अपडेटेड 5 March 2025 at 07:59 IST
Ganesha Stotra: बुधवार को करें गणेश जी के इस स्तोत्र का पाठ, बनी रहेगी खुशहाली; नहीं होगी पैसों की तंगी!
Shri Ganpati Stotram: अगर आप गणेश जी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो आपको इस स्तोत्र का पाठ जरूर करना चाहिए।
- धर्म और अध्यात्म
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Shri Ganpati Stotram: हिंदू धर्म में भगवान गणेश को एक विशेष स्थान प्राप्त है। जिस कारण किसी भी शुभ या मांगलिक कार्य को करने से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। लिहाजा बुधवार का दिन गणपति बप्पा को समर्पित है। इस दिन गणेश भगवान की पूजा करना बेहद खास माना जाता है।
कहा जाता है कि अगर किसी भी काम की शुरुआत गणेश जी का नाम लेकर की जाए तो उस कार्य को सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है। बुधवार के दिन भक्त गणेशजी को प्रसन्न करने के लिए व्रत और पूजा करते हैं। पूजा के दौरान आप गणेश स्तोत्र का पाठ कर बप्पा को प्रसन्न कर सकते हैं। आइए जानते हैं इस बारे में।
श्री गणपति स्तोत्र (Shri Ganpati Stotram)
ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र
ध्यानम्
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सिन्दूरवर्णं द्विभुजं गणेशं लम्बोदरं पद्मदले निविष्टम्।
ब्रह्मादिदेवैः परिसेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणमामि देवम्॥
स्तोत्र पाठ
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सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजितः फलसिद्धये।
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥
त्रिपुरस्य वधात्पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चितः।
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥
हिरण्यकश्यपादीनां वधार्थे विष्णुनार्चितः।
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥
महिषस्य वधे देव्या गणनाथः प्रपूजितः।
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥
तारकस्य वधात्पूर्वं कुमारेण प्रपूजितः।
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥
भास्करेण गणेशस्तु पूजितश्छविसिद्धये।
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥
शशिना कान्तिसिद्ध्यर्थं पूजितो गणनायकः।
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥
पालनाय च तपसा विश्वामित्रेण पूजितः।
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥
इदं त्वृणहरं स्तोत्रं तीव्रदारिद्र्यनाशनम्।
एकवारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं समाहितः॥
दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेरसमतां व्रजेत्।
फडन्तोऽयं महामन्त्रः सार्धपञ्चदशाक्षरः॥
अस्यैवायुतसंख्याभिः पुरश्चरणमीरितम।
सहस्रावर्तनात् सद्यो वाञ्छितं लभते फलम्॥
भूत-प्रेत-पिशाचानां नाशनं स्मृतिमात्रतः॥
श्री सङ्कटनाशन गणेश स्तोत्रम्
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मेरनित्यमायाः कामार्थसिद्धये॥
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्।
तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्॥
लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टकम्॥
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम॥
द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो॥
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मोक्षार्थी लभते गतिम्॥
जपेद्गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं चलभते नात्र संशय:॥
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत्।
तस्य विद्या भवेत्सर्वागणेशस्य प्रसादत:॥
ऋणमुक्ति श्री गणेश स्तोत्रम्
ॐ स्मरामि देवदेवेशं वक्रतुण्डं महाबलम्।
षडक्षरं कृपासिन्धुं नमामि ऋणमुक्तये॥
महागणपतिं वन्दे महासेतुं महाबलम्।
एकमेवाद्वितीयं तुनामि ऋणमुक्तये॥
एकाक्षरं त्वेकदन्तं एकं ब्रह्म सनातनम्।
महाविघ्नहरं देवं नमामि ऋणमुक्तये॥
शुक्लाम्बरं शुक्लवर्णं शुक्लगन्धानुलेपनम्।
सर्वशुक्लमयं देवं नमामि ऋणमुक्तये॥
रक्ताम्बरं रक्तवर्णं रक्तगन्धानुलेपनम्।
रक्तपुष्पैः पूज्यमानं नमामि ऋणमुक्तये॥
कृष्णाम्बरं कृष्णवर्णं कृष्णगन्धानुलेपनम्।
कृष्णयज्ञोपवीतं च नमामि ऋणमुक्तये॥
पीताम्बरं पीतवर्णं पीतगन्धानुलेपनम्।
पीतपुष्पैः पूज्यमानं नमामि ऋणमुक्तये॥
सर्वात्मकम् सर्ववर्णं सर्वगन्धानुलेपनम्।
सर्वपुष्पैः पूज्यमानं नमामि ऋणमुक्तये॥
एतद् ऋणहरं स्तोत्रं त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नरः।
षण्मासाभ्यन्तरे तस्य ऋणच्छेदो न संशयः॥
सहस्रदशकं कृत्वा ऋणमुक्तो धनी भवेत्॥
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।
Published By : Kajal .
पब्लिश्ड 5 March 2025 at 07:59 IST