Published 20:05 IST, September 13th 2024
सीजेआई के घर पीएम की गणेश पूजा, CJI से दिक्कत या बप्पा से?
देश में आजकल हर मुद्दे पर धर्म की तलाश की जा रही है। तभी तो पीएम मोदी का गणेश चतुर्थी के मौके पर CJI डीवाई चंद्रचूड़ के घर जाने पर विपक्ष को सांप सूंघ गया।
सियासत जिस कारण से असल मुद्दों से दूर होता जा रहा है, इसका इल्म आपको भी होगा और हमें भी है। जरा सोचिए जिस देश में अभी बुनियादी सुविधाओं का फांका पड़ा हो, उस देश में हर मुद्दे पर धर्म की तलाश हो रही है। चाहे आप कोई भी मुद्दा उठा लें, बिना धार्मिक चाशनी के सियासत का सुर नहीं मिलेगा। ऐसे वक्त में पीएम मोदी गणेश चतुर्थी के मौके पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया DY चंद्रचूड़ के घर क्या चले गए? विपक्ष को जैसे सांप सूंघ गया। ऐसा तब है जब पीएम मोदी मुख्य न्यायधीश के बुलावे पर गणपति पूजा के लिए पहुंचे। आरती की और फिर वहां से निकल गए।
दूसरी बात ये है कि आजाद भारत के इतिहास में आज तक ना तो किसी ने कोर्ट पर सवाल उठाने की हिम्मत जुटाई है और ना ही CJI से पीएम की मुलाकातों को सियासी रंग देने की कोशिश की है, लेकिन लगता है बिना सत्ता के कुछ नेता अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं। वो क्या कह रहे हैं, क्या बोल रहे हैं, कहां बोल रहे हैं उन्हें कुछ नहीं पता चल रहा है। अगर ऐसा नहीं होता तो सीजेआई के घर पीएम के जाने को सियासी अमलीजामा पहनाने की जरूरत नहीं पड़ती। विपक्ष जो आरोप लगा रहा है, अगर पीएम का वैसा कुछ करने का इरादा होता तो ऐसी कई कमेटियां हैं, जिसमें पीएम और सीजेआई की मुलाकातें होती हैं। उस दौरान भी दोनों के बीच बातचीत हो सकती है, लेकिन विपक्ष को सियासत करनी है। अब उस सियासत से किसी की आस्था पर चोट पहुंचे या फिर किसी का अपमान हो, उससे विपक्ष को कोई लेना-देना नहीं है। यही वजह है कि विपक्ष किसी की धार्मिक आजादी पर भी चोट पहुंचाने से नहीं चूक रहा है।
अगर आप पीएम और सीजेआई के मुलाकात को दूसरे दृष्टिकोण से देखे तो 10 साल पहले देश में इफ्तार पार्टियों का चलन था और उस इफ्तार पार्टियों में नेता वोटबैंक के खातिर शामिल होते थे। साल 2009 में मनमोहन सरकार ने भी इफ्तार पार्टी रखी थी, जिसमें तत्कालीन सीजेआई केजी बालकृष्णन भी शामिल हुए थे। अगर पीएम का सीजेआई के घर गणेश पूजा में शामिल होना गलत है तो पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की इफ्तार पार्टी में सीजेआई की उपस्थिती क्या है? इसका फैसला आप करें। वैसे इफ्तार पार्टियों की तस्वीरों में आपको हर राजनेता दिख जाएंगे। क्या राहुल गांधी, क्या सोनिया गांधी, क्या लालू यादव और क्या अखिलेश यादव... हर कोई इफ्तार पार्टी में शामिल होकर अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते रहे हैं।
तीसरा दृष्टिकोण ये है कि पीएम मोदी ने ब्रुनेई की मशहूर ओमर अली सैफुद्दीन मस्जिद का दौरा किया था। मिस्र की अल-हाकिम मस्जिद भी गए। यूएई की शेख जायद मस्जिद गए, तब ये सियासतदान कहां थे? क्यों नहीं सवाल उठाए? क्यों नहीं कहा कि मस्जिद में पीएम को नहीं जाना चाहिए था? विपक्ष ने तब इसे सियासी रंग देने की कोशिश क्यों नहीं की? चौथा दृष्टिकोण ये है कि विपक्ष इसलिए हमला कर रहा है कि उन्हें डर है कि कहीं उनका कोर वोटबैंक खिसक ना जाए। इसलिए जानबूझकर बार-बार सनातन पर हमला कर रहा है। अगर ऐसा नहीं है तो गुजरात के सूरत में गणेश पंडाल पर पत्थरबाजी हुई, कर्नाटक के मांड्या में गणेश विसर्जन के दौरान पथराव हुआ। ऐसे मौके पर विपक्ष के मुंह क्यों सिले हुए हैं? क्यों नहीं विपक्ष पत्थरबाजी का खुलकर विरोध करता है? और ऐसा ही हिमाचल के संजौली की कहानी है। मस्जिद अवैध है, ये नगर निगम ने भी बताया। यहां तक हिमाचल सरकार के मंत्री ने भी खुलकर कहा कि मस्जिद अवैध है, लेकिन राहुल और प्रियंका की जुबान इस मुद्दे पर मजाल है जो खुल जाए।
जो सीजेआई के घर गणेश पूजा में पीएम पर सवाल उठा रहे हैं वो क्यों नहीं सही को सही और गलत को गलत कहने से कतरा रहे हैं। वैसे भी जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में चुनाव होने वाले हैं। आगे महाराष्ट्र और झारखंड में भी जल्द चुनाव होने होंगे। ऐसे में सीजेआई के घर पीएम के जाने को लेकर विपक्ष सियासी बिसात के लिए अपने तरकश से तीर छोड़ना शुरू कर दिया है। एंटी-मोदी इकोसिस्टम एक्टिव हो चुका है और अपने सियासी फायदे के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार है।
ऐसे में सवाल ये है कि जिस राजनेता को लोगों ने चुना है, क्या वो किसी खास वर्ग के लोगों की रहनुमाई करते हैं या फिर 140 करोड़ जनता की फिक्र है?
Updated 20:05 IST, September 13th 2024