Updated April 16th, 2024 at 23:42 IST
मिडिल ईस्ट में तनाव से बदलेंगे 'दोस्त'! ईरानी हमले को लेकर भारत की प्रतिक्रिया के क्या हैं मायने?
Israel-Iran Conflict: इजरायल पर ईरानी हमले के बाद भारत ने तुरंत अपनी प्रतिक्रिया दी थी।
- दुनिया
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Israel-Iran Conflict: पिछले दशकों में मिडिल ईस्ट भारत की कूटनीति का एक बड़ा हिस्सा रहा है। हालांकि, मिडिल ईस्ट के हालात भारत की क्षमता को परखने का कोई मौका नहीं छोड़ते।
इस वक्त पूरी दुनिया दो हिस्सों में बंटी नजर आ रही है। एक हिस्सा इजरायल के साथ खड़ा है तो दूसरा उसके खिलाफ। इनसब के बावजूद भारत सिक्के के उस हिस्से पर अपनी उपस्थिति बनाए रखने में कामयाब रहा है, जिसमें युद्ध नहीं, शांति का पक्ष रखा जाए। इजरायल पर ईरानी हमले के बाद भारत ने भी तुरंत अपनी प्रतिक्रिया दी थी। भारत ने युद्ध को बढ़ावा न देने का पक्ष रखा था। ये मिडिल ईस्ट में कूटनीति का हिस्सा भी हो सकता है या फिर इस बात का संकेत भी हो सकता है कि इस हमले ने मिडिल ईस्ट में जारी तनाव के बीच एक नई पटकथा लिखनी शुरू कर दी है, जिसमें भविष्य की आहट छुपी है और इसके बाद दुनिया के मंच पर कई 'दोस्त' बदलने वाले हैं।
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क्या शांति का पक्ष पर्याप्त नहीं?
इजरायल-फिलीस्तीन युद्ध हो या रूस-यूक्रेन युद्ध...अभी तक भारत को कोई एक पक्ष लेने पर मजबूर नहीं होना पड़ा। भारत ने शुरुआत से ही 'शांति' के पक्ष को हाईलाइट किया और ग्लोबल मंच पर टू-स्टेट सॉल्यूशन की भी बात की जिससे इजरायल-हमास के बीच एक मुद्दे पर सहमति बन पाए। हालांकि, ईरान-इजरायल विवाद में एक बड़ी आफत छुपी है। भारत के तेहरान के साथ भी द्विपक्षीय संबंध हैं और तेल अवीव के साथ भी। ऐसे में अगर यह युद्ध छिड़ता है तो शायद भारत को एक पक्ष चुनने के लिए मजबूर भी होना पड़ सकता है।
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चूंकि, ईरान ने साफ कर दिया है कि दमिश्क में इजरायली हमले के खिलाफ उसका बदला पूरा हो गया है, ऐसे में अब ग्लोबल लीडर्स के बीच चर्चा ये है कि तेल अवीव इस हमले का जवाब देगा या नहीं। भारत, अमेरिका और कई अन्य देशों को उम्मीद है इजरायल बदला लेने के लिए ईरान पर हमला नहीं करेगा, क्योंकि अगर ऐसा होता है तो यह युद्ध किसी एक देश या क्षेत्र तक सीमित नहीं रह जाएगी, बल्कि इसमें दुनिया के अन्य कई देश भी घसीटे जाएंगे, जो अभी तक किसी एक देश का पक्ष लेने से बचते आए हैं। दूसरी ओर, भारत ने भले ही इजरायल पर 7 अक्टूबर के हमले की निंदा की थी, लेकिन उसने हमेशा क्षेत्रीय शांति को सबसे ऊपर रखा है। ऐसे में एक 'महायुद्ध' के बीच भारत का किसका पक्ष लेगा, ये फिलहाल चर्चा का विषय है। हालांकि, ये तो साफ है कि भारत को प्रमुख क्षेत्रीय सहयोगियों- मिस्र, ईरान, इजरायल, कतर, तुर्की, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के साथ अपने जुड़ाव को हमेशा संतुलित करते रहना होगा, क्योंकि ये हमेशा किसी न किसी संघर्ष से घिरे रहते हैं।
भारत के मिडिल-ईस्ट सहयोगियों पर एक नजर...
मिडिल ईस्ट में भारत के हित अब तेल आयात और श्रम निर्यात तक सीमित नहीं हैं। खाड़ी अरब देश, विशेष रूप से सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात भारत के लिए प्रमुख आर्थिक और राजनीतिक भागीदार बनकर उभरे हैं। खाड़ी अरब साझेदारियां द्विपक्षीय से अब कहीं आगे निकल गई हैं। व्यापक हिंद महासागर तटीय क्षेत्र हो या मिडिल ईस्ट यूरोप कॉरिडोर (IMEC), मिडिल ईस्ट के साथ भारत के संबंध अब नेक्स्ट लेवल के हैं और वो आज भारत के अंतर-क्षेत्रीय एजेंडे में टॉप पर है। इसके अलावा अफगानिस्तान, पाकिस्तान और सेंट्रल एशिया के साथ भारत के संबंध को बेहतर बनाने में ईरान ने भी अहम भूमिका निभाई है।
इनसब के बीच एक बात तो साफ है कि मिडिल ईस्ट से डील करना आसान नहीं है और यह किसी हल्के देश का काम भी नहीं है। वहीं, भारत इन देशों का एक ताकतवर पड़ोसी बनकर उभरा है, जिसने पिछले कुछ देशों के विवादों को करीब से देखकर और हर पैमाने पर दूसरे देशों के साथ खड़ा रहकर ये भी दिखा दिया है कि चाहे कोई भी चुनौती आए, भारत शांति के पक्ष का हमेशा पक्षधर रहेगा और हर मौके पर युद्ध से अलग शांति की राह चुनने में उन देशों की मदद करने में सबसे आगे खड़ा रहेगा।
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Published April 16th, 2024 at 20:29 IST
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