अपडेटेड 6 July 2025 at 17:26 IST
श्रावण मास भगवान शिव और उनकी अर्धांगिनी माता गौरी की पूजा के लिए समर्पित है। जिस तरह सावन के सोमवार को भगवान शिव के लिए व्रत रखा जाता है, उसी तरह मंगलवार को माता का व्रत रखा जाता है।
वैसे तो साल में कई व्रत आते और उनका महत्व भी काफी अहम होता है। तो आइए जानते हैं क्यों रखा जाता है गौरी व्रत और क्या है इसकी मान्यता। साथ ही, बताएंगे गौरी व्रत से जुड़ी पूजा विधि, नियम और मुहूर्त से जुड़ी चीजें-
मान्यता है कि मां पार्वती ने भी भगवान शिव को पाने के लिए कठोर उपवास किया था। ठीक उसी तरह अच्छा वर पाने के लिए कुंवारी लड़कियां यह व्रत करती हैं।
व्रत रखने के लिए आप सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। इसके बाद मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें। एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर कलश स्थापना करें और उसमें आम के पत्ते और नारियल रखें। इसके बाद मां गौरी को हल्दी, कुमकुम, चूड़ी, बिंदी, वस्त्र और सुहाग की अन्य सामग्री चढ़ाएं। इसके बाद मां गौरी की व्रत कथा सुनें। घी का दीपक जलाएं और मां की आरती करें और "ऊँ गौरी त्रिपुरसुंदरी नमः" मंत्र का जाप करें। व्रत समाप्ति के बाद छोटी उम्र की कन्याओं को भोजन करवाएं व वस्त्र भेंट करें।
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि (सुबह 09 बजकर 14 मिनट) 5 जुलाई को पड़ रही है। दृक पंचांगानुसार, 6 जुलाई को एकादशी तिथि सुबह 09 बजकर 14 मिनट तक रहेगी, फिर उसके बाद द्वादशी तिथि शुरू हो जाएगी।
रविवार के दिन त्रिपुष्कर योग, रवि योग के साथ भद्रा का साया भी होगा। बता दें कि ‘त्रिपुष्कर योग’ तब बनता है जब रविवार, मंगलवार व शनिवार के दिन द्वितीया, सप्तमी व द्वादशी में से कोई एक तिथि हो एवं इन 2 योगों के साथ उस दिन विशाखा, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, पुनर्वसु व कृत्तिका नक्षत्र हो।
इसके अलावा रवि योग तब बनता है जब चंद्रमा का नक्षत्र सूर्य के नक्षत्र से 4, 6, 9, 10, 13 और 20वें स्थान पर हो।
रविवार के दिन भद्रा का समय सुबह 05 बजकर 56 मिनट से शुरू होकर रात के 10 बजकर 42 मिनट पर खत्म हो जाएगा। त्रिपुष्कर योग का समय रात के 09 बजकर 14 मिनट से शुरू होकर रात के 10 बजकर 42 मिनट तक रहेगा। साथ ही रवि योग का समय सुबह 05 बजकर 56 मिनट से शुरू होकर रात के 10 बजकर 42 मिनट तक रहेगा।
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पब्लिश्ड 6 July 2025 at 17:26 IST