अपडेटेड 23 April 2025 at 09:39 IST

Ganesh Puja: बुधवार को जरूर करें गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ, हर बाधा होगी दूर, बनेगा बिगड़ा काम!

Ganpati Atharvashirsha Lyrics In Hindi: गणेश जी को खुश करने के लिए आपको गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ जरूर करना चाहिए।

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Lord Ganesha
गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ | Image: Pexels

Ganpati Atharvashirsha: सनातन धर्म में बुधवार के दिन का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान गणेश जी (Lord Ganesh) की पूजा अर्चना और व्रत किए जाने की परंपरा है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति बुधवार के दिन सच्चे मन से भगवान गणेश जी की पूजा करता है उस पर हमेशा गणपति जी की कृपा बनी रहती है।

इतना ही नहीं शास्त्रों के अनुसार गणेश जी को किसी भी शुभ कार्य या पूजा की शुरुआत में सबसे पहले पूजा जाता है, ऐसा इसलिए क्योंकि माना जाता है कि जिस भी कार्य या पूजा की शुरुआत से पूर्व गणेश जी का नाम लिया जाता है वह कार्य व पूजा हमेशा सफल होते हैं। वहीं अगर आप भगवान गणेश की कृपा पाना चाहते हैं तो आपको बुधवार की पूजा करते समय  गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ जरूर करना चाहिए। आइए जानते हैं इसके लिरिक्स किस तरह से हैं।

गणपति अथर्वशीर्ष (Ganpati Atharvashirsha)

ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः ।
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाग्ंसस्तनूभिः ।
व्यशेम देवहितं यदायूः ॥
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः ।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः ।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

ॐ नमस्ते गणपतये
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि ।
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि ।
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि ।
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि ।
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि ।
त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम् ॥

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ऋतं वच्मि । सत्यं वच्मि ॥

अव त्वं माम् ।
अव वक्तारम् ।
अव श्रोतारम् ।
अव दातारम् ।
अव धातारम् ।
अवानूचानम् अव शिष्यम् ॥

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अव पुरस्तात् । अव दक्षिणात्तात् ।
अव पश्चात्तात् । अवोत्तरात्तात् ।
अव चोर्ध्वात्तात् । अवधरात्तात् ।
सर्वतो मां पाहि पाहि समन्तात् ॥

त्वं वाङ्मयः, चिन्मयः, आनन्दमयः, ब्रह्ममयः ।
त्वं सच्चिदानन्द अद्वितीयोऽसि ।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि ।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ॥

सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते ।
त्वयि लयं यास्यति, त्वयि प्रत्येति ।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः ।
त्वं चत्वारि वाक्पदानि ।
त्वं गुणत्रयातीतः, अवस्थात्रयातीतः, देहत्रयातीतः, कालत्रयातीतः ।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम् ।
त्वं ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, इन्द्र, अग्नि, वायु, सूर्य, चन्द्रमाः ।

गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादींस्तदनन्तरम् ।
एतत्तव मनुस्वरूपम् ।
गकारः पूर्वरूपम् । अकारो मध्यरूपम् ।
अनुस्वारश्च अन्त्यरूपम् । बिन्दुरुत्तररूपम् ।
नादः संधानम् । सग्ं‌हिता संधिः ॥

इत्यथर्वण वाक्यम् ।
ब्रह्माद्यावरणं विद्यान्न बिभेति कदाचन ।
य एवं वेद — स सर्वविद् भवति ॥

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्‍यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।

Published By : Kajal .

पब्लिश्ड 23 April 2025 at 09:39 IST