अपडेटेड 29 August 2024 at 09:49 IST

UP: क्या फिर साथ आएंगे बुआ-बबुआ, क्यों हो रही है मायावती-अखिलेश को लेकर ऐसी चर्चाएं?

उत्तर प्रदेश में हालिया राजनीतिक बयानबाजी के बाद चर्चाएं होने लगी हैं कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी एक बार फिर गठबंधन में आ सकती हैं।

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Mayawati and Akhilesh Yadav
सपा और बसपा में गठबंधन की अटकलें। | Image: Facebook/Shutterstock

Uttar Pradesh News: उत्तर प्रदेश में कुछ सीटों पर उपचुनाव से पहले बदलते परिदृश्य में मायावती और अखिलेश यादव के बीच समर्थनभाव दिखाई दिया है, लेकिन इस राज्य में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी में गठबंधन की अटकलों को बल दे दिया है। हालिया राजनीतिक बयानबाजी के बाद चर्चाएं होने लगी हैं कि सपा और बसपा एक बार फिर गठबंधन में आ सकती हैं।

हालिया घटनाक्रम की शुरुआत भारतीय जनता पार्टी के एक विधायक की बसपा सुप्रीमो मायावती पर टिप्पणी के बाद हुई थी। बीजेपी विधायक ने मायावती को भ्रष्ट बताया था, जिसके बाद खुद सपा मुखिया अखिलेश यादव ने मायावती का बचाव करने का मोर्चा ले लिया और यहां से मान-सम्मान होने लगा। मायावती ने अखिलेश को धन्यवाद दिया तो सपा मुखिया ने भी आभार व्यक्त किया। हालांकि इसके मायने अब गठबंधन की संभावनाओं के तौर पर निकाले जा रहे हैं।

सपा-बसपा में कब गठबंधन बना और टूटा

  • 1993 में सपा-बसपा ने उत्तर प्रदेश में गठबंधन की सरकार बनाई। उस समय मुलायम सिंह यादव को मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया था।
  • 1995 में गेस्ट हाउस कांड के बाद गठजोड़ टूटा।
  • करीब 24 साल बाद सपा-बसपा ने लोकसभा चुनाव के लिए 2019 में फिर गठबंधन किया। बसपा को 10 सीटें मिली थीं और सपा के खाते में 5 सीटें आई थीं।
  • जून 2019 में एक बार फिर सपा और बसपा में गठबंधन टूटा। 5 साल से दोनों दल अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं।

बुआ-बबुआ का साथ आना कितना संभव?

फिलहाल बुआ और बबुआ का एक साथ गठबंधन में आना संभव नहीं लगता है। 2024 के चुनाव में चर्चाएं जरूर रहीं कि कांग्रेस और सपा ने बसपा को गठबंधन में लाने की कोशिश की। हालांकि मायावती ने स्पष्ट तौर पर मना कर दिया था और अकेले ही चुनाव लड़ी थीं। चुनावों समाजवादी पार्टी बेहतर प्रदर्शन करके आई, जबकि मायावती का जनाधार सिमट गया।

गठबंधन शर्तों पर होता है और भविष्य के चुनाव में सीटों की सौदेबाजी में सपा शायद ही अपना नुकसान चाहेगी, जैसे उसे 2019 के लोकसभा चुनाव में हुआ था। उसके अलावा पीडीए के जरिए अखिलेश यादव लगातार अल्पसंख्यकों के साथ दलितों को साधने में लगे हैं, जबकि दलित वोटबैंक के सहारे ही मायावती राजनीति करती रही हैं। ये रणनीति भी गठबंधन में एक अड़चन हो सकती है। हालांकि इस बात को दरकिनार नहीं किया जा सकता है कि राजनीतिक में असंभव कुछ नहीं होता है।

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Published By : Dalchand Kumar

पब्लिश्ड 29 August 2024 at 09:49 IST