपको बताते हैं कि साल 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मंदिर को लेकर क्या फैसला सुनाया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2 एकड़ 77 डिसमिल जगह को तीन बराबर हिस्सों में बांट दिया था, जिसमें राम मूर्ति वाला हिस्सा राम लला विराजमान को दिया गया। राम चबूतरा और सीता रसोई वाला हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया गया और तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया था।

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Published March 8th, 2019 at 11:35 IST

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