अपडेटेड 11 October 2025 at 18:57 IST
देवबंद पहुंचकर अफगानिस्तान के विदेश मंत्री ने क्यों बदल लिया अपना नाम? अब क्या होगा आमिर खान मुत्ताकी का न्यू नेम
अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मौलाना आमिर खान मुत्ताकी का देवबंद में जोरदार स्वागत किया गया। वो शनिवार को अपने प्रतिनिधिमंडल के साथ दिल्ली से इस्लामिक मदरसा दारुल उलूम पहुंचे थे।
अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मौलाना आमिर खान मुत्ताकी का देवबंद में जोरदार स्वागत किया गया। वो शनिवार को अपने प्रतिनिधिमंडल के साथ दिल्ली से इस्लामिक मदरसा दारुल उलूम पहुंचे थे।
इस दौरान मोहतमिम (कुलपति) अबुल कासिम नोमानी, जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी और दारुल उलूम के पदाधिकारियों ने उनका स्वागत किया। बताया जा रहा है कि देवबंद पहुंचने के बाद मौलाना मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी से मुत्ताकी ने हदीस का पाठ पढ़ा और उसे पढ़ाने की इजाजत भी ली।
इसके बाद मोहतमिम ने उन्हें हदीस-ए-सनद दी। आपको बता दें कि हदीस पढ़ाने की इजाजत लेने के बाद मुत्ताकी के नाम के आगे कासमी जुड़ गया है। इसका मतलब है कि मौलाना आमिर खान मुत्ताकी अब अपना पूरा नाम मौलाना आमिर खान मुत्ताकी कासमी लिख सकेंगे।
देवबंद क्यों पहुंचे मुत्ताकी?
2021 में अमेरिका की वापसी के बाद और तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद भारत की यात्रा करने वाले पहले वरिष्ठ तालिबान पदाधिकारी आमिर खान मुत्ताकी गुरुवार को नई दिल्ली पहुंचे। उन्होंने शुक्रवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर से भी मुलाकात की। उनकी यह यात्रा तालिबान के साथ रिश्ता मजबूत करने के नई दिल्ली के प्रयासों में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि भारत, वैश्विक समुदाय के एक बड़े हिस्से की तरह काबुल में तालिबान शासन को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं देता है।
आपको बता दें कि तालिबान नेता की देवबंद यात्रा राजनीतिक से परे है, जैसा कि उन्होंने भी जोर देकर कहा है। शनिवार की अपनी यात्रा के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने शुक्रवार को कहा, "देवबंद इस्लामी दुनिया का एक बड़ा केंद्र है और अफगानिस्तान और देवबंद जुड़े हुए हैं, इसलिए मैं वहां के नेताओं से मिलने जा रहा हूं। हम चाहते हैं कि हमारे आध्यात्मिक छात्र भी यहां आकर अध्ययन करें।"
क्या है दारुल उलूम देवबंद?
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के देवबंद शहर में स्थित इस्लामी मदरसा दारुल उलूम देवबंद ने भारत और दुनिया भर से इस्लामी विद्वानों को तैयार किया है। इस मदरसे की स्थापना 1800 के दशक के अंत में सैय्यद मुहम्मद आबिद, फजलुर रहमान उस्माई, महताब अली देवबंदी और अन्य लोगों ने की थी।
वर्तमान परिसर की नींव मुहम्मद कासिम नानौतवी ने रखी थी। यह स्कूल मुख्यतः कुरान और हदीस जैसे स्रोतों से ग्रंथों और परंपराओं के अध्ययन पर आधारित इस्लामी शिक्षा प्रदान करता है।
2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस इस्लामी मदरसे में 34 विभाग थे और 4,000 से ज्यादा छात्र अध्ययन कर रहे थे। उस समय मदरसे के मीडिया प्रभारी अशरफ उस्मानी के अनुसार एक छात्र को 8 साल की पढ़ाई के बाद मौलवीत (मौलाना) की डिग्री मिलती है और उसके बाद सफल छात्र साहित्य, फतवा, तफसीर (कुरान की व्याख्या), हदीस, अंग्रेजी, कंप्यूटर आदि में विशेषज्ञता हासिल करते हैं।
Published By : Kunal Verma
पब्लिश्ड 11 October 2025 at 18:57 IST