अपडेटेड 28 August 2025 at 21:04 IST

Sambhal Violence: तुर्क और पठान में वर्चस्व की लड़ाई का नतीजा थी संभल हिंसा? न्यायिक आयोग की रिपोर्ट में क्या-क्या खुलासे

Sambhal Politics : संभल में नवाब इकबाल महमूद और शफीकुर्रहमान बर्क के बीच पठान और तुर्क में वर्चस्व की लड़ाई रही है। रिपोर्ट के मुताबिक संभल में अब तक की बलवा और हिंसात्मक घटनाओं में अधिकतर यह देखने को मिला है कि तुर्क और पठान जाति के लोग एक दूसरे के धुर विरोधी हैं।

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Sambhal violence battle for supremacy between Turks and Pathans Ziaur Rahman Burke Iqbal Mahmood
तुर्क और पठान में वर्चस्व की लड़ाई का नतीजा थी संभल हिसा? | Image: ANI

Sambhal Violence Report : संभल में शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान भड़की हिंसा पर गठित 3 सदस्यीय न्यायिक आयोग ने अपनी 450 पन्नों की रिपोर्ट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंप दी है। संभल हिंसा में तुर्क और पठानों के वर्चस्व की बात भी सामने आई है। न्यायिक आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इसका जिक्र विस्तार से किया है।

संभल में स्थानीय तुर्क और पठान समेत अन्य मुस्लिमों का विवाद दशकों पुराना है। नवाब इकबाल महमूद और शफीकुर्रहमान बर्क के बीच संभल की राजनीतिक जमीन को कब्जाने की लड़ाई आज की या पिछले कुछ सालों की नहीं, बल्कि इस लड़ाई की शुरुआत उस समय हो गई थी, जब संभल में इकबाल महमूद के पिता नवाब महमूद हसन खां का राजनैतिक वर्चस्व था और शफीकुर्रहमान बर्क ने राजनीति में कदम रखा।

शफीकुर्रहमान बर्क

शफीकुर्रहमान बर्क तुर्क जाति से थे। संभल में तुर्क जाति का अच्छा खासा प्रभाव है। शफीकुर्रहमान पुत्र अब्दुल रहमान उर्फ नन्हे का जन्म 11 जुलाई, 1930 को हुआ था। बर्क ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक के रूप में कार्य किया और इस मुद्दे को धुरी बनाकर राजनीति की। वो कट्टर मुस्लिम छवि के नेता थे। बर्क लोगों के काम कराने के लिये अधिकारियों पर दबाब बनाते थे, जिले में दंगे और बलवे कराने तक की धमकी देते थे।

मुलायम सिंह यादव के काफी नजदीकी होने के कारण अधिकारियों पर उनका दबाब रहता था। ये ही वजह रही कि मुस्लिम समुदाय उनके साथ जुड़ता चला गया। अपने 52 साल के राजनैतिक सफर में शफीकुर्रहमान बर्क ने 10 दलों से 17 चुनाव लड़े। जिसमें 10 विधानसभा चुनाव और 7 लोकसभा चुनाव शामिल हैं।

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नवाब इकबाल महमूद

नवाब इकबाल महमूद पुत्र नवाब महमूद हसन का जन्म 21 नवंबर, 1949 को हुआ। इनकी छवि साफ्ट नेचर की है। अंसारी और पठान जाति में इनकी मजबूत पकड़ रही, जबकि तुर्क जाति में शफीकुर्रहमान वर्क की मजबूत पकड़ मानी जाती है। लोकसभा संभल में तुर्क जाति के काफी अधिक वोट है, जिस कारण संभल विधानसभा के इलावा ग्रामीण क्षेत्र में इकबाल का अधिक प्रभाव नहीं है। तुर्क जाति बनाम पठान-अंसारी जातिगत गुटबाजी होने के कारण ही ये कभी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ पाए।

नवाब इकबाल महमूद ने साल 1986 में ब्लॉक प्रमुख संभल का चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे। इसके बाद 1989 में कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा का चुनाव भी हारे। 1991 में जनता दल से संभल विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत हुई। साल 1993 में विधानसभा का चुनाव हारे। इसके बाद 1996 से 6 बार लगातार सपा से संभल विधानसभा का चुनाव जीतते आ रहे है। साल 2004, 2012 में सपा सरकार में राज्यमंत्री बने और 2014 में इनको कैबिनेट मंत्री बनाया गया। नवाब इकबाल महमूद वर्तमान में समाजवादी पार्टी से संभल विधायक है और इलाके के मुस्लिम मतदाओं पर मजबूत पकड़ रखते हैं।

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57 साल से राजनैतिक प्रतिद्वंदी

डॉ. बर्क और विधायक इकबाल महमूद एक दूसरे के धुर विरोधी रहे। दोनों परिवारों के बीच 57 साल से राजनैतिक प्रतिद्वंदता चली आ रही है। न्यायिक आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक इसकी शुरुआत 1967 से हुई थी। इकबाल महमूद के पिता और दो बार के विधायक महमूद हसन खां के सामने 1967 में पहली बार शफीकुर्रहमान बर्क ने चुनाव लड़ा। जिसके चलते मुस्लिम समुदाय के वोट बंट गए और जनसंघ पार्टी के प्रत्याशी महेश कुमार विधायक बन गए थे।

1969 में फिर से बर्क और महमूद हसन खां ने चुनाव लड़ा। इस चुनाव में महमूद हसन खां को जीत मिली। 1974 के विधानसभा चुनाव में फिर दोनों ने चुनाव लड़ा। इस चुनाव में पहली बार बर्क जीते और संभल विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने। यहां से दोनों परिवारों के बीच राजनैतिक प्रतिद्वंदता ओर अधिक बढ़ती गई। महमूद हसन खां ने 1989 आते-आते अपनी राजनैतिक विरासत अपने बेटे इकबाल महमूद को सौंप दी। इसके बाद इकबाल महमूद और बर्क के बीच राजनैतिक प्रतिद्वंतदता शुरू हो गई।

नवाब Vs आम मुसलमान

नवाब महमूद हसन ने देश की आजादी के बाद साल 1957 में हुए दूसरे विधानसभा चुनाव में संभल सीट से जीत हासिल की थी। इसके बाद 1962 में भी नवाब महमूद हसन संभल के विधायक बने। शफीकुर्रहमान बर्क ने नवाब महमूद को नवाब बताकर मुसलमानों के बीच आम मुसलमान को अपना विधायक बनाने का मुद्दा उछाला। बर्क और नवाब महमूद हसन के बीच पहला चुनावी मुकाबला 1969 में हुआ। बीकेडी प्रत्याशी नवाब महमूद हसन ने चुनाव में जीत हासिल की, जबकि स्वतंत्र पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े बर्क दूसरे स्थान पर रहे।

2014 में शफीकुर्रहमान बर्क के समर्थकों ने नवाब इकबाल महमूद के घर के बाहर फायरिंग भी की थी। जिसके संबंध में थाना संभल पर मु०अ०स० 591/14 मुदकमा दर्ज किया गया था। इस मामले में गुलाम और मुल्ला अफरोज अभियुक्त थे, जोकि संभल हिंसा के मास्टरमाइंड भी रहे है।

पठान और तुर्क वर्चस्व

लोकसभा क्षेत्र संभल में तुर्क जाति के वोट अधिक है, तुर्क जाति के लोग शफीकुर्रहमान बर्क के कट्टर समर्थक है, जिनका करीब 90-95 प्रतिशत वोट शफीकुर्रहमान को मिलता है। वही विधानसभा क्षेत्र संभल में अंसारी और पठान जाति के वोट अधिक है, जो नवाब इकबाल महमूद के समर्थक है, जिनका लगभग 90-95 प्रतिशत वोट इकबाल महमूद को मिलता है। इसी वजह से नबाब इकबाल महमूद और शफीकुर्रहमान बर्क के बीच पठान और तुर्क में वर्चस्व की लड़ाई रही है।

शफीकुर्रहमान वर्क के निधन के बाद उनके पौते जियाउर्रहमान बर्क अपने दादा की तरह पकड़ मजबूत बनाना और अपनी छवि कट्टर बनाना चाह रहे हैं। जिस कारण वे मुस्लिम समुदाय के मुद्दों को जोर शोर से उठाते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक संभल में अब तक की बलवा और हिंसात्मक घटनाओं में अधिकतर यह देखने को मिला है कि तुर्क जाति और पठान जाति के लोग एक दूसरे के धुर विरोधी है। अपने नेता के कहने पर तुर्क जाति के लोग बलवा, हिंसा करने से नहीं चूकते हैं।

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Published By : Sagar Singh

पब्लिश्ड 28 August 2025 at 19:41 IST