अपडेटेड 19 September 2025 at 08:16 IST

EXPLAINER/ 'भारत-रूस संबंध अब नजरअंदाज नहीं होंगे', ट्रंप की बातों में आया EU; खुले मंच से दिखाई आंख, इंडिया क्यों जरूरी है, ये भी बता दिया

European Union-India Relation: ब्रसेल्स ने ताजा रणनीतिक एजेंडा पेश करते हुए साफ किया है कि व्यापार से लेकर रक्षा सहयोग तक पांच अहम पिलर पर फोकस होगा।

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Ursula von der Leyen and PM Modi. | Image: AP

European Union-India Relation: भारत और यूरोपीय संघ (EU) के रिश्तों में एक नया मोड़ सामने आया है। ब्रसेल्स ने ताजा रणनीतिक एजेंडा पेश करते हुए साफ किया है कि व्यापार से लेकर रक्षा सहयोग तक पांच अहम पिलर पर फोकस होगा, लेकिन पहली बार यूरोप ने भारत-रूस रिश्तों को लेकर खुलकर आपत्ति भी जताई है। EU का कहना है कि रूसी तेल खरीद और मॉस्को संग सैन्य अभ्यास आगे बढ़ती साझेदारी में बाधा डाल सकते हैं।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत पर रूस से तेल खरीद को लेकर सख्त रुख अपनाए हुए हैं और 50% तक टैरिफ थोप चुके हैं। उन्होंने EU से भी 100% टैक्स लगाने की मांग की है। हालांकि यूरोपीय संघ ने अलग राह चुनी है।

यूरोपीय संघ का मकसद भारत को दंडित करने के बजाय धीरे-धीरे रूस की ओर से दूरी बनाने के लिए प्रेरित करना है। इसके लिए वह भारत संग फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) पर जोर दे रहा है और रक्षा सहयोग को नया आयाम देने की तैयारी कर रहा है। यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने सम्मेलन में कहा, “अब वक्त है भरोसेमंद साझेदारों के साथ संबंधों को मजबूत करने का।”

यूरोप की नई प्राथमिकताएं

EU ने भारत के साथ जिन पांच पिलर पर ध्यान केंद्रित किया है, वे हैं:

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  • ट्रेड और निवेश: भारत-यूरोप FTA को तेजी से आगे बढ़ाना।
  • रक्षा सहयोग: यूरोपीय हथियार कंपनियों का भारत के रक्षा बाजार में प्रवेश और भारत की डाइवर्सिफिकेशन में मदद।
  • इंडो-पैसिफिक सहयोग: चीन पर निर्भरता घटाने के लिए भारत को प्रमुख पार्टनर बनाना।
  • टेक्नोलॉजी और सप्लाई चेन: क्रिटिकल मिनरल्स, सेमीकंडक्टर और चिप्स में साझेदारी।
  • ग्लोबल गवर्नेंस: BRICS और SCO जैसे मंचों पर भारत की भूमिका को संतुलन साधने में इस्तेमाल करना।

रूस पर कड़ी नजर

EU की शीर्ष डिप्लोमैट काया कैलस ने भारत की हालिया रूस संग सैन्य भागीदारी, जैसे बेलारूस में Zapad Drill, पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि अगर भारत यूरोप के करीब आना चाहता है तो रूस संग इस तरह की गतिविधियां चिंता का विषय हैं। हालांकि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यूरोप भारत को रूस से पूरी तरह काटने की कोशिश नहीं कर रहा। दरअसल, यूरोप मानता है कि भारत BRICS और SCO जैसे मंचों पर रूस और चीन का संतुलन बनाकर रख सकता है।

रक्षा सौदों की संभावनाएं

भारत अगले वर्ष तक अपनी सेना और नौसेना को आधुनिक बनाने में €70 अरब से ज्यादा खर्च करने जा रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध में रूसी हथियारों की सीमाएं उजागर होने के बाद भारत खुद भी नए विकल्प तलाश रहा है। ऐसे में यूरोपीय हथियार कंपनियां भारतीय रक्षा बाजार में बड़ी भूमिका निभा सकती हैं। दूसरी ओर भारत ने 2029 तक €5 अरब रक्षा निर्यात का लक्ष्य रखा है, जिससे लेन-देन दोतरफा होते हुए दोनों पक्षों को लाभ होगा।

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EU के भीतर भी इस मुद्दे पर सहमति नहीं है। पोलैंड चाहता है कि 2026 तक यूरोप पूरी तरह रूसी तेल पर निर्भरता खत्म कर दे। वहीं फ्रांस और जर्मनी जैसे देश भारत के साथ मजबूत व्यापारिक और सुरक्षा रिश्ते बनाने के पक्ष में हैं। जर्मनी पहले ही भारत से व्यापार दोगुना करने का ऐलान कर चुका है, जबकि फ्रांस मोदी सरकार के साथ रक्षा और ऊर्जा सहयोग निरंतर बढ़ा रहा है।

भारत की मल्टी-एलाइन्मेंट डिप्लोमेसी

भारत ने यह साफ किया है कि वह रूस से पूरी तरह नाता नहीं तोड़ेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल ही में व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग संग अंतरराष्ट्रीय मंच साझा करते दिखाई दिए थे। साथ ही, भारत यूरोप और अमेरिका दोनों के साथ संबंध गहरे करने पर भी जोर दे रहा है। यही भारत की बहु-आयामी कूटनीतिक नीति, यानी मल्टी-एलाइन्मेंट डिप्लोमेसी, की मूल रणनीति है।

असल में, यूरोपीय संघ ने भी अमेरिका पर बढ़ती निर्भरता और आयात शुल्क के दबाव को देखते हुए नए साझेदारों पर ध्यान केंद्रित किया है। उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने कहा कि उनका लक्ष्य है कि इस साल भारत संग व्यापार समझौता आगे बढ़ाया जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी फोन पर इस दिशा में भारत की प्रतिबद्धता दोहराई है।

भारत और EU के बीच FTA पर बातचीत जारी है। अगर यह सफल होता है, तो वस्तुओं, सेवाओं और निवेश के क्षेत्र में सहयोग नई ऊंचाई पर पहुंचेगा। भारत जहां यूरोप के लिए तेजी से बढ़ता बाजार है, वहीं यूरोपीय संघ भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस समझौते से भारतीय निर्यातकों को यूरोपीय बाजारों तक आसान पहुंच मिलेगी और यूरोपीय कंपनियों के लिए भारत नए अवसर खोलेगा।

यूरोप फिलहाल दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों से भी वार्ता कर रहा है। उद्देश्य है सप्लाई चेन को विविध बनाना और किसी एक क्षेत्र पर निर्भरता कम करना। बदलते वैश्विक समीकरणों के बीच, अगर भारत और यूरोप यह समझौता पूरा करते हैं, तो दोनों पक्षों को रणनीतिक और आर्थिक, दोनों स्तर पर फायदा मिलना तय है।

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Published By : Kunal Verma

पब्लिश्ड 19 September 2025 at 08:09 IST