अपडेटेड 2 August 2025 at 18:01 IST
क्या ग्लोबल इकोनॉमी के दुश्मन बन गए ट्रंप? जानिए भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद किया तो क्या होगा
India-Russia Crude Oil: भारत ने रूसी कच्चे तेल की खरीद बंद नहीं की है। इसके पीछे सिर्फ राष्ट्रीय हित नहीं, बल्कि वैश्विक तेल बाजार को संतुलित रखने की बड़ी वजहें भी हैं।
India-Russia Crude Oil: भारत ने रूसी कच्चे तेल की खरीद बंद नहीं की है। इसके पीछे सिर्फ राष्ट्रीय हित नहीं, बल्कि वैश्विक तेल बाजार को संतुलित रखने की बड़ी वजहें भी हैं। अगर भारत इस खरीद से पीछे हटता है, तो दुनिया भर में तेल की कीमतें 200 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं। इसका असर सिर्फ पेट्रोल-डीजल तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह महंगाई की एक नई लहर को जन्म देगा।
रूसी तेल के बारे में समझिए
रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक है। रोजाना करीब 95 लाख बैरल कच्चा तेल निकालता है और उसमें से लगभग 45 लाख बैरल दुनिया को बेचता है। इसके अलावा 23 लाख बैरल रिफाइन्ड उत्पाद भी निर्यात करता है। सोचिए, अगर इतने बड़े सप्लायर को बाजार से बाहर कर दिया जाए, तो पूरी सप्लाई चेन हिल जाएगी।
2022 की तस्वीर याद है?
मार्च 2022 में जब दुनिया को लगा कि रूसी तेल पूरी तरह ब्लॉक हो सकता है, तो ब्रेंट क्रूड 137 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया था। अब जरा सोचिए, अगर भारत जैसा तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता (जो 85% तेल आयात करता है) उस वक्त भी चुपचाप बैठा रहता, तो क्या होता?
भारत ने इंटरनेशनल नॉर्म्स का पालन करते हुए अपने स्रोत बदले, लेकिन रियायती दर पर रूसी तेल लेना जारी रखा। न कोई अंतरराष्ट्रीय कानून तोड़ा, न किसी पाबंदी का उल्लंघन किया। असल में, भारत ने वही किया जो हर देश करता है, अपने फायदे के लिए सही समय पर सही फैसला लिया।
ट्रंप ने क्या कहा?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को कहा कि भारत रूसी तेल खरीदना बंद कर सकता है। उन्होंने इसे "अच्छा कदम" कहा, लेकिन भारत ने साफ किया कि वह ऊर्जा नीति में पूरी तरह संप्रभु है। कोई बाहरी ताकत यह तय नहीं कर सकती कि भारत किससे तेल खरीदेगा।
31 जुलाई की एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया था कि भारतीय रिफाइनरियां अब रूसी तेल नहीं खरीद रहीं क्योंकि छूट कम हो गई है और अमेरिकी टैरिफ का दबाव है, लेकिन भारतीय सूत्रों ने साफ कहा है कि ऐसी कोई बात नहीं है। खरीद अभी भी जारी है, और वो भी कॉमर्शियल आधार पर।
G7 की प्राइस कैप का मतलब क्या है?
रूसी तेल पर कोई प्रतिबंध नहीं है। हां, G7 और यूरोपीय संघ ने एक प्राइस कैप जरूर तय की है, जो है- 60 डॉलर प्रति बैरल। भारत की सरकारी तेल कंपनियां उसी के मुताबिक डील कर रही हैं। अमेरिका ने ईरान और वेनेजुएला से तेल खरीदने पर पाबंदी लगाई है, और भारत उसका पालन भी कर रहा है।
OPEC+ पहले ही हर दिन करीब 5.86 मिलियन बैरल कम उत्पादन कर रहा है। अगर भारत ने रियायती रूसी तेल नहीं लिया होता, तो फिर से 2022 वाला सीन बन जाता। कीमतें 137 डॉलर पार कर जातीं और इससे सिर्फ भारत नहीं, पूरी दुनिया में महंगाई फैल जाती। दुनिया को लगता है कि रूस से तेल खरीदना सिर्फ भारत का निजी मामला है, लेकिन असल में भारत की यह रणनीति हर उस देश को फायदा देती है, जहां लोग पहले से ही महंगाई की मार झेल रहे हैं।
Published By : Kunal Verma
पब्लिश्ड 2 August 2025 at 17:52 IST