अपडेटेड 3 December 2025 at 19:49 IST

'मुसलमानों को शव दफनाने हैं तो अपने देश भेज दें', जापान ने क्यों दिया ऐसा बयान? कब्रिस्तान की मांग ठुकराई

जापान से एक चौंकाने वाली खबर आ रही है, जो दुनिया भर में बहस का टॉपिक बन गई है। यहां की सरकार ने मुस्लिम कम्युनिटी को दफनाने के लिए नई जमीन देने से साफ मना कर दिया है।

Sanae Takaichi
जापान में मुसलमानों को दफनाने के लिए जमीन नहीं मिली | Image: AP

जापान से एक चौंकाने वाली खबर आ रही है, जो दुनिया भर में बहस का टॉपिक बन गई है। यहां की सरकार ने मुस्लिम कम्युनिटी को दफनाने के लिए नई जमीन देने से साफ मना कर दिया है। इसका साफ मतलब है कि जापान में रहने वाले मुसलमानों को अपने प्रियजनों के शवों को दफनाने के लिए कोई दूसरा रास्ता ढूंढना होगा।

सरकारी अधिकारियों का कहना है कि देश में पहले से ही जगह की भारी कमी है और शहरों की डेंसिटी इसे और मुश्किल बना रही है। लेकिन सवाल यह है कि यह फैसला क्यों लिया गया?

जापान में दफनाया नहीं जाता शव

दरअसल, जापान अपनी मॉडर्निटी और ट्रेडिशन के लिए जाना जाता है। यह देश अब तेजी से बढ़ती मुस्लिम आबादी की प्रॉब्लम का सामना कर रहा है। एक अनुमान के मुताबिक, जापान में करीब 2 लाख मुसलमान रहते हैं, और इनकी संख्या हर साल बढ़ रही है। ये लोग ज्यादातर माइग्रेंट वर्कर हैं, जो टेक्नोलॉजी, बिजनेस और एजुकेशन के फील्ड में अहम योगदान दे रहे हैं। लेकिन जब आखिरी रस्मों की बात आती है, तो एक गंभीर प्रॉब्लम खड़ी हो जाती है।

जापान में पारंपरिक तौर पर शवों को जलाया जाता है, दफनाया नहीं जाता। मुसलमानों के धार्मिक नियमों के मुताबिक, दफनाना ही एकमात्र ऑप्शन है, जिसके लिए अलग कब्रिस्तान की जरूरत होती है। सरकार ने अब साफ कह दिया है कि कोई नई जमीन नहीं दी जाएगी। इसके बजाय, लाशों को हवाई जहाज से उनके देश वापस भेजने का सुझाव दिया गया है।

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क्या है इस फैसले का कारण?

इस फैसले के पीछे जापान में कई बड़ी चुनौतियां छिपी हैं। देश में बुज़ुर्गों की आबादी तेजी से बढ़ रही है, जिससे कब्रिस्तानों पर पहले से ही दबाव बढ़ रहा है। टोक्यो और ओसाका जैसे शहरों में तो हर इंच जमीन महंगे दाम पर बिक रही है। जानकारों का मानना ​​है कि इस फैसले का इमिग्रेशन पॉलिसी पर बुरा असर पड़ सकता है।

मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि यह फैसला बहुत निराशाजनक है। जापान जैसा डेवलप्ड देश धार्मिक डायवर्सिटी को इतना कैसे लिमिट कर सकता है? यह न सिर्फ मुसलमानों के अधिकारों का उल्लंघन है बल्कि ग्लोबल माइग्रेशन पर भी एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। 

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Published By : Kunal Verma

पब्लिश्ड 3 December 2025 at 19:49 IST