अपडेटेड 10 January 2024 at 23:35 IST
Ram Mandir: राजनीति बहाना, परिवार की परंपरा है निभाना! न्योते को ठुकरा इतिहास दोहरा रही कांग्रेस?
Congress Ayodhya Ram Mandir News: कांग्रेस ने राजनीति का बहाना देकर राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के न्योते को ठुकराया। इससे सोमनाथ मंदिर की यादें ताजा हो गईं।
- विचार एवं विश्लेषण समाचार
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Congress Ayodhya Ram Mandir News: कांग्रेस ने राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने से इनकार कर दिया है। जिस राम मंदिर के लिए पूरी दुनिया में आज भारत का डंका बज रहा है, देशभर के भक्त पूरे उत्साह के साथ जिस 22 जनवरी का इंतजार कर रहे हैं, कांग्रेस ने उसी भव्य समारोह को केवल BJP-RSS का समारोह बताया है। हालांकि, जो लोग इतिहास जानते हैं, उनके लिए ये कोई नई बात नहीं है। कांग्रेस ने प्राण प्रतिष्ठा के न्योते को ठुकराकर इतिहास को फिर से दोहराने का काम किया है। असल में, ये बात उस वक्त की है जब साल 1951 में सोमनाथ मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होनी थी और देश के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा में जाने से भी इनकार कर दिया था।
स्टोरी की खास बातें
- भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति पर भी बनाया था दबाव
- सोमनाथ मंदिर की स्थापना के खिलाफ हो गए थे नेहरू
- जानिए क्या कहता है सोमनाथ मंदिर का इतिहास
पुरानी यादें फिर ताजा हो गईं
इस्लामिक आक्रमणकारियों द्वारा 17 बार सोमनाथ मंदिर पर हमले से परेशान सरदार पटेल ने मंदिर को फिर से बनाने की कसम खाई थी। 13 नवंबर 1947 को जूनागढ़ दौरे के दौरान मंदिर निर्माण का ऐलान करने के बाद जब पटेल दिल्ली आए तो उन्होंने कैबिनेट से भी इस प्रस्ताव को पास करा लिया। एल के आडवाणी की किताब 'My Take- 2014' के अनुसार, सरदार पटेल, डॉ मुंशी और एन वी गाडगिल कैबिनेट के फैसले से अवगत कराने के लिए गांधीजी के पास गए। तब गांधीजी ने उन्हें कहा कि सोमनाथ मंदिर का निर्माण सरकार के पैसों से नहीं, आम जनता के पैसों से होना चाहिए।
इसके बाद 1948 में गांधी जी की हत्या और फिर 1950 में सरदार पटेल की मौत ने देश में हलचल पैदा कर दी। के एम मुंशी ने अपनी किताब स्वतंत्रता की तीर्थ यात्रा (Pilgrimage To Freedom) में लिखा कि एक शाम उन्हें नेहरू जी ने बुलाया और कहा कि सोमनाथ को पुनर्स्थापित करने का आपका प्रयास पसंद नहीं आया। यह हिंदू पुनरुत्थानवाद है। इसपर के एम मुंशी ने अपना जवाब दिया- 'आपने कैबिनेट में स्पष्ट रूप से मुझे सोमनाथ से जुड़ा हुआ बताया। मुझे खुशी है कि आपने ऐसा किया। क्योंकि मैं अपने विचारों या गतिविधियों का कोई भी हिस्सा छुपाना नहीं चाहता। मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि आज भारत का 'सामूहिक अवचेतन' सोमनाथ के पुनर्निर्माण की योजना से अधिक खुश है।'
भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद पर भी बनाया था दबाव
नेहरू को जवाब देने के बाद मुंशी अपनी योजना में आगे बढ़े। उन्होंने सोमनाथ मंदिर का उद्घाटन करने के लिए राजेंद्र प्रसाद को न्योता दिया। सर्वपल्ली गोपाल ने अपनी पुस्तक सेलेक्टेड वर्क्स ऑफ जवाहर लाल नेहरू में लिखा है कि नेहरू ने राजेंद्र प्रसाद को पत्र लिखकर सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन से खुद को दूर रखने के लिए कहा था। उन्होंने पत्र में लिखा था- 'मैं स्वीकार करता हूं कि मुझे आपका खुद को सोमनाथ मंदिर के भव्य उद्घाटन से जोड़ने का विचार पसंद नहीं आया। यह महज एक मंदिर का दौरा नहीं है, बल्कि एक महत्वपूर्ण समारोह में भाग लेना है, जिसमें दुर्भाग्य से कई उलझने हैं।'
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हालांकि, राजेंद्र प्रसाद ने फिर भी मंदिर का उद्घाटन करने का फैसला किया। इसपर जवाहर लाल नेहरू ने मंदिर निर्माण की हर जवाबदेही से इनकार कर दिया। 2 मई, 1951 को नेहरू ने मुख्यमंत्रियों को लिखा- 'यह स्पष्ट रूप से समझा जाना चाहिए कि यह कार्य सरकारी नहीं है और भारत सरकार का इससे कोई लेना-देना नहीं है। हमें ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए जो हमारे धर्मनिरपेक्ष राज्य के रास्ते में आए। यह संविधान का आधार है और इसलिए सरकारों को ऐसी किसी भी चीज से खुद को जोड़ने से बचना चाहिए जो हमारे राज्य के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को प्रभावित करती हो।'
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Published By : Kunal Verma
पब्लिश्ड 10 January 2024 at 23:35 IST