अपडेटेड 23 January 2024 at 20:46 IST
गांव में झोपड़ी, सरकारी मदद से इनकार; बिहार के पूर्व CM जननायक Karpuri Thakur के संघर्ष की कहानी
Karpuri Thakur Bharat Ratna News: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा।
Bihar News: बिहार के पूर्व CM कर्पूरी ठाकुर को भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। कर्पूरी ठाकुर बिहार में पिछड़े वर्गों के उत्थान के अपने प्रयासों के लिए जाने जाते हैं। नाई समुदाय के एक सीमांत किसान के बेटे कर्पूरी ठाकुर ने 1970 के दशक में दो बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा करने के लिए एक लंबा सफर तय किया। पहली बार वो दिसंबर 1970 से जून 1971 तक बिहार के सीएम रहे और दूसरी बार दिसंबर 1977 से अप्रैल 1979 तक उन्होंने बिहार के CM पद का कार्यभार संभाला।
आपको बता दें कि अपने काम की बदौलत उन्हें जननायक या लोगों के नायक के रूप में जाना जाने लगा। ठाकुर, जिन्हें भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेल में डाल दिया गया था, 1952 में पहली बार जीतने के बाद कभी कोई चुनाव नहीं हारे।
गरीबों के मसीहा कहे जाते हैं कर्पूरी ठाकुर
कर्पूरी ठाकुर अखिल भारतीय छात्र संघ के सदस्य थे। जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया को उनका राजनैतिक गुरु बताया जाता है। उनका जन्म बिहार के समस्तीपुर में हुआ था। अखिल भारतीय छात्र संघ के एक कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने अपनी ग्रेजुएट कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी थी और भारत छोड़ो आंदोलन में जुट गए थे। इसके कारण उन्हें 26 महीने तक जेल में भी रहना पड़ा था।
आपको बता दें कि ठाकुर का समुदाय 1970 के दशक में जनसंख्या का केवल 1.6% था। ऐसे में पिछड़ी जातियों को संगठित करने वाले वो पहले व्यक्ति थे। उन्होंने नवंबर 1978 में बिहार में सरकारी सेवाओं में उनके लिए 26% आरक्षण का मार्ग प्रशस्त किया। वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए पिछड़े वर्गों के बीच सबसे वंचितों को अलग से वर्गीकृत करने की आवश्यकता महसूस की।
मुंगेरी लाल आयोग, जिसने 1977 में ठाकुर के मुख्यमंत्री रहते हुए अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, ने सिफारिश की थी कि पिछड़े वर्गों को अत्यंत पिछड़े वर्गों (मुसलमानों के कमजोर वर्गों सहित) और पिछड़े वर्गों के रूप में अलग-अलग किया जाए। यह रिपोर्ट 1978 में लागू की गई थी। सबसे अहम बात तो ये है कि राजद नेता लालू प्रसाद यादव और जदयू के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दोनों ने कर्पूरी विरासत को भुनाया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि 1990 के दशक के बाद से बागडोर पिछड़े वर्गों के हाथों से फिसल न जाए।
अपनी खुद्दारी के लिए जाने जाते हैं कर्पूरी ठाकुर
'द किंगमेकर: लालू प्रसाद की अनकही दास्तां' किताब के लेखक जयंत जिज्ञासु ने अपनी किताब में उनकी खुद्दारी के बारे में बताया है। उसमें लिखा गया है कि एक बार उनके छोटे बेटे की तबीयत बिगड़ गई और उसे राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टर ने बता दिया कि उनके बेटे को दिल की बीमारी है। ऐसे में इलाज का खर्च काफी ज्यादा था। कानों-कान ये बात तत्कालीन PM इंदिरा गांधी तक पहुंच गई और उन्होंने उन्हें मैसेज भिजवाया कि वो अपने बेटे को एम्स में भर्ती कराएं। इसके बाद इंदिरा गांधी एम्स गईं और अमेरिका से उनके बेटे का इलाज कराने का ऑफर दिया, लेकिन कर्पूरी ठाकुर को ये बात पसंद नहीं आई। उन्होंने साफ-साफ कह दिया कि वो मर जाएंगे, लेकिन सरकार के खर्च पर अपने बेटे का इलाज बिल्कुल नहीं कराएंगे। इसके बाद जयप्रकाश नारायण की मदद से न्यूजीलैंड भेजकर उन्होंने अपने बेटे का इलाज कराया।
सरकारी जमीन लेने से भी कर दिया था इनकार
बिहार में एक ऐसा भी वक्त आया था जब सरकार विधायकों और पूर्व विधायकों को सस्ते दर में जमीन आवंटित कर रही थी। कर्पूरी ठाकुर ने उस वक्त भी जमीन लेने से साफ इनकार कर दिया था। आपको बता दें कि उनके मरणोपरांत भी उनके गांव पितौंझिया में उनकी पुस्तैनी झोपड़ी ही थी, जिसे देखने के बाद यूपी के नेता हेमवंती नंदन बहुगुणा के आंखों से आंसू तक निकल पड़े थे।
Published By : Kunal Verma
पब्लिश्ड 23 January 2024 at 20:46 IST