अपडेटेड 14 September 2025 at 12:28 IST

Jitiya Vrat 2025 Katha: आज सभी माताएं जरूर पढ़ें जितिया व्रत कथा, संतान को मिलेगा लंबी आयु और सुख-शांति का आशीर्वाद

Jitiya Vrat 2025 Katha: इस साल जितिया व्रत 14 सितंबर यानी कि आज रविवार के दिन रखा जा रहा है। इस दिन जो माताएं व्रत रख रही हैं, वह कथा जरूर पढ़ें। आइए इस लेख में विस्तार से व्रत कथा के बारे में विस्तार से जानते हैं।

Jitiya Vrat 2025 Katha
Jitiya Vrat 2025 Katha | Image: Freepik

Jitiya Vrat 2025 Katha: हिंदू पंचांग के हिसाब से जितिया व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। इस दिन सभी माताएं निर्जला व्रत रखती हैं और पूजा-पाठ करती हैं। यह व्रत विशेष रूप से पूर्वांचल और बिहार में किया जाता है। यह व्रत छठ पूजा जितना पुण्य फलदायी माना जाता है। जितिया व्रत 3 दिन का होता है। 

पंचागं के हिसाब से यह व्रत हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि से आरंभ होता है। वहीं अष्टमी तिथि पर निर्जला व्रत अष्टमी तिथि के दिन किया जाता है और व्रत का पारण नवमी के दिन किया जाता है। आपको बता दें, आज 14 सितंबर को जितिया व्रत किया जा रहा है। 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो महिलाएं जितिया व्रत करती हैं, उन्हें इस कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। उन्हें शुभ परिणाम मिलते हैं। अब ऐसे में आइए इस लेख में व्रत कथा के बारे में विस्तार से जानते हैं।

आज माताएं पढ़ें जितिया व्रत कथा 

पौराणिक कथा के अनुसार, यह कथा महाभारत युद्ध के बाद की है। जब गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु हुई, तो उनके पुत्र अश्वत्थामा को बहुत क्रोध आया और वह बदला लेने के लिए पांडवों के शिविर में रात के समय चुपचाप घुस गया। शिविर में पांच व्यक्ति सोए हुए थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार डाला। परंतु दुर्भाग्यवश, वे पांडव नहीं थे, बल्कि द्रौपदी और पांडवों की पांच संतानें थीं। इस क्रूर कार्य से द्रौपदी का हृदय विदीर्ण हो गया।

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इसके बाद अर्जुन ने अश्वत्थामा को पकड़कर उसकी दिव्य मणि उसके माथे से निकाल ली। अर्जुन ने उसे दंड दिया और उसे अपमानित करके छोड़ दिया। लेकिन अश्वत्थामा का क्रोध अभी भी शांत नहीं हुआ था। वह फिर से पांडवों को हानि पहुंचाने की योजना बनाने लगा।

इस बार उसने निशाना बनाया अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा को, जो उस समय गर्भवती थीं। अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करते हुए उत्तरा के गर्भ पर हमला किया ताकि वह उनके होने वाले बच्चे को मार सके। यह ब्रह्मास्त्र इतना शक्तिशाली था कि अजन्मे शिशु का जीवन संकट में पड़ गया।

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लेकिन तभी भगवान श्रीकृष्ण ने समय पर हस्तक्षेप किया। उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति से उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को पुनः जीवनदान दिया। इस चमत्कारिक पुनर्जन्म के कारण उस बच्चे का नाम 'जीवितपुत्र रखा गया, जो आगे चलकर राजा परीक्षित कहलाए।

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चूंकि श्रीकृष्ण ने उत्तरा और उसके पुत्र की रक्षा की, इसीलिए इस घटना को एक अद्भुत और चमत्कारी घटना माना गया। तब से यह मान्यता बनी कि यदि मां सच्चे मन और श्रद्धा से उपवास करे, तो उसकी संतान की उम्र लंबी होती है और जीवन में संकट नहीं आता।

तभी से जीवितपुत्रिका व्रत या जितिया व्रत की परंपरा शुरू हुई। यह व्रत खासकर उत्तर भारत बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन माताएं निर्जला व्रत रखती हैं, यानी बिना जल पिए उपवास करती हैं और भगवान से अपने बच्चों की कुशलता की कामना करती हैं।

Published By : Aarya Pandey

पब्लिश्ड 14 September 2025 at 12:28 IST