अपडेटेड 5 November 2025 at 09:42 IST
Dev Deepawali Katha 2025: काशी में ही क्यों मनाई जाती है देव दिवाली? जानें क्या है मान्यता
Dev Deepawali Katha 2025: देव दीपावली का पर्व सौभाग्य का कारक माना जाता है। अब ऐसे में काशी में ही क्यों देव दीपवाली मनाई जाती है? आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
- धर्म और अध्यात्म
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Dev Deepawali Katha 2025: देव दीपावली, जिसे देव दिवाली या त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला एक मनमोहक पर्व है। यह दीपावली के ठीक 15 दिन बाद आता है और माना जाता है कि इस दिन स्वर्ग के देवता धरती पर उतरकर दीप प्रज्वलित करते हैं। इस वर्ष देव दीपावली 5 नवंबर 2025 यानी कि आज मनाई जा रही है। यह पर्व पूरे देश में श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है, वहीं वाराणसी की गंगा घाटों पर इसका जो भव्य स्वरूप देखने को मिलता है। आखिर क्यों यह पर्व विशेष रूप से काशी से जुड़ा है? आइए इसके बारे में विस्तार से ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद त्रिपाी से विस्तार से जानते हैं।
देव दीपावली की कथा पढ़ें
देव दीपावली का सबसे प्रमुख आधार भगवान शिव और त्रिपुरासुर से जुड़ी कथा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, त्रिपुरासुर नामक एक अत्यंत शक्तिशाली दैत्य था, जिसने अपनी तपस्या से वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसे तब तक नहीं मारा जा सकता जब तक कि तीनों पुर यानी कि नगर जैसे कि स्वर्ण, रजत और लौह एक सीध में न आ जाएं और उसे मारने वाला शस्त्र कोई ऐसा हो जो धरती पर न बना हो, स्त्री न हो और एक ही बाण हो। इस वरदान के अहंकार में त्रिपुरासुर ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया। देव, ऋषि-मुनि और मनुष्य सभी भयभीत हो गए और उन्होंने भगवान विष्णु की शरण ली, जिन्होंने उन्हें भगवान शिव की आराधना करने का मार्ग बताया।
भगवान शिव ने जगत के कल्याण के लिए त्रिपुरासुर के विनाश का संकल्प लिया। उन्होंने अपने दिव्य रथ पर बैठकर होकर, जिसमें पृथ्वी रथ, सूर्य-चंद्रमा पहिये, मेरु पर्वत धनुष और शेषनाग डोर थे, त्रिपुरासुर पर चढ़ाई की। जब समय आया और तीनों नगर एक सीध में आए, तब महादेव ने एक ही बाण से तीनों पुरों सहित त्रिपुरासुर का संहार कर दिया।
काशी से क्या है देव दीपावली का संबंध
मान्यताओ के अनुसार, त्रिपुरासुर के वध के बाद, तीनों लोकों में शांति और आनंद की लहर दौड़ गई। देवताओं ने इस विजय और बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव मनाया। ऐसी मान्यता है कि देवताओं ने भगवान शिव की नगरी काशी में आकर, गंगा के पवित्र घाटों पर दीप जलाकर भगवान शिव का आभार व्यक्त किया और आनंद मनाया। यह दीपावली देवताओं द्वारा मनाई गई थी, इसलिए इस दिन को 'देव दीपावली' कहा जाने लगा।
कार्तिक पूर्णिमा की रात, दशाश्वमेध घाट सहित 84 घाटों को लाखों मिट्टी के दीयों से जगमगाया जाता है। गंगा की लहरों पर तैरते ये दीये और भव्य गंगा आरती का दृश्य अद्भुत प्रतीत होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन देव स्वयं काशी में उपस्थित होकर दीपदान करते हैं, इसलिए यहां दीपदान का पुण्य अनंत गुना फलदायी होता है।
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देव दीपावली का महत्व
देव दीपावली के दिन दीपक जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान और दीपदान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन दीपदान करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
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Published By : Sagar Singh
पब्लिश्ड 5 November 2025 at 09:42 IST