अपडेटेड 18 July 2025 at 21:11 IST

यूपी के कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, Digital Arrest के केस में पहली बार दोषी को 7 साल की सजा; लेडी डॉक्‍टर से ठगे थे 85 लाख रुपए

लखनऊ की कोर्ट ने “डिजिटल अरेस्ट” के एक चर्चित मामले में पहली बार किसी आरोपी को सजा सुनाई है।

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यूपी के कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, Digital Arrest के केस में पहली बार दोषी को 7 साल की सजा; लेडी डॉक्‍टर से ठगा था 85 लाख रुपए | Image: Pixabay/UP Police

यूपी में साइबर क्राइम के इतिहास में एक ऐतिहासिक फैसला सामने आया है। राजधानी लखनऊ की कोर्ट ने “डिजिटल अरेस्ट” के एक चर्चित मामले में पहली बार किसी आरोपी को सजा सुनाई है। खुद को CBI अधिकारी बताकर केजीएमयू की वरिष्ठ डॉक्टर डॉ. सौम्या गुप्ता से 85 लाख रुपये की ठगी करने वाले साइबर अपराधी देवाशीष को कोर्ट ने सात साल की कैद और जुर्माने की सजा सुनाई।

यह सजा गुरुवार को स्पेशल सीजेएम कस्टम अमित कुमार ने सुनाई। इस मामले में साइबर थाना लखनऊ से विवेचना और कोर्ट में आरोपित के खिलाफ साक्ष्य प्रस्तुत करने वाले इंस्पेक्टर ब्रजेश कुमार यादव का दावा है कि देश में डिजिटल अरेस्ट के मामले में 14 महीने में यह पहली सजा हुई है। देवाशीष मूल रूप से आजमगढ़ के अजमतगढ़ के मसौना का रहने वाला है।

विस्‍तार से जानिए पूरा मामला

घटना 15 अप्रैल 2024 की है। केजीएमयू (किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी) की वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. सौम्या गुप्ता अपनी ड्यूटी पर थीं। तभी उनके पास एक कॉल आया। कॉल करने वाले ने खुद को कस्टम विभाग का अधिकारी बताते हुए कहा कि वह दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट से बोल रहा है।

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उसने दावा किया कि डॉक्टर के नाम से एक कार्गो पार्सल पकड़ा गया है, जिसमें जाली पासपोर्ट, एटीएम कार्ड और 140 ग्राम एमडीएम (ड्रग) बरामद हुआ है। इसके बाद कॉल को ट्रांसफर कर एक दूसरा व्यक्ति जुड़ता है, जो खुद को CBI अधिकारी बताता है। वह डॉ. गुप्ता को धमकाता है कि इस अपराध के तहत उन्हें 7 साल की जेल हो सकती है। डर के मारे डॉक्टर ने अपना बैंक खाता नंबर, पैन कार्ड, प्रॉपर्टी डिटेल्स जैसी निजी जानकारियां साझा कर दीं।

10 दिन तक  ‘डिजिटल अरेस्ट’

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आरोपियों ने डॉक्टर को लगातार फोन कॉल्स के जरिये डर और भ्रम में रखा। उन्होंने उन्हें 10 दिन तक डिजिटल अरेस्ट में रखा, यानी मानसिक और साइबर दबाव बनाकर घर बैठे हुए भी उन्हें पूरी तरह नियंत्रित किया। इस दौरान डॉक्टर ने चार अलग-अलग खातों में 85 लाख रुपये ट्रांसफर कर दिए।

ऐसे हुई आरोपी की गिरफ्तारी

जांच की जिम्मेदारी लखनऊ साइबर थाना को दी गई। इंस्पेक्टर ब्रजेश कुमार यादव के नेतृत्व में जांच हुई। छानबीन के दौरान आरोपी की पहचान देवाशीष, निवासी मसौना गांव, अजमतगढ़, आजमगढ़ के रूप में हुई। देवाशीष को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां स्पेशल CJM (कस्टम) अमित कुमार की अदालत ने 14 महीनों के भीतर सुनवाई पूरी कर दोषी को 7 साल की कैद और आर्थिक दंड की सजा सुनाई।

सजा सुनाते हुए अदालत ने क्या कहा

अपराधी को सजा सुनाते हुए अदालत ने कहा कि अभियुक्त ने खुद को सीबीआई अफसर बताकर पीड़ित को धमकाया और 85 लाख रुपये ठग लिए। इस तरह की घटना से लोगों के बीच एजेंसियों का डर पैदा होता है। अदालत ने कहा इस साइबर ठगी के लिए आरोपी ने फर्जी बैंक खाता और आधार के जरिए फर्जी सिम का इस्तेमाल किया, जो यह बताता है कि यह डिजिटल अपराध है।

ऐसे अपराध के लिए सख्त-सख्त सजा जरूरी है। अभियोजन अधिकारी मषिन्द्र के अनुसार, यह देश का पहला ऐसा मामला है, जिसमें डिजिटल अरेस्ट के तहत इतनी तेजी से सजा सुनाई गई है। यह फैसला साइबर ठगी के शिकार लोगों के लिए एक मिसाल है कि न्याय प्रणाली अब डिजिटल अपराधों को लेकर भी उतनी ही सजग और सख्त हो चुकी है।

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Published By : Ankur Shrivastava

पब्लिश्ड 18 July 2025 at 19:07 IST