अपडेटेड 19 September 2025 at 06:28 IST
EXPLAINER/ युद्ध-भूमि में तब्दील हुए शहर, 8 लाख से ज्यादा लोग सड़कों पर उतरे; फ्रांस की राजधानी में आपातकाल जैसी स्थिति क्यों?
France Protest: राजधानी पेरिस समेत कई बड़े शहरों में सड़कों पर धुआं, पुलिस और आम लोगों की झड़पें, बंद दुकानें और जाम जैसे नजारे दिखे।
- अंतरराष्ट्रीय न्यूज
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France Protest: फ्रांस सरकार की बजट कटौती योजना को लेकर गुरुवार को पूरे देश में हालात विस्फोटक हो गए। राजधानी पेरिस समेत कई बड़े शहरों में सड़कों पर धुआं, पुलिस और आम लोगों की झड़पें, बंद दुकानें और जाम जैसे नजारे दिखे।
लगभग आठ लाख लोग एक साथ प्रदर्शन में शामिल हुए और देश का सार्वजनिक जीवन पूरी तरह से ठप पड़ गया। स्कूल, अस्पताल, मेट्रो, बसें और रेलवे सेवाएं लगभग पूरी तरह बंद रहीं।
राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की सरकार उच्च घाटे और बढ़ते कर्ज को कम करने के लिए बड़े स्तर पर खर्चों में कटौती करना चाहती है। इस योजना के तहत सार्वजनिक सेवाओं और कल्याणकारी योजनाओं के बजट में कमी शामिल है। यूनियनों का आरोप है कि इसका सीधा असर मजदूरों और मध्यम वर्ग पर पड़ेगा, जबकि अमीर वर्ग और बड़ी कंपनियों को सरकार राहत देती रही है।
प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बेयरू के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित होने और उनके इस्तीफे ने पहले ही सरकार की साख को कमजोर किया, जिसके बाद उनके स्थान पर सेबेस्टियन लेकोर्नू की नियुक्ति ने जनता के गुस्से को और भड़का दिया।
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देशव्यापी असर
गुरुवार को 12 से अधिक यूनियनों ने संयुक्त हड़ताल का आह्वान किया। पेरिस मेट्रो 91 प्रतिशत चालकों की हड़ताल की वजह से लगभग पूरी तरह ठप हो गई। क्षेत्रीय रेल सेवाएं बुरी तरह प्रभावित रहीं, जबकि हाई-स्पीड ट्रेनों पर आंशिक असर हुआ। बिजली क्षेत्र में भी उत्पादन प्रभावित हुआ, जब ऊर्जा कंपनी EDF ने परमाणु संयंत्रों से 1.1 गीगावॉट तक का उत्पादन घटा दिया। लूव्र म्यूजियम समेत कई प्रमुख पर्यटन स्थल बंद रहे।
सड़कों पर गुस्सा
प्रदर्शनकारियों ने “अमीरों पर टैक्स लगाओ” जैसे नारों के साथ सड़कों पर बैरिकेड लगाए, आगजनी की और राजमार्गों को ब्लॉक कर दिया। पुलिस ने भीड़ हटाने के लिए आंसू गैस और वाटर कैनन का इस्तेमाल किया। मार्सिले में कार्यकर्ताओं ने उस हथियार फैक्ट्री का घेराव किया जिस पर आरोप है कि वह इजरायल को हथियार भेजती है, और इस दौरान फिलिस्तीनी झंडे भी लहराए गए।
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यूनियनों की प्रतिक्रिया
यूनियन प्रतिनिधि ज्यां-पियरे मेर्सियर ने कहा कि मजदूर वर्ग से दशकों से बलिदान लिया जा रहा है, जबकि अरबपति फायदेमंद नीतियों का लाभ उठाते हैं। उन्होंने सवाल किया कि जब सेना को 400 अरब यूरो का बजट मिल रहा है तो स्कूल और अस्पताल खाली क्यों हैं। सॉलिडेयर्स यूनियन की राष्ट्रीय सचिव मैरी वेरॉन ने इस आंदोलन को असमानता और अन्याय के खिलाफ लड़ाई बताया और कहा कि असली जरूरत संसाधनों के न्यायपूर्ण बंटवारे की है।
सरकार का सख्त रुख
गृह मंत्री ब्रूनो रेटेलियो ने पहले ही चेतावनी दी थी कि अतिवादी समूह हिंसा फैला सकते हैं। इसी कारण करीब 80,000 पुलिसकर्मी और जेंडार्म्स तैनात किए गए, जिनके साथ ड्रोन, बख्तरबंद वाहन और वाटर कैनन भी मौजूद रहे। पेरिस समेत विभिन्न शहरों में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें हुईं।
आगे क्या?
फ्रांस की अर्थव्यवस्था, जो यूरोपीय संघ की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, पहले से ही महंगाई और कर्ज के बोझ में दबी हुई है। सरकार का कहना है कि खर्च में कटौती जरूरी है, नहीं तो आने वाले वर्षों में हालात और बिगड़ सकते हैं। लेकिन जनता और यूनियनें मानती हैं कि सरकार आम लोगों पर बोझ डालकर अमीरों को फायदा पहुंचा रही है। विश्लेषकों का मानना है कि गुरुवार का यह प्रदर्शन पिछले हफ्ते हुए "ब्लॉक एवरीथिंग" आंदोलन से कहीं बड़ा साबित हुआ। आने वाले हफ्तों में अग सरकार ने नीतियों में बदलाव नहीं किया, तो देश और गहरे राजनीतिक और सामाजिक संकट में प्रवेश कर सकता है।
Published By : Kunal Verma
पब्लिश्ड 19 September 2025 at 06:28 IST