अपडेटेड 7 October 2025 at 21:49 IST
Bihar Elections: नीतीश बनाम लालू की 'जंग', बैलगाड़ी से EVM तक लोकतंत्र की दिलचस्प यात्रा; 1952 से अब तक बिहार चुनाव में क्या-क्या बदला?
आजादी के बाद जब बिहार में पहली बार चुनाव हुआ था तो माहौल दिलचस्प था। लोगों में वोट डालने का जुनून था, तो नेताओं में जीत का स्वाद चखने की हड़बड़ाहट।
बिहार की राजनीति में जब चुनाव सिर पर हों और पुराने किस्सों का जिक्र ना हो, तो चुनावी रंग सफेद नजर आने लगता है। ऐसे में अब जब राज्य एक बार फिर चुनाव की चौखट पर खड़ा है और बिहार में चुनाव की तारीख तय हो गई है, तो आज हम आपको इतिहास के पन्नों में थोड़ा पीछे लेकर चलते हैं, जब बिहार में पहली बार चुनावी रंग हर किसी के सिर पर चढ़कर नाच रहा था।
आजादी के बाद जब बिहार में पहली बार चुनाव हुआ था तो माहौल दिलचस्प था। लोगों में वोट डालने का जुनून था, तो नेताओं में जीत का स्वाद चखने की हड़बड़ाहट। इस आर्टिकल में हम आपको 1952 के पहले विधानसभा चुनाव से अब तक की कहानी बताने वाले हैं।
पहला चुनाव, पहला जुनून
आजादी के बाद साल 1951 में देश का पहला लोकसभा चुनाव हुआ था। इसके बाद 1952 में बिहार विधानसभा चुनाव कराए गए। झारखंड बिहार का हिस्सा था और नेताओं को कुल 330 सीटों पर अपनी भागीदारी साबित करनी थी। उस वक्त कांग्रेस पार्टी छाई हुई थी और पार्टी ने बहुमत के साथ सत्ता पर अपना हाथ रख दिया था। उस वक्त बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह बने थे। उन्हें लोग प्यार से श्री बाबू कहकर बुलाते थे।
बिहार के पहले चुनाव में 1 करोड़ लोगों ने वोट डाला था और उस वक्त वोट प्रतिशत करीब 55 प्रतिशत रहा था। 13 दलों को मात देकर कांग्रेस ने लोकतंत्र के पर्व की शुरुआत कर दी थी। दिलचस्प बात ये थी कि उस वक्त बैलगाड़ियों से मतपेटियों को ढोया जाता था और लोगों ने लोकतंत्र के इस पर्व को त्योहार की तरह मनाया था।
1967 से 1985 तक चुनावी उथल-पुथल
- 1967 से 1985 तक बिहार में चुनावी उथल-पुथल का दौर चलता रहा। 1967 में कांग्रेस को 318 में से 128 सीटें, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी को 199 में से 68, जन क्रांति दल को 60 में से 13 और जनसंघ को 271 में से 26 सीटें मिलीं।
- 1969 में कांग्रेस ने फिर बहुमत हासिल किया। इस दौरान मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल छोटा रहा। दारोगा प्रसाद राय, कर्पूरी ठाकुर और भोला पासवान शास्त्री उन मुख्यमंत्रियों में शामिल रहे।
- 1972 में कांग्रेस का पलड़ा फिर भारी रहा। कुछ समय के लिए राष्ट्रपति शासन भी रहा। 1977 के चुनाव में जनता पार्टी ने 311 में से 214 सीटें हासिल कीं। इस दौरान कर्पूरी ठाकुर और रामसुंदर दास सीएम रहे। 1980 में कांग्रेस फिर लौटी और 311 में से 169 सीटें जीतीं। 1985 में कांग्रेस को 323 में 196 सीटें मिलीं।
- इसके बाद 1990 में जनता दल चुनावी मैदान में उतरी और 276 में से 122 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बन गई। इस दौरान लालू प्रसाद यादव सीएम बने।
नीतीश और लालू की 'जंग'
बिहार से नाता रखने वालों ने 1990 में लालू का दबदबा भी देखा। इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को कुर्सी पर बिठा दिया। फिर 2003 में एक बार फिर सत्ता बदली। शरद यादव गुट यानी लोक जनशक्ति पार्टी और नीतीश-जॉर्ज की समता पार्टी ने मिलकर जदयू बनाया। इसके बाद लालू-नीतीश की जंग शुरू हो गई।
इसके बाद 2000 में राजद ने 293 सीटों पर उतरकर 124 सीटें हासिल कीं। बीजेपी 67, समता पार्टी 34 और कांग्रेस 23 सीटों पर सिमट गई। फिर झारखंड बिहार से अलग हो गया।
2005 का दिलचस्प किस्सा
फरवरी 2005 में राजद ने 215 में से 75 सीटें हासिल कीं। जदयू 55, बीजेपी 37 और कांग्रेस को 10 सीटों पर ही खुश होना पड़ा। किसी भी पार्टी को बहुमत ना मिलने के कारण राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया।
इसके बाद अक्टूबर-नवंबर में चुनाव हुए और इस बार नीतीश-बीजेपी के गठबंधन ने लालू को बिहार की कुर्सी से अलग कर दिया। 88 सीटों पर जदयू और 55 सीटों पर बीजेपी ने बाजी मारकर नीतीश कुमार का बिहार की राजनीति में उदय कराया।
आपको बता दें कि अब तक बिहार में 17 विधानसभा चुनाव हुए हैं और 2005 से अब तक नीतीश कुमार सीएम की कु्र्सी पर काबिज हैं।
Published By : Kunal Verma
पब्लिश्ड 7 October 2025 at 21:49 IST