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Published 11:53 IST, August 26th 2024

Janmashtami 2024: जन्माष्टमी व्रत कथा क्या है? मिलेगा पूजा का पूरा फल...

How to do Krishna Janmashtami fasting? कृष्ण जन्माष्टमी की कथा क्या है? जानते हैं शाम के वक्त कौन-सी कथा पढ़ें...

janmashtami vrat katha kya hai
janmashtami vrat katha kya hai | Image: freepik

How to do Krishna Janmashtami fasting? कृष्ण जी का जन्मोत्सव भादो महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। कहते हैं कि इस दिन भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन का नाम जन्माष्टमी पड़ा। यदि आप भी जन्माष्टमी के पावन मौके पर व्रत रख रहे हैं तो आप यहां दी गई कथा के माध्यम से अपने व्रत को पूरा कर सकते हैं। 

जी हां जन्माष्टमी की कथा पढ़कर ही व्रत का पूरा फल आपको मिल सकता है। आज का हमारा लेख इसी विषय पर है। आज हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से बताएंगे कि जन्माष्टमी के पावन मौके पर आप कौन सी कथा पढ़ सकते हैं। पढ़ते हैं आगे… 

कृष्ण जन्माष्टमी की कथा क्या है?

भगवान कृष्ण का जन्म देवकी और वासुदेव के यहां, कारावास में हुआ था। देवकी राजा कंस की बहन थीं और वो अपनी बहन से बहुत प्यार करता था और देवकी की हर इच्छा को पूरा भी करता था। ऐसे में कंस ने अपनी बहन देवकी के लिए वर के रूप में वासुदेव का चुनाव किया और धूमधाम से उनकी शादी करवाई। जब विवाह पूरा हुआ तो बहन को विदा करने की बारी आई। 

उस वक्त एक आकाशवाणी हुई, जिसमें कहा गया कि तू जिस लाडली बहन को विदा कर रहा है उसका आठवां पुत्र तेरी मौत का कारण बनेगा। कंस अपनी मौत से डर गया और उसने फैसला किया देवकी को मारने का। उस समय वासुदेव ने कंस से प्रार्थना की और कहा कि देवकी की आठवीं औलाद को उसे सौंप देंगे। तब कंस ने मन में सोचा कि जरूरी नहीं कि आठवां पुत्र ही मेरी मौत का कारण बने, हो सकता है उससे पहले ही कोई और संतान मुझे मार दे। 

ऐसे में कंस ने कहा कि मुझे देवकी की हर औलाद चाहिए। उस समय वासुदेव ने हां कर दी। उसके बाद कंस ने देवकी की 7 औलादों को मार दिया। जब आठवीं संतान कृष्ण पैदा हुए थे तब उस समय अपने आप ही सारे नींद की गोद में चले गए और तेज वर्षा होने लगी। अचानक से सारे द्वार खुल गए और वासुदेव कृष्ण को अपने मित्र नंदबाबा के पास ले गए। ऐसे में उन्होंने एक टोकरी में बाल गोपाल को रखा और मार्ग में पड़ने वाली यमुना नदी को पार किया। उस दौरान नदी कान्हा के चरण छूने के लिए अपना बहाव बढ़ा रही थी। कृष्ण जी के चरणों छूते ही नदी ठहर गई। तब वासुदेव ने यशोदा और नंद बाबा को श्री कृष्ण को सौंप दिया। तो ये थी पूरी कहानी।

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्‍यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।

Updated 11:53 IST, August 26th 2024