अपडेटेड 2 July 2025 at 18:14 IST
हिंदू पंचांग के मुताबिक आषाढ़ शुक्ल एकादशी (6 जुलाई) से चातुर्मास का आरंभ हो रहा है। यह चार महीने का वह पवित्र काल होता है, जब भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं और धार्मिक दृष्टि से मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है। शादी, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे कार्य इन महीनों में वर्जित माने जाते हैं।
चातुर्मास तप, साधना और उपासना का काल है। इस अवधि में आत्मिक उन्नति के लिए उपवास, जाप और सेवा को खास फलदायी माना गया है। इस साल चातुर्मास में कई बड़े पर्व आएंगे जो धार्मिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक महत्व रखते हैं।
10 जुलाई: गुरु पूर्णिमा, गुरुजनों को समर्पित पर्व
11 जुलाई: सावन मास आरंभ, शिव पूजन का शुभ काल
14 जुलाई: पहला सोमवार व्रत और गणेश चतुर्थी
15 जुलाई: मधु श्रावणी व्रत आरंभ, मिथिलांचल का पारंपरिक लोकपर्व
23 जुलाई: श्रावण शिवरात्रि
27 जुलाई: हरियाली तीज और मधु श्रावणी व्रत समापन
29 जुलाई: नाग पंचमी
31 जुलाई: तुलसीदास जयंती
9 अगस्त: रक्षा बंधन और श्रावणी पूर्णिमा
15 जुलाई से आरंभ होने वाला मधु श्रावणी व्रत, 27 जुलाई तक चलेगा। इस व्रत को विशेष रूप से नवविवाहिताएं करती हैं। इसमें नाग-नागिन, सप्तकन्या, सप्तऋषि और देवी पार्वती की पूजा की जाती है। यह पर्व मिथिला की स्त्री परंपरा और सौभाग्य की कामना का प्रतीक है। चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु के योग निद्रा में रहने के कारण शुभ कार्यों को रोका जाता है। यह काल आत्मचिंतन, संयम और भक्ति का समय होता है। यह अवधि 4 नवंबर 2025 (प्रबोधिनी एकादशी) तक चलेगी।
चातुर्मास सिर्फ एक धार्मिक अवधि ही नहीं, बल्कि यह मौसम परिवर्तन, जीवनशैली में अनुशासन और आंतरिक शुद्धि का काल भी माना जाता है। वर्षा ऋतु के दौरान रोगों की संभावना ज्यादा होती है, ऐसे में व्रत, सादा भोजन और संयमित जीवन जीने की परंपरा आयुर्वेदिक दृष्टि से भी लाभकारी मानी गई है। संत-महात्मा भी इन महीनों में भ्रमण नहीं करते, एक ही स्थान पर रहकर सत्संग, उपदेश और साधना करते हैं। यही कारण है कि चातुर्मास का काल भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति में अत्यंत पूज्य और प्रभावशाली माना जाता है।
पब्लिश्ड 2 July 2025 at 18:05 IST