अपडेटेड 5 September 2025 at 23:15 IST

EXPLAINER/ चौबे चले छब्बे बनने, दुबे बनके लौटे... ट्रंप की चाल पड़ गई उल्टी! भारत से ट्रैरिफ लेंगे वापस? चीन वाले बयान के क्या हैं मायने

भारत और अमेरिका के रिश्ते इन दिनों अच्छे दौर से नहीं गुजर रहे हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सीधे-सीधे सोशल मीडिया पर लिख दिया कि “अमेरिका ने भारत और रूस दोनों को चीन के हाथों खो दिया है।”

पीएम मोदी-ट्रंप-पुतिन-जिनपिंग | Image: AP

भारत और अमेरिका के रिश्ते इन दिनों अच्छे दौर से नहीं गुजर रहे हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सीधे-सीधे सोशल मीडिया पर लिख दिया कि “अमेरिका ने भारत और रूस दोनों को चीन के हाथों खो दिया है।”  

उनका यह बयान अचानक नहीं आया। वजह है हाल ही में हुई शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक। इस दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के व्लादिमीर पुतिन और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक साथ दिखे। मुलाकातें हुईं, तस्वीरें सामने आईं और वॉशिंगटन के माथे पर बल पड़ गए।

अमेरिका की रणनीति हमेशा साफ रही है- चीन को घेरने में भारत उसका सबसे अहम साथी बने। पिछले दो दशकों में यही हुआ भी। भारत ने अमेरिका से रक्षा सौदे किए, हथियार खरीदे, क्वॉड जैसे मंचों पर साथ दिया और एशिया में चीन के सामने डटा रहा। लेकिन यह संतुलन अब हिलता दिख रहा है।  

पिछली खटपट की जड़  

मसला तब बिगड़ा जब ट्रंप ने दावा किया कि भारत और पाकिस्तान के बीच हुई चार दिन की झड़पों के बाद उन्होंने “मध्यस्थ” बनकर युद्धविराम करवाया। नई दिल्ली ने सीधे कहा- “बिल्कुल गलत। किसी तीसरे की जरूरत ही नहीं थी। दोनों देशों के सैन्य अफसरों ने मिलकर मामला सुलझा लिया।”  यहीं से रिश्तों में कड़वाहट आ गई।  

इसके बाद ट्रंप ने मोर्चा खोल दिया। भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने पर उन्हें आपत्ति थी। उन्होंने टैक्स दोगुना कर दिया। पहले से लगे 25% ड्यूटी पर और 25% जोड़ दिया। ट्रंप के बयानों में तीखापन साफ झलकने लगा। रोजाना आरोप- “भारत रूस को सहारा दे रहा है, यूक्रेन युद्ध लंबा खिंच रहा है, निर्दोष मारे जा रहे हैं।” यहां तक कि उन्होंने यह टिप्पणी भी कर दी कि भारत “सस्ते रूसी तेल से मुनाफा कमा रहा है।”

इतना ही नहीं, उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कह दिया कि भारत पर सेकंड और थर्ड फेज के प्रतिबंध भी लगाए जा सकते हैं। उन्होंने दावा किया कि उनकी नीतियों से भारत को पहले से अरबों डॉलर का घाटा हो चुका है और अब उनका सीधा संदेश था- “भारत और रूस चीन के साथ चले गए हैं।”

तस्वीर पूरी तरह नकारात्मक नहीं  

हर बार की तरह इस बार भी विदेश नीति के जानकार यह मानने को तैयार नहीं कि रिश्ते पूरी तरह टूट गए हैं। उनका कहना है कि ये एक ऐसा रिश्ता है जिसने ठंडे-गर्म मौसम झेले हैं। शीत युद्ध से लेकर 1998 के परमाणु परीक्षण तक, कई बार दोनों देश आमने-सामने खड़े रहे, लेकिन समय ने इन्हें फिर पास ला दिया।  

विशेषज्ञों की राय है कि मौजूदा समय में भारत और अमेरिका के बीच इतने मजबूत हित जुड़े हैं कि रिश्ता टूटना लगभग नामुमकिन है। हां, तनाव बढ़ सकता है, लेकिन बातचीत और व्यापारिक समझौते के जरिए रास्ता निकलेगा ही।

चीन की चुनौती सबसे अहम  

यह भी साफ है कि भारत पूरी तरह चीन के पाले में नहीं जाएगा। सीमा विवाद, गलवान जैसी घटनाएं और एशिया में चीन की बढ़ती आक्रामकता भारत को हर कदम पर सतर्क रखती हैं।  

रूस के साथ भारत की पुरानी दोस्ती जरूर ताजा हो रही है, ऊर्जा और हथियारों के लिए, पर यह कहना गलत होगा कि भारत अमेरिका से दूरी बनाकर बीजिंग की गोद में जा बैठेगा। भारत की रणनीति साफ है: “संतुलन बनाओ, दोनों तरफ रिश्ते निभाओ।”  

फिलहाल सवाल यही है कि वॉशिंगटन और नई दिल्ली किस तरह इस खटास को कम करेंगे। विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले महीनों में द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत फिर शुरू हो सकती है। दोनों देश कुछ रियायतें देकर माहौल को सहज बना सकते हैं।

इतिहास यही बताता है कि भारत-अमेरिका के रिश्ते बार-बार चुनौतियों से गुजरे हैं और हर बार लौटे भी हैं। ट्रंप के बयान ने आग में घी जरूर डाला है, लेकिन रिश्ते पूरी तरह खत्म नहीं हुए। भारत अब न तो सिर्फ अमेरिका पर टिकेगा, न ही चीन पर। असली खेल संतुलन का है और यही संतुलन तय करेगा आने वाले वक्त की विश्व राजनीति कैसी होगी। 

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Published By : Kunal Verma

पब्लिश्ड 5 September 2025 at 23:15 IST