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अपडेटेड May 10th 2025, 08:45 IST

Shani Stotra: आज शनिदेव की पूजा में करें इस खास स्तोत्र का पाठ, हर दुख से मिलेगा छुटकारा

Shani Stotra: शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा करते समय आपको इस स्तोत्र का पाठ जरूर करना चाहिए।

Reported by: Kajal .
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lord shani
शनि देव | Image: Shutterstock

Dashrathkrit Shani Stotram: हिंदू धर्म में शनिदेव का स्थान काफी महत्वपूर्ण है। शनिदेव को कर्मफल दाता और न्याय का देवता भी कहा जाता है। सप्ताह में पड़ने वाले शनिवार का दिन भगवान शनि को समर्पित है। इस दिन उनकी पूजा करना बेहद शुभ माना जाता है। कहते हैं शनिदेव भक्तों के कर्मों के अनुसार उन्हें फल या दंड देते हैं। हालांकि अगर एक बार शनिदेव की कृपा दृष्टि अपने भक्तों पर पड़ जाए तो वह उनके सभी तरह के कष्टों का नाश कर देते हैं।

ऐसे में अगर आप भी चाहते हैं कि शनिदेव आप पर हमेशा अपनी कृपा बनाए रखें तो आपको शनिवार के दिन उनके इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ जरूर करना चाहिए। आइए जानते हैं इस स्तोत्र के लिरिक्स के बारे में।

दशरथकृत शनि स्तोत्रम् (Dashrathkrit Shani Stotram)

नमः कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ-निभाय च ।
नमः कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नमः ॥

नमो निर्मांस-देहाय दीर्घ-श्मश्रु-जटाय च ।
नमो विशाल-नेत्राय शुष्कोदर-भयाकृते ॥

नमः पुष्कलगात्राय स्थूल-रोम्णेऽथ वै नमः ।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नमः ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥

नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते ।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ॥

अधोदृष्टे नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते ।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तु ते ॥

तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नमः ॥

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥

देवासुर-मनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगाः ।
त्वया विलोकिताः सर्वे नाशं यान्ति समूलतः ॥

प्रसादं कुरु मे सौरे! वारदो भव भास्करे ।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबलः ॥

दशरथ उवाच:

प्रसन्नो यदि मे सौरे! वरं देहि ममेप्सितम् ।
अद्य प्रभृति पिङ्गाक्ष! पीडा देया न कस्यचित् ॥

शनैश्चर स्तोत्रम्

कोणोऽन्तको रौद्रयमोऽथ बभ्रुः कृष्णः शनिः पिङ्गलमन्दसौरिः ।
नित्यं स्मृतो यो हरते च पीडां तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥

सुरासुराः किंपुरुषोरगेन्द्रा गन्धर्वविद्याधरपन्नगाश्च ।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥

नरा नरेन्द्राः पशवो मृगेन्द्रा वन्याश्च ये कीटपतङ्गभृङ्गाः ।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥

देशाश्च दुर्गाणि वनानि यत्र सेनानिवेशाः पुरपत्तनानि ।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥

तिलैर्यवैर्माषगुडान्नदानैः लोहेन नीलाम्बरदानतो वा ।
प्रीणाति मन्त्रैर्निजवासरे च तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥

प्रयागकूले यमुनातटे च सरस्वतीपुण्यजले गुहायाम् ।
यो योगिनां ध्यानगतोऽपि सूक्ष्मस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥

अन्यप्रदेशात्स्वगृहं प्रविष्टस्तदीयवारे स नरः सुखी स्यात् ।
गृहाद् गतो यो न पुनः प्रयाति तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥

स्रष्टा स्वयंभूर्भुवनत्रयस्य त्राता हरीशो हरते पिनाकी ।
एकस्त्रिधा ऋग्यजुःसाममूर्तिस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥

शन्यष्टकं यः प्रयतः प्रभाते नित्यं सुपुत्रैः पशुबान्धवैश्च ।
पठेत्तु सौख्यं भुवि भोगयुक्तः प्राप्नोति निर्वाणपदं तदन्ते ॥

कोणस्थः पिङ्गलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोऽन्तको यमः ।
सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः ॥

एतानि दश नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत् ।
शनैश्चरकृता पीडा न कदाचिद्भविष्यति ॥

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्‍यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।

पब्लिश्ड May 10th 2025, 08:45 IST