अपडेटेड 17 August 2025 at 18:40 IST

पूजा पाल का निष्कासन कर क्या अखिलेश ने खुद अपने पैरों पर मार ली है कुल्हाड़ी?

राजनीति में कुछ फैसले ऐसे होते हैं जो पार्टी की छवि और भविष्य की संभावनाओं पर गहरा असर डालते हैं। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव द्वारा अपने दल की विधायक पूजा पाल को पार्टी से निष्कासित करने का निर्णय ऐसा ही एक कदम साबित हो सकता है।

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SP MLA Pooja Pal sacked for CM Yogi praise, has this decision big political setback for Akhilesh yadav
पूजा पाल का निष्कासन कर क्या अखिलेश ने खुद अपने पैरों पर मार ली है कुल्हाड़ी? | Image: Facebook

UP Politics: राजनीति में कुछ फैसले ऐसे होते हैं जो पार्टी की छवि और भविष्य की संभावनाओं पर गहरा असर डालते हैं। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव द्वारा अपने दल की विधायक पूजा पाल को पार्टी से निष्कासित करने का निर्णय ऐसा ही एक कदम साबित हो सकता है। यह फैसला न केवल विवादास्पद है, बल्कि सपा की पुरानी कमजोरियों को फिर से उजागर करता है। वहीं विपक्षी दल की एक महिला विधायक द्वारा अपराध और अपराधियों के खिलाफ वर्तमान योगी सरकार द्वारा अपनाई जा रही 'जीरो टॉलरेंस' की नीति पर 'मुहर' भी लगा दी गई है।

उत्तर प्रदेश की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों, बाहुबल और अपराध के प्रभाव से जकड़ी रही है। ऐसे में जब एक पीड़ित महिला विधायक, भले ही वह विपक्षी दल से हो, अपनी निजी त्रासदी के संदर्भ में सत्ता पक्ष की अपराध-विरोधी नीतियों की तारीफ करती है, तो इसे स्वाभाविक माना जाना चाहिए। लेकिन सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने पूजा पाल के इस बयान को अनुशासनहीनता ठहराकर उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया। यह कदम सपा की पुरानी छवि को और गहराता है और सवाल उठाता है कि क्या सपा ने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है?

व्यक्तिगत पीड़ा से निकला बयान, सपा ने लिया दिल पर

पूजा पाल की राजनीतिक यात्रा किसी सामान्य महिला की नहीं है। उनके पति और तत्कालीन सपा विधायक राजू पाल की 2005 में प्रयागराज में माफिया अतीक अहमद के गुर्गों द्वारा चुनावी रंजिश के चलते हत्या कर दी गई थी। यह घटना केवल एक हत्या नहीं थी, बल्कि लोकतंत्र पर हमला थी। इसके बाद पूजा पाल ने राजनीति में कदम रखा और अपने पति के सपनों को आगे बढ़ाया। 

लंबे संघर्ष के बाद, जब अतीक अहमद और अशरफ जैसे अपराधियों का अंत हुआ, तब पूजा पाल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की 'जीरो टॉलरेंस' नीति की सराहना की। यह बयान उनकी व्यक्तिगत पीड़ा से उपजा था, न कि कोई सुनियोजित राजनीतिक चाल। फिर भी, अखिलेश यादव ने इसे बर्दाश्त नहीं किया। यहीं से सपा का असंवेदनशील रवैया सामने आता है।

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सपा की छवि को तीन स्तरों पर नुकसान

2027 का विधानसभा चुनाव नजदीक है। हाल के उपचुनावों में सपा को पहले ही करारी हार का सामना करना पड़ा है। ऐसे में पूजा पाल जैसे जनाधार वाले चेहरे को खोना, पार्टी को और कमजोर कर सकता है। पूजा पाल न केवल एक महिला हैं, बल्कि पिछड़े वर्ग से आती हैं और माफिया विरोधी संघर्ष का प्रतीक भी हैं। उनके निष्कासन से सपा की छवि को तीन स्तरों पर नुकसान हो सकता है: पहला, महिला विरोधी छवि, दूसरा, गैर-यादव पिछड़े वर्गों की अनदेखी और तीसरा, अपराधियों और माफिया के प्रति नरम रुख। ये तीनों मुद्दे विरोधी, खासकर भाजपा के लिए मजबूत राजनीतिक हथियार बन सकते हैं।

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पहले भी लगे हैं महिला विरोधी होने के आरोप

सपा का इतिहास महिलाओं के प्रति असंवेदनशीलता की घटनाओं से भरा पड़ा है। गेस्ट हाउस कांड से लेकर सत्ता के दौरान महिलाओं पर हुए अत्याचारों तक, पार्टी की छवि हमेशा से महिला विरोधी रही है। पूजा पाल का निष्कासन इस छवि को और पुख्ता करता है। आज जब राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है, तब एक विधवा और माफिया पीड़ित महिला विधायक को सिर्फ इसलिए निकाल देना कि उसने सत्ता पक्ष की तारीफ की, यह महिलाओं की आवाज को दबाने जैसा है। यह कदम निश्चित रूप से महिलाओं के बीच सपा की स्वीकार्यता को कम करेगा।

पिछड़े वर्गों की राजनीति में दरार का खतरा

अखिलेश यादव अक्सर पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की बात करते हैं, लेकिन सपा का फोकस हमेशा यादव और मुस्लिम वोट बैंक पर ही रहा है। पूजा पाल, पाल समाज से आती हैं, जो ओबीसी का महत्वपूर्ण हिस्सा है और यादवों की तरह ही पशुपालक समाज से जुड़ा है। पूजा पाल जैसी लोकप्रिय ओबीसी महिला को पार्टी निकालना न केवल पाल समाज, बल्कि अन्य गैर-यादव पिछड़े वर्गों में असंतोष पैदा करेगा। भाजपा पहले से ही इन वर्गों में अपनी पैठ बढ़ा रही है। ऐसे में यह निर्णय सपा की तथाकथित 'सर्वसमावेशी पिछड़ा राजनीति' की कमजोरी को उजागर करता है।

माफिया समर्थक छवि को मिलेगा और बल

पूजा पाल का निष्कासन सपा पर लगने वाले उस पुराने आरोप को फिर से मजबूत करता है कि यह पार्टी अपराधियों, माफिया और बाहुबलियों की शरणस्थली रही है। राजू पाल की हत्या में माफिया अतीक अहमद का नाम था, लेकिन सपा ने कभी पीड़ित परिवार के लिए आक्रामक रुख नहीं दिखाया। अतीक और अशरफ की हत्या के बाद सपा की बेचैनी सभी ने देखी। 

माफिया मुख्तार अंसारी की मौत के बाद अखिलेश का उनकी कब्र पर जाना इस छवि को और गहरा गया। अब पूजा पाल ने जब योगी सरकार की अपराध विरोधी नीतियों की तारीफ की, तो उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया। यह साफ संदेश देता है कि सपा अपराधियों के प्रति नरम रवैया रखती है। यह छवि 2027 के चुनाव में सपा के लिए भारी पड़ सकती है।

राजनीतिक हलकों में बढ़ी हलचल

निष्कासन के बाद पूजा पाल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की है। चर्चा है कि उन्हें मंत्रिपद भी मिल सकता है। यदि ऐसा हुआ, तो यह भाजपा के लिए बड़ा राजनीतिक लाभ होगा। भाजपा इसे 'महिला सशक्तिकरण', 'ओबीसी सम्मान' और 'माफिया विरोधी' रणनीति के रूप में पेश कर सकती है। यह रणनीति पूर्वांचल और ओबीसी वोट बैंक पर गहरा असर डालेगी, जबकि सपा का आधार और कमजोर होगा।

सपा की रणनीतिक चूक

कुल मिलाकर, पूजा पाल का निष्कासन सपा की रणनीतिक भूल है। यह कदम न केवल पार्टी की महिला विरोधी और महिला समर्थक छवि को मजबूत करता है, बल्कि ओबीसी राजनीति के खोखलेपन को भी उजागर करता है। अखिलेश यादव ने अनुशासन के नाम पर यह भूल की कि राजनीति में संवेदनशीलता और प्रतीकों की अहम भूमिका होती है। 

पूजा पाल आज सिर्फ एक विधायक नहीं, बल्कि उस संघर्षशील महिला का प्रतीक भी हैं, जिसने अपने पति की हत्या के बाद भी हार नहीं मानी और माफिया के खिलाफ न्याय की लड़ाई लड़ी। उन्हें निकालकर सपा ने न केवल एक विधायक खोया, बल्कि हजारों महिलाओं, पिछड़ों और न्याय की उम्मीद रखने वालों को अपने से दूर कर दिया है। यह फैसला 2027 के चुनाव में सपा को भारी कीमत चुकाने पर मजबूर कर सकता है।

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Published By : Ankur Shrivastava

पब्लिश्ड 17 August 2025 at 18:40 IST