अपडेटेड 5 August 2025 at 16:04 IST
EXPLAINER/ Uttarakhand Cloudburst: केदारनाथ में 2013 में और अब उत्तरकाशी में भीषण तबाही... जान लीजिए पहाड़ों पर क्यों फटते हैं बादल- Explained
Uttarkashi Cloudburst: जब बादल फटते हैं तो पानी राक्षस की तरह पूरा गांव निगल जाता है। जानकार बताते हैं कि पिछले दशकों में इन घटनाओं में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है और ये घटनाएं ज्यादातर मानसून की बारिश के दौरान ही होती हैं।
- भारत
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Uttarkashi Cloudburst: उत्तरकाशी के गांव धराली के पास खीरगंगा इलाके में बादल फटने के बाद पूरा इलाका बह गया। मकान ऐसे गायब हो गए, जैसे कभी वहां थे ही नहीं। इंसान, जानवर, बाजार पलक झपकते ही पानी में बह गए। अभी तक बड़ी संख्या में लोगों का कोई पता नहीं चल पाया है।
सवाल ये है कि उत्तरकाशी में ऐसी घटनाएं हर साल क्यों होती हैं? पहाड़ी इलाके में बादल फटने की इतनी घटनाएं कब और कैसे होती हैं? आपको बता दें कि जब बादल फटते हैं तो पानी राक्षस की तरह पूरा शहर, पूरा गांव निगल जाता है। जानकार बताते हैं कि पिछले दशकों में इन घटनाओं में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है और ये घटनाएं ज्यादातर मानसून की बारिश के दौरान ही होती हैं।
बादल फटने का मतलब क्या होता है?
बादल फटने का मतलब होता है बहुत कम समय में और सीमित क्षेत्र में अत्यधिक बारिश होना। इसका मतलब है कि अगर 20-30 वर्ग किमी के दायरे में एक घंटे के अंदर 100 मिलीमीटर बारिश होती है तो उसे बादल फटना कहते हैं।
बादल कब फटता है?
जब तापमान अत्यधिक बढ़ जाता है तो नमी वाले बादल एक स्थान पर जमा हो जाते हैं। इससे बादल पर बूंदों का भार इतना बढ़ जाता है कि वो अचानक से अत्यधिक बरसने लगते हैं, जिसे आम बोलचाल की भाषा में बादल फटने की प्रक्रिया कहा जाता है। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में बादल फटने का दूसरा कारण क्षेत्रीय जलचक्र को भी माना जाता है, जिसके कारण बादल पानी का रूप लेकर तेज प्रवाह से बरसने लगते हैं।
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इसको आप ऐसे भी भी समझ सकते हैं कि जब मानसून की गर्म हवाएं ठंडी हवाओं के संपर्क में आती हैं तो बड़े-बड़े आकार के बादल बनते हैं। हिमाचल और उत्तराखंड में ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि वहां पहाड़ों की वजह से ठंडी हवाओं का प्रवाह ज्यादा होता है।
1000 से 2500 मीटर की ऊंचाई तक होता है क्लाउडबर्स्ट
साइंस मैगजीन्स के जानकारों का कहना है कि पहाड़ी इलाके में नमी के साथ हवा के पहुंचने पर बादलों का ऊर्ध्वाधर स्तंभ बनता है, जिसे क्यूमुलोनिम्बस का बादल कहा जाता है। गड़गड़ाहट के साथ होने वाली बारिश और बिजली गिरने की घटनाएं भी इसी के कारण होती हैं। बताया जाता है कि बादल फटने की प्रक्रिया मुख्यतः 1000 से 2500 मीटर की ऊंचाई पर होती है।
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हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में ऐसी घटनाएं ज्यादा होती हैं। जानकारों का मानना है कि आने वाले सालों में ऐसी घटनाएं अभी और बढ़ सकती हैं। इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि इन इलाकों में बड़ी संख्या में पर्यटकों के पहुंचने की वजह से ज्यादा वाहनों का आना और इसकी वजह से अवैध निर्माण भी बादल फटने के मुख्य कारणों में से हो सकते हैं।
अभी तक हजारों लोगों की मौत
पिछले दशकों में बादल फटने की वजह से हिमाचल प्रदेश और उत्तरकाशी में काफी नुकसान हुआ है। जिंदगियां प्रभावित हुई हैं। संपत्तियों का नुकसान हुआ है। इसकी वजह से नदियों का स्तर इतना बढ़ जाता है कि इसके आसपास के कई इलाके बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं, जिसके कारण इंसानों और मवेशियों की मौत भी हो जाती है। पिछले दशक में बादल फटने की वजह से हजारों लोगों की मौत हो चुकी है।
केदारनाथ की त्रासदी आज भी भूल नहीं पाए लोग
16 और 17 जून, 2013 की वो भयानक रात आज भी लोग भूल नहीं पाए हैं। केदारनाथ में बादल फटने की वजह से आई विनाशकारी बाढ़ ने कई शहरों और गांवों को तबाह कर दिया था। इस भयानक बाढ़ में हजारों लोग बह गए थे, जिनमें से कइयों की लाशें भी अभी तक नहीं मिल पाई हैं।
गंगा घाटी के खीर गंगा क्षेत्र में भी स्थिति बेहद गंभीर बताई जा रही है। बचाव अभियान जारी है। हर्षिल से सेना के जवानों के साथ-साथ पुलिस और एसडीआरएफ की टीमें भटवारी भेजी गई हैं। हालांकि, लगातार हो रही बारिश राहत कार्यों में बाधा डाल रही है। जिला प्रशासन संकट से निपटने और प्रभावित लोगों को मदद प्रदान करने के लिए अभियान तेज कर रहा है।
Published By : Kunal Verma
पब्लिश्ड 5 August 2025 at 16:04 IST