अपडेटेड 25 November 2025 at 23:29 IST

EXPLAINER/ भारत-चीन के सुधरते रिश्तों के बीच ड्रैगन ने क्यों डाला खलल? अरुणाचल प्रदेश को कभी मान्यता नहीं देने वाले बयान से बढ़ेगी टेंशन

अरुणाचल प्रदेश भारत के नॉर्थ-ईस्ट का सबसे बड़ा राज्य है। इसकी इंटरनेशनल बॉर्डर तिब्बत, म्यांमार और भूटान से लगती है। चीन पूरे अरुणाचल प्रदेश को “साउथ तिब्बत” कहता है।

अरुणाचल प्रदेश चीन को क्यों चाहिए?
अरुणाचल प्रदेश चीन को क्यों चाहिए? | Image: Republic

चीन के तियानजिन शहर में आयोजित SCO समिट के बाद ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि भारत और चीन के रिश्ते अब सुधरने की कगार पर पहुंच रहे हैं। हालांकि, चीन ने अपनी पीठ में छुरा घोंपने की पुरानी आदत को एक बार फिर तवज्जो दी, जिसने उस पर भरोसा ना कर पाने के कारणों को सही साबित कर दिया।

चीन ने अरुणाचल प्रदेश पर अपने दावे को एक बार फिर दोहराकर दुनिया को ये दिखा दिया कि उस पर भरोसा करना सबसे बड़ी गलती हो सकती है। चीनी प्रवक्ता ने तो ये तक कह दिया कि उसने कभी अरुणाचल प्रदेश को मान्यता नहीं दी है।

आपको बता दें कि SCO समिट के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच दो द्विपक्षीय बैठकें हुईं, जिनमें व्यापार, सीमा विवाद, और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई थी। बताया जा रहा था कि 2020 के गलवान संघर्ष के बाद भारत और चीन के बीच तनाव कम करने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम था। ऐसे में अरुणाचल प्रदेश के मुद्दे को एक बार फिर दोहराना चीन के लिए घाटे का सौदा हो सकता है।

अरुणाचल प्रदेश चीन को क्यों चाहिए?

अरुणाचल प्रदेश भारत के नॉर्थ-ईस्ट का सबसे बड़ा राज्य है। इसकी इंटरनेशनल बॉर्डर तिब्बत, म्यांमार और भूटान से लगती है। चीन पूरे अरुणाचल प्रदेश को “साउथ तिब्बत” कहता है। बीजिंग इस इलाके को चीनी भाषा में “जंगनान” कहता है। यहां दिक्कत लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल को लेकर है, जो भारत और चीन के इलाके को अलग करती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत LAC को 3,488 किलोमीटर मानता है, जबकि चीन का कहना है कि यह लगभग 2,000 किलोमीटर है।

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LAC तीन सेक्टर में बंटी हुई है:

  • ईस्टर्न सेक्टर - अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम
  • मिडिल सेक्टर - उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश
  • वेस्टर्न सेक्टर - लद्दाख

ईस्टर्न सेक्टर में मैकमोहन लाइन को असल में बाउंड्री माना जाता है, जिसका नाम उस समय के ब्रिटिश इंडिया के फॉरेन सेक्रेटरी सर हेनरी मैकमोहन के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने 1914 के शिमला कन्वेंशन में यह लाइन खींची थी। हालांकि, 1949 में चीन की मौजूदा कम्युनिस्ट सरकार के सत्ता में आने के बाद वह उन सभी ट्रीटी से पीछे हट गया, जिन्हें वह 'असमान (Unequal)' मानता था। चीन का दावा है कि अरुणाचल प्रदेश ‘प्राचीन काल से’ उसका हिस्सा रहा है।

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जानकारों के मुताबिक, चीन पूरे राज्य पर दावा कर सकता है, लेकिन उसका सीधा ध्यान तवांग जिले पर टिका है, जो अरुणाचल के उत्तर-पश्चिमी इलाके में है और भूटान और तिब्बत की सीमा से लगा हुआ है। तवांग में चीन की दिलचस्पी टैक्टिकल कारणों से हो सकती है, क्योंकि यह भारत के उत्तर-पूर्वी इलाके में स्ट्रेटेजिक एंट्री देता है। तवांग तिब्बत और ब्रह्मपुत्र घाटी के बीच कॉरिडोर में एक जरूरी पॉइंट है।

तवांग में तवांग गंडेन नामग्याल ल्हात्से (तवांग मठ) भी है, जो दुनिया में तिब्बती बौद्ध धर्म का दूसरा सबसे बड़ा मठ है। इस मठ की स्थापना मेराग लोद्रोए ग्यामत्सो ने साल 1680-81 में पांचवें दलाई लामा की इच्छा का सम्मान करने के लिए की थी। चीन का दावा है कि यह मठ इस बात का सबूत है कि यह जिला कभी तिब्बत का था। वो अरुणाचल पर अपने दावे के समर्थन में तवांग मठ और तिब्बत में ल्हासा मठ के बीच ऐतिहासिक संबंधों का हवाला देता है।

संभावित हमलों के लिए सबसे अच्छी जगह

अगर बीजिंग अरुणाचल पर कंट्रोल कर लेता है, तो इसका मतलब होगा कि भूटान के पश्चिमी और पूर्वी बॉर्डर पर चीन उसका पड़ोसी होगा। सिलीगुड़ी कॉरिडोर के करीब जाने की चीन की कोशिशें भारत और भूटान दोनों के लिए सुरक्षा का खतरा हैं। इसके अलावा, चीन के संभावित हमलों के लिए मल्टी-लेयर्ड एयर डिफेंस सिस्टम तैनात करने के लिए अरुणाचल भारत के लिए सबसे अच्छी जगह है। इस तरह अरुणाचल पर कंट्रोल से चीन को स्ट्रेटेजिक फायदा मिलेगा।

विदेश मंत्रालय का जवाब

अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीनी प्रवक्ता माओ निंग के बयान के बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने भी बयान जारी किया। MEA ने कहा, "हमने अरुणाचल प्रदेश की एक भारतीय नागरिक को मनमाने ढंग से हिरासत में लेने के बारे में चीनी विदेश मंत्रालय के बयान देखे हैं, जिसके पास वैलिड पासपोर्ट था और वह जापान जाने के लिए शंघाई इंटरनेशनल एयरपोर्ट से गुजर रही थी। अरुणाचल प्रदेश भारत का एक अभिन्न और अटूट हिस्सा है, और यह एक साफ बात है। चीनी पक्ष के इनकार करने से इस पक्की सच्चाई में कोई बदलाव नहीं आएगा। हिरासत का मुद्दा चीनी पक्ष के सामने जोरदार तरीके से उठाया गया है। चीनी अधिकारी अभी भी अपने कामों के बारे में सफाई नहीं दे पाए हैं, जो इंटरनेशनल हवाई यात्रा को कंट्रोल करने वाले कई नियमों का उल्लंघन है। चीनी अधिकारियों के काम उनके अपने नियमों का भी उल्लंघन करते हैं जो सभी देशों के नागरिकों को 24 घंटे तक वीजा फ्री आने-जाने की इजाजत देते हैं।"

आपको बता दें कि अरुणाचल प्रदेश की एक महिला ने आरोप लगाया था कि चीनी अधिकारियों ने शंघाई एयरपोर्ट पर ट्रांजिट हॉल्ट के दौरान उसके भारतीय पासपोर्ट को वैलिड मानने से इनकार कर दिया और उसे हिरासत में ले लिया। X पर कई पोस्ट में, पेमा वांग थोंगडोक ने कहा कि शंघाई पुडोंग एयरपोर्ट पर इमिग्रेशन अधिकारियों ने 21 नवंबर को उसे 18 घंटे तक हिरासत में रखा, यह दावा करते हुए कि उसका भारतीय पासपोर्ट "इनवैलिड" है क्योंकि उसका जन्मस्थान, अरुणाचल प्रदेश है, जो भारत का नहीं, बल्कि चीन का हिस्सा है। रिपोर्ट्स के अनुसार, थोंगडोक 21 नवंबर को लंदन से जापान जा रही थी, जब वह तीन घंटे के लेओवर के लिए शंघाई में उतरी।

अरुणाचल प्रदेश को कभी मान्यता नहीं देने वाले बयान से बढ़ेगी टेंशन?

एक्सपर्ट्स का कहना है कि दोनों देशों के बीच पहले से ही लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर गंभीर अनसुलझे मुद्दे हैं, और अरुणाचल प्रदेश एक लंबे समय से चला आ रहा फ्लैशपॉइंट है, इसलिए इस तरह की घटनाओं से अविश्वास बढ़ता है और रिश्ते सुधारने की कोशिशें धीमी हो सकती हैं, लेकिन ये आम तौर पर डिप्लोमैटिक और पॉलिटिकल लेवल पर ही रहती हैं। जब तक ऐसे मामले बार-बार नहीं होते या बॉर्डर पर कोई नई मिलिट्री कार्रवाई नहीं होती, तब तक इस घटना के एक लिमिटेड डिप्लोमैटिक झगड़े तक ही रहने की उम्मीद है। ऐसे में ये कहना सही होगा कि इस मुद्दे से दोनों देशों के बीच वाद-विवाद गहरा हो सकता है, लेकिन तुरंत टकराव बढ़ने की उम्मीद कम है।

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Published By : Kunal Verma

पब्लिश्ड 25 November 2025 at 23:29 IST