अपडेटेड 6 August 2025 at 18:23 IST

PM Modi To Visit China: नहले पे दहला... डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ धमकी के बीच PM मोदी जाएंगे चीन, गलवान झड़प के बाद होगा पहला दौरा

PM Modi To Visit China: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अगस्त से 1 सितंबर तक तियानजिन शहर में आयोजित होने वाले SCO समिट (शंघाई सहयोग संगठन) में भाग लेने के लिए चीन का दौरा करेंगे।

PM Modi-Xi Jinping
पीएम मोदी-शी जिनपिंग | Image: AP

PM Modi To Visit China: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अगस्त से 1 सितंबर तक तियानजिन शहर में आयोजित होने वाले SCO समिट (शंघाई सहयोग संगठन) में भाग लेने के लिए चीन का दौरा करेंगे। आपको बता दें कि 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद दोनों देशों के संबंधों को बेहतर बनाने की दिशा में यह एक अहम कदम होगा। पीएम मोदी की पिछली चीन यात्रा 2019 में हुई थी, लेकिन उन्होंने अक्टूबर 2024 में कजान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की थी।

SCO समिट में भाग लेने से पहले, पीएम मोदी 30 अगस्त को जापान की यात्रा पर जाएंगे, जहां वे जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के साथ सालाना भारत-जापान समिट में भाग लेंगे। एजेंसी सूत्रों के अनुसार, वहां से वे चीन के लिए रवाना होंगे।

यह यात्रा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कड़े टैरिफ लगाए जाने और रूस से तेल खरीद को लेकर भारत पर बढ़ते दबाव के बीच हो रही है। माना जा रहा है कि यह दौरा भारत-चीन के संबंधों में सुधारों के साथ डोनाल्ड ट्रंप को भी भारत का करारा जवाब होगा। इससे पहले रूस और चीन ने RIC अलायंस को फिर से जिंदा करने के लिए भी भारत से बात की थी। ऐसे में डोनाल्ड ट्रंप की चिंता बढ़ सकती है कि अगर भारत-चीन एक मंच पर आए तो अमेरिका की सारी टैरिफ धमकियां हवा हो जाएंगी।

भारत-चीन की 'दोस्ती' से पाकिस्तान को भी होगी दिक्कत

जून में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एससीओ के तहत रक्षा मंत्रियों की बैठक में संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था, क्योंकि इसमें 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले का कोई उल्लेख नहीं था, जिसमें 26 लोगों की जान चली गई थी। इसके बजाय, इसमें बलूचिस्तान का उल्लेख किया गया था, और भारत पर वहां अशांति पैदा करने का मौन आरोप लगाया गया था।

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उस वक्त ऐसा माना गया था कि पहलगाम को दस्तावेज से बाहर रखा जाना पाकिस्तान के इशारे पर किया गया था। हालांकि, अगले महीने, चीन ने आतंकवाद के खिलाफ एक कड़ा बयान जारी किया, जब अमेरिका ने पहलगाम हमले में संलिप्तता के लिए पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा के प्रॉक्सी, द रेजिस्टेंस फ्रंट यानी TRF को एक विदेशी आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा, "चीन सभी प्रकार के आतंकवाद का दृढ़ता से विरोध करता है और 22 अप्रैल को हुए आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा करता है। चीन क्षेत्रीय देशों से आतंकवाद-रोधी सहयोग बढ़ाने और क्षेत्रीय सुरक्षा एवं स्थिरता को संयुक्त रूप से बनाए रखने का आह्वान करता है।"

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अगर RIC जिंदा हुआ तो क्या होगा?

RIC फ्रेमवर्क को पहली बार 1990s के अंत में सामने लाया गया था। इसके कर्ताधर्ता पूर्व रूसी प्रधानमंत्री येगेनी प्रिमाकोव थे। उनकी सोच सीधी थी कि यूरेशिया के तीन बड़े देश एक साथ आकर क्षेत्रीय प्रभाव के जरिए मल्टीपोलर वर्ल्ड ऑर्डर को एक नया आकार दें। 2000s से लेकर 2010s की शुरुआत तक लगातार मीटिंग्स का दौर चलता रहा। यह मीटिंग सीनियर अधिकारियों तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि इसमें बड़े-बड़े नेता भी शामिल थे।

NATO या EU की तरह RIC एक मिलिट्री या इकोनॉमिक ब्लॉक तो नहीं बन पाया, लेकिन इसके जरिए UN और WTO में बैकचैनल और सहयोग बढ़ाने में काफी मदद मिली। RIC के निष्क्रिय होने के दो अहम कारण थे, जिसमें एक तो महामारी थी जिसकी वजह से कई ग्रुप सस्पेंड हो गए और वर्चुअल मीटिंग्स को जरूरी फॉर्मेट के लिए ही लागू किया गया, जिसमें G20 या BRICS जैसे संगठन शामिल थे। RIC ग्रुप को बंद करने का दूसरा कारण गलवान घाटी का संघर्ष था, जिसकी वजह से भारत-चीन के रिश्ते खराब हो गए थे।

अगर भारत-चीन और रूस एक साथ आ जाते हैं तो इससे अमेरिका की अगुवाई वाले संगठनों की हवा निकल जाएगी। RIC को NATO के बराबर की ताकत बनाया जा सकता है, जो डोनाल्ड ट्रंप के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है। इससे अमेरिका का दबदबा घटने की भी संभावना है और वर्ल्ड ऑर्डर में भी बदलाव आ सकता है।

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Published By : Kunal Verma

पब्लिश्ड 6 August 2025 at 18:23 IST