Published 14:09 IST, September 11th 2024
अदालत ने गोरखपुर के कैथोलिक डायोसिस और राज्य सरकार पर 10 लाख रुपये का हर्जाना लगाया
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक ग्रामीण की जमीन पर गलत तरीके से कब्जा जमाने के लिए कैथोलिक डायोसिस और राज्य सरकार पर संयुक्त रूप से 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।
UP News: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक ग्रामीण की जमीन पर गलत तरीके से कब्जा जमाने के लिए गोरखपुर के कैथोलिक डायोसिस और राज्य सरकार पर संयुक्त रूप से 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।
मामला लंबित रहने के दौरान वादी भोला सिंह की मौत हो गई और 32 साल से अधिक वर्ष तक भोला सिंह और उनके वारिसों को इस जमीन के उपयोग से वंचित रखा गया।अदालत ने गोरखपुर के कैथोलिक डायोसिस द्वारा दायर दूसरी अपील खारिज करते हुए कहा, “10 लाख रुपये हर्जाने के साथ यह दूसरी अपील खारिज की जाती है और अपीलकर्ता एवं राज्य सरकार द्वारा इस हर्जाने की रकम को समान रूप से वहन किया जाएगा।”
भोला सिंह की जमीन डायोसिस को…
न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र ने मंगलवार को दिए अपने आदेश में कहा, “यह अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि राज्य सरकार और अपीलकर्ता के इस कार्य को कानून की कोई मंजूरी नहीं थी और यह एक तरह से एक ग्रामीण की जमीन हड़पने के समान है।” इस मामले में गोरखपुर में भोला सिंह की राज्य सरकार ने जमीन गलत ढंग से डायोसिस को पट्टे पर दे दी थी। डायोसिस की दलील थी कि यह जमीन भोला सिंह द्वारा सीलिंग प्रक्रिया के दौरान राज्य सरकार को दी गई थी और बाद में यह जमीन फातिमा अस्पताल के निर्माण के लिए डायोसिस को सौंप दी गई।
अदालत ने पाया कि राज्य सरकार के रिकॉर्ड के मुताबिक, केवल एक अन्य सह-मालिक का हिस्सा राज्य सरकार को सौंपा गया था, ना कि भोला सिंह का हिस्सा। लेकिन इस संबंध में किसी तरह के प्रतिकूल हस्तक्षेप से बचने के लिए दस्तावेज को रिकॉर्ड में नहीं लाया गया था। इसलिए राज्य सरकार को भोला सिंह की जमीन डायोसिस को देने का कोई अधिकार नहीं था।
भोला सिंह ने मुकदमे में लगाया ये आरोप
भोला सिंह ने मुकदमे में आरोप लगाया कि जब डायोसिस ने दीवार के निर्माण के जरिए जमीन घेरना शुरू किया तो उसने आपत्ति जतायी, जिस पर प्रतिवादी ने उस जमीन पर एक अस्पताल बनाने की धमकी दी। आरोप है कि संशोधन के जरिए प्रतिवादी संख्या-2 (राज्य सरकार) द्वारा प्रतिवादी संख्या-1 (डायोसिस) के पक्ष में पट्टा किया गया, जबकि राज्य सरकार को यह करने का अधिकार नहीं था।
अदालत ने कहा कि राज्य सरकार और अपीलकर्ता ने मिलीभगत कर जिला और सचिवालय स्तर पर सरकारी मशीनरी की मदद से दस्तावेजों में छेड़छाड़ की जिसके परिणाम स्वरूप वादी और उसके वारिस 32 वर्षों से अधिक समय तक अपनी अचल संपत्ति का इस्तेमाल करने से वंचित रहे।
Updated 14:09 IST, September 11th 2024