अपडेटेड 24 February 2025 at 15:50 IST
प्रेम मंदिर की यात्रा – एक 12 साल के बच्चे की नजर से
अब जब भी कोई कहता है कि मंदिर बोरिंग होते हैं, तो मैं हंसकर उनसे कहता हूं, "अरे, एक बार प्रेम मंदिर तो जाओ, फिर देखना!"
- इनिशिएटिव
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ठंडी की छुट्टियाँ शुरू होते ही मैं बहुत खुश था। अब पूरे दो हफ़्तों के लिए ना स्कूल जाना था, ना होमवर्क करना था। मुझे लगा पापा हमको इस बार पहाड़ों पर बर्फबारी दिखाने लेकर जाएंगे, लेकिन जब पापा ने बताया कि हम वृंदावन के प्रेम मंदिर जा रहे हैं, तो मेरी एक्साइटमेंट थोड़ी कम हो गई। मुझे लगा मंदिर में तो बस पूजा-पाठ होता है, मैं वहां जाकर क्या करूंगा! मैंने जब इसके बारे में मम्मी से बोला तो उन्होनें यह कहकर टाल दिया, "एक बार चलो तो, फिर देखना!"
हम सुबह तैयार होकर दिल्ली से अपनी कार से ही वृन्दावन के लिए निकले। पापा कार चला रहे थे, मम्मी और मेरी बहन पीछे वाली सीट पर थी, और मैं आगे पापा के बगल में बैठ गया। रास्ते में मैं खिड़की से बाहर देखता रहा और सोचता रहा कि पता नहीं ये ट्रिप कैसी होने वाली है। पापा रास्ते में बता रहे थे कि प्रेम मंदिर जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने बनवाया है और यह राधा-कृष्ण जी और सीता-राम जी का मंदिर है। लेकिन मैं बस सिर हिला रहा था और मन ही मन सोच रहा था कि काश हम कहीं स्नोफॉल वाली जगह पर जाते।
प्रेम मंदिर की पहली झलक
जब हम वृन्दावन पहुंचे, तो माहौल कुछ अलग ही था। हर तरफ राधे-राधे के झंडे लगे थे, लोग भजन गा रहे थे और मंदिरों से आरती की आवाज आ रही थी। वहां पहुंचकर हम एक होटल में रुके जहां हमने दोपहर का खाना खाया और थोड़ी देर आराम किया।
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शाम को लगभग 5 बजे हम सब प्रेम मंदिर के दर्शन के लिए होटल से निकले। जैसे ही मैंने प्रेम मंदिर की पहली झलक देखी, मैं तो सरप्राइज रह गया। यह मंदिर तो मेरी कल्पना से काफी बड़ा था। बिल्कुल सफेद संगमरमर से बना मंदिर किसी महल जैसा लग रहा था! ढलते सूरज की रोशनी पड़ने से मंदिर और चमक रहा था। इतनी सफाई और सुंदरता मैंने और किसी मंदिर में नहीं देखी थी। तब मुझे लगा कि शायद ये ट्रिप उतना बोरिंग नहीं होने वाला!
अंदर का नजारा – कहानी जैसा एहसास!
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जैसे-जैसे मैं प्रेम मंदिर के अंदर जाता गया, वहां की सुंदरता और बढ़ती गयी। वहां बड़े-बड़े गार्डन थे, रंग-बिरंगे फूल थे और भगवान कृष्ण की अलग-अलग तरह की आकर्षक झांकियां बनी हुई थीं। एक जगह मैंने देखा कि कृष्ण जी अपनी छोटी उँगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठाए हुए थे और पर्वत से लगातार पानी गिर रहा था। कृष्ण जी के दोस्त भी पहाड़ पर अपनी लाठियां टिकाये हुए थे और बाकी गांव के लोग उनके आस-पास खड़े थे। ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी कहानी के अंदर प्रवेश कर गया हूं। जब हम मुख्य मंदिर में पहुंचे, तो वहां राधा-कृष्ण जी और सीता-राम जी की मूर्तियां थीं। इतनी सुंदर कि मैं बस उन्हें देखता ही रह गया। चारों तरफ मधुर भजन बज रहे थे, और वातावरण बहुत शांत था। मैं तो बस यही सोच रहा था कि क्या कोई मंदिर ऐसा भी हो सकता है?
फव्वारा शो – सबसे मजेदार चीज!
जब रात में प्रेम मंदिर की लाइटिंग हुई, तो वो किसी सपनों की दुनिया जैसा लगने लगा। रंग-बिरंगी रोशनी सफेद संगमरमर पर पड़ रही थी, और पूरा मंदिर चमक रहा था। समय हो चुका था मंदिर के लाइट एंड म्यूजिक शो का। ये एक चीज थी जिसके लिए मैं वृन्दावन आने के पहले भी एक्साइटेड था। जब शो शुरू हुआ, तो मेरी एक्साइटमेंट दोगुनी हो गई! जैसे ही संगीत बजा, पानी के फव्वारे हवा में नाचने लगे। उन पर रंग-बिरंगी लाइटें पड़ रही थीं और ऐसा लग रहा था जैसे पानी भी भगवान कृष्ण के साथ कोई गेम खेल रहा हो। इतने में प्रेम मंदिर की स्थापना करने वाले जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज भी कीर्तन करते हुए मुझे फव्वारे के बीच दिखाई पड़ने लगे। मुझे लगा था कि मंदिर में सिर्फ पूजा होती है, लेकिन यहां तो और भी बहुत कुछ था!
परिक्रमा और शॉपिंग
जब हम मंदिर की परिक्रमा कर रहे थे तो पापा ने मुझे बताया कि मंदिर के चारों ओर राधा-कृष्ण जी की भागवत की लीलाएं चित्रित हैं। फिर मम्मी ने मुझे सारी लीलाओं से जुड़ी शिक्षायें समझायी जो मुझे अपनी कॉमिक बुक से भी ज्यादा इंटरेस्टिंग लगीं। जो जगह मैं बोरिंग सोच के आया था, वो अब मेरी फेवरेट जगह बन चुकी थी!
दर्शन करने के बाद हम प्रेम मंदिर की कैंटीन में गए जहां हमने डिनर किया। मुझे वहां का डोसा इतना अच्छा लगा कि मैं अकेले ही दो प्लेट चट कर गया। फिर हमने अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों के लिए मथुरा-वृन्दावन का मशहूर पेड़ा प्रसाद लिया। कैंटीन से बाहर निकलकर हमने वहां की लाइब्रेरी और कपड़ों की दुकानों से शॉपिंग भी की।
प्रेम मंदिर जाओ, फिर देखना
जब हम घर लौट रहे थे, तो मैं सोच रहा था कि मेरी धारणा कितनी गलत थी। मैंने सोचा था कि मंदिर का मतलब सिर्फ पूजा-पाठ और लम्बी-लम्बी लाइनें होता है, लेकिन प्रेम मंदिर ने ये सब बदल दिया। यहां आकर मुझे मजा भी आया, शांति भी मिली और बहुत कुछ नया सीखने को भी मिला। मैंने मम्मी से कहा, "अगली बार हम यहां दोबारा आएंगे, पक्का!" उन्होंने मुस्कुराकर कहा, "देखा, मैंने कहा था ना कि एक बार चलो तो, फिर देखना!"
अब जब भी कोई कहता है कि मंदिर बोरिंग होते हैं, तो मैं हंसकर उनसे कहता हूं, "अरे, एक बार प्रेम मंदिर तो जाओ, फिर देखना!"
Published By : Deepak Gupta
पब्लिश्ड 24 February 2025 at 15:50 IST