अपडेटेड 10 September 2025 at 23:29 IST
EXPLAINER/ भारत-चीन की करीबी से खौफ में हैं ट्रंप! जिनपिंग-पुतिन से मुलाकात के बाद दुनिया के दिग्गज नेता PM मोदी को क्यों मिला रहे फोन?
पिछले महीने जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीजिंग की जमीन पर उतरे तो एक अलग ही सियासी रंग देखने को मिला। मंच था शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का, लेकिन असली खबर बनीं कुछ तस्वीरें।
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नई दिल्लीः सड़कों पर चाय की थड़ियों से लेकर बड़े चैनल स्टूडियोज तक एक ही सवाल हवा में गूंज रहा है- भारत की चीन और रूस से बढ़ती अपनायत पश्चिमी दुनिया को परेशान क्यों कर रही है? कोई इसे ऐतिहासिक कूटनीति का युग बदलने वाला मोड़ कह रहा है, तो किसी को लगता है कि नए जमाने के भारत की वैश्विक चालें अब इतनी उलझी और अनूठी हैं कि पश्चिमी कूटनीतिकी की नींद उड़ी हुई है।
पिछले महीने जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीजिंग की जमीन पर उतरे तो एक अलग ही सियासी रंग देखने को मिला। मंच था शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का, लेकिन असली खबर बनीं कुछ तस्वीरें, जिनमें मोदी मुस्कुराते हुए शी जिनपिंग से हाथ मिला रहे हैं, वहीं पुतिन के साथ गर्मजोशी वाली केमिस्ट्री दिखाई देती हैं। रात के खाने की मेज पर, कैमरों की जमघट में, मोदी-पुतिन के बीच अपनापन साफ झलक रहा था। सोशल मीडिया की दुनिया में इन लम्हों ने अलग ही चर्चा छेड़ दी। चीनी प्लैटफोर्म्स पर तो चर्चा इतनी बढ़ गई कि लोग पूछने लगे- क्या भारत-रूस की दोस्ती से चीन भी एक सॉफ्ट कार्नर महसूस कर रहा है?
इधर इन तस्वीरों का असर सिर्फ एशिया तक सीमित नहीं रहा। यूरोप और अमेरिका में सियासी हलके, विश्लेषक और कूटनीतिज्ञ भी गिन-गिनकर ताश के पत्ते फेंकने लगे। ट्रंप लॉबी से तंज भरे बयान आए - “भारत का झुकाव रूस और चीन की तरफ पश्चिम के लिए खतरे की घंटी है।” किसी अखबार ने हेडलाइन दी - “क्या नई दिल्ली वाशिंगटन के मुकाबले बीजिंग-मॉस्को ध्रुव का हिस्सा बन रहा है?”
दुनिया के बड़े नेताओं के फोन आने शुरू हो गए
यहीं से कहानी नाटकीय मोड़ लेती है। SCO समिट के अगले ही दिन प्रधानमंत्री को दुनिया के बड़े नेताओं के फोन आने शुरू हो गए। इटली की प्रधानमंत्री, फ्रांस के राष्ट्रपति और यूरोपियन यूनियन के दिग्गज, सबने भारत से संपर्क किया। आशय साफ था, हर कोई चाहता है कि भारत उसकी बगल में खड़ा दिखाई दे।
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इन संवादों में मोदी ने बार-बार दो बातें दोहराईं- “हर समस्या का हल संवाद और कूटनीति से संभव है, हिंसा और आतंक का कोई स्थान नहीं।” यह भारत की उसी नीति की याद दिलाती है, जो इतिहास के हर मुश्किल दौर में संतुलन बनाए रखते हुए अपना रास्ता खुद चुनती आई है।
भारत के इस बदले तेवर को क्यों डर के रूप में देखा जा रहा है? असल में, भारत ने हाल के वर्षों में खुद को बिल्कुल अलग रंग में ढाल लिया है। न कोई कट्टरपंथ न कोई दबाव, बल्कि जो अपने राष्ट्रीय हित के लिए अनुकूल हो, वही नीति, वही मित्रता। क्वाड में अमेरिका के साथ रहना हो या SCO में रूस-चीन के करीब दिखना, भारत अब किसी के पक्ष में सिर झुकाकर नहीं, बल्कि आंख में आंख डालकर बात कर रहा है।
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पश्चिम चिंतित है, क्योंकि...
यूरोपियन दिग्गजों के ताबड़तोड़ कॉल्स के पीछे भी यही बेचैनी है। पश्चिम चिंतित है, क्योंकि भारत को खोना उसके लिए आर्थिक, सामरिक और रणनीतिक लिहाज से भयानक घाटे का सौदा हो सकता है। इतना ही नहीं, आज की तारीख में ग्लोबल साउथ के देशों के बीच भारत की बढ़ती पैठ पश्चिम के लिए और भी परेशानी का सबब है।
इन सबके बीच एक आम भारतीय की सोच भी अब बदल रही है। बीते सालों में हम सबने दुनिया के मंच पर भारत की छवि को निखरते देखा है। राजनीति की नई जमीन तैयार हो रही है। वो जमीन जहां गुटनिरपेक्षता को नए सिरे से परिभाषित किया जा रहा है। अब हम न चीन के आगे झुकते हैं, न ट्रंप के डर से सहम जाते हैं। अपने दम पर, अपनी शर्तों पर, बिना लाग-लपेट के, भारत अपनी राह बना रहा है।
तो फिर सवाल उठता है कि आगे क्या? शायद असली जवाब आने वाले वक्त के गर्भ में छुपा है। लेकिन एक बात तय है, भारत को अब किन्हीं बाहरी शक्ति केंद्रों के नक्शे पर नहीं, बल्कि नए वैश्विक नक्शे के डिजाइनर के रूप में देखा जा रहा है। और इसी से पश्चिम यानी ट्रंप से लेकर ब्रसेल्स तक, थोड़ा डरा, थोड़ा हिल गया है।
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Published By : Kunal Verma
पब्लिश्ड 10 September 2025 at 23:29 IST