अपडेटेड 25 July 2024 at 21:17 IST
EXCLUSIVE/ अफसर ने कहा- 2 महीने से युद्ध में हो, घर चले जाओ... शहीद मनोज पांडेय का जवाब सुन सीना चौड़ा हो जाएगा
मनोज पांडेय को असाधारण वीरता के लिए मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च वीरता पदक परमवीर चक्र से नवाजा गया था। ऐसे जवानों की बदौलत ही पाकिस्तान घुटने पर आया था।
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Kargil Vijay Diwas: 26 जुलाई को कारगिल विजय के 25 साल पूरे हो रहे हैं और कल विजय दिवस को धूमधाम से मनाने की तैयारी है। ये वो दिन है, जब भारत ने पाकिस्तानी सेना को खदेड़कर कारगिल में विजय पताका फहराया था। कारगिल विजय दिवस हर उन सैनिकों की बहादुरी को समर्पित है, जिसने भारत को जीत दिलाई। उन शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने का दिन है, जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। 25 साल पहले कारगिल में जिस तरह पाकिस्तान ने अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने की कोशिश की थी, वो उसके लिए खुद ही नासूर साबित हुआ।
करगिल युद्ध में 700 से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिक मारे गए और 500 से ज्यादा भारतीय सैनिक शहीद हुए। इन जवानों में एक नाम है कैप्टन मनोज पांडेय का। जिन्हें असाधारण वीरता के लिए मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च वीरता पदक परमवीर चक्र से नवाजा गया था। मनोज पांडेय जैसे बहादुर जवानों की बदौलत ही भारतीय सेना के योद्धाओं ने इस युद्ध में पाकिस्तान को घुटने पर आने को मजबूर कर दिया था।
घर आने का था विकल्प
जवानों का बलिदान कभी भुलाया नहीं जाता और कारगिल में हिंदुस्तान के विजय वीरों की जांबाजी के किस्से तो रहती दुनिया तलक सुनाए जाएंगे। कैप्टन मनोज पांडेय ऐसे जांबाज हैं, जिनकी बहादुरी अमर है। मनोज के पास घर आने का विकल्प था, लेकिन उन्होंने जंग को चुना। अधिकारी ने मनोज को कहा था कि तुम 2 महीने से कारगिल युद्ध लड़ रहे हो, अब तुम छुट्टी पर जा सकते हो। इस बात पर मनोज का जवाब सुन हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा। मनोज ने जवाब में कहा-
‘सर, आप ऐसा कहकर मुझे कमजोर कर रहे हैं। मैं इस स्थिति में देश को छोड़कर घर कैसे जा सकता हूं?’
मिट्टी में मिलाए 4 बंकर
मनोज के हौसले बुलंद थे। 24 साल के मनोज पांडेय 10 जवानों की टुकड़ी के साथ विपरीत परिस्थितियों में कारगिल की पहाड़ियों पर चढ़ने लगते हैं। मनोज ने 5 दिन पहले खाना छोड़ दिया था, वो कैप्सूल लिया करते थे। इसके बाद भी मनोज ने कारगिल की दुर्गम पहाड़ी पर चढ़कर पाकिस्तानियों के तीन बंकर को मिट्टी में मिला दिया। मनोज की गोलियां खत्म हो गई, अब हाथ में सिर्फ एक ग्रेनेट बचा था। देश के लिए मनोज अपने लहू की आखिरी बूंद तक लड़ना चाहते थे। वो अपने ग्रेनेट को लेकर दुश्मन के चौथे बंकर में कूद गए और चाकुओं से कई आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया।
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पिता ने रिपब्लिक भारत को बताई कहानी
बंकर से लहू लुहान होकर मनोज पांडेय जिंदा निकले, उसके बाद ऊंचाई पर बैठे आतंकियों ने उसने सिर पर सीधी गोली मारी। आंतकियों की बंकर तक जाते हुए मनोज का हेलमेट गिर गया था। गोली लगाने के बाद मनोज के शरीर से खून की धारा बहने लगी, मौके पर कोई मेडिकल सर्विस नहीं थी। लगातार खून निकलने से मनोज पांडेय वीरगति को प्राप्त हुए। इस पूरी घटना का जिक्र मनोज के पिता गोपीचंद पांडेय ने रिपब्लिक भारत से खास बातचीत में किया है।
मनोज जैसे जवानों के बलिदान का ये देश हमेशा कृतज्ञ रहेगा। कारगिल में हिंदुस्तान के विजय वीरों की जांबाजी के किस्से तो रहती दुनिया हमेशा सुनती रहेगी। कारगिल विजय दिवस की रजय जयंती समारोह में एक बार फिर उन वीरों को याद किया जा रहा, जिन्हें कभी भुलाया नहीं गया है और ना भुलाया जा सकेगा।
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Published By : Sagar Singh
पब्लिश्ड 25 July 2024 at 21:17 IST