अपडेटेड 11 December 2025 at 12:01 IST
किसी को ब्रेन ट्यूमर, किसी को स्किन की बीमारी तो कोई जन्म से दिव्यांग...यूपी के इस गांव में 'जहर' बन गया है गंगा का पानी; जानिए कैसे
पानी, जो जिंदगी की सबसे बुनियादी जरूरत है, या यूं कहें कि इसके बिना जिंदगी की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन सोचिए यही पानी किसी गांव के लिए जिंदगी नहीं बल्कि बीमारी बन जाए तो क्या हो।
- भारत
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गौरव त्रिवेदी की ग्राउंड रिपोर्ट
पानी, जो जिंदगी की सबसे बुनियादी जरूरत है, या यूं कहें कि इसके बिना जिंदगी की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन सोचिए यही पानी किसी गांव के लिए जिंदगी नहीं बल्कि बीमारी बन जाए तो क्या हो। तो आज हम आपको बताएंगे भारत के एक ऐसे गांव की बात जहां लोग गंगा का पानी पीने से भी डरने लगे हैं। यहां नदी में गिर रहे जहरीले नाले ने पूरे इलाके में बीमारी का साया फैला दिया है। रिपब्लिक भारत के संवाददाता गौरव त्रिवेदी ने पूरे गांव की पड़ताल की और जानने की कोशिश की आखिर कौन गंगा में जहर घोल रहा है।
ये कहानी है यूपी की औद्योगिक राजधानी कानपुर के महाराजपुर क्षेत्र के जाना गांव की। कानपुर चमड़े के कारोबार के लिए जाना जाता और इसी उद्योग का जहरीला कचरा अब इंसानों के जीवन पर काल बनकर टूट रहा है। यहां के जाना गांव का पानी इतना जहरीला हो चुका है कि बच्चे जन्मजात दिव्यांग हो रहे हैं, और लोग स्किन रोग, किडनी फेल, लिवर डैमेज जैसी खतरनाक बीमारियों से घिर चुके हैं।
मोक्क्षदायिनी गंगा बन रही बीमारी की वजह
वो गंगा जिसे हम मोक्क्षदायिनी कहते है लेकिन वो जाना गांव के लिए बीमारी की धारा बन चुकी है। गंगा नदी में घुल रहे टेनरियों के जहरीले नाले पूरे इलाके की सेहत के लिए खतरा बन चुके हैं। रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क की टीम जब जाना गांव पहुंची, तो हर घर में बीमारी की एक दास्तान मिली। कोई बच्चा चल नहीं पाता, कोई जन्म से ही दिव्यांग है। कई लोग ऐसे हैं जिनके शरीर पर चकत्ते पड़ रहे हैं उसके घाव है वो लंबे समय से भर नहीं रहे। हर किसी को पूरे बदन पर स्किन का इन्फेक्शन है।
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टेनरियों से निकलता जहर, गंगा में बहता कचरा
कानपुर की 400 से ज्यादा टेनरियों रोज 5 करोड़ लीटर जहरीला कचरा गंगा में उड़ेल रही हैं। जाजमऊ इलाके में सिर्फ 9 MLD कचरे का ट्रीटमेंट होता है, जबकि करीब 40 MLD सीधे गंगा में बह जाता है। यहां का पानी काला और लाल हो चुका है। जिस जगह पर नाले गंगा में गिरते हैं, वहां बदबू इतनी कि लोग मुंह पर रुमाल बांधते हैं। पानी इतना जहरीला है कि मछलियां तक मर रही हैं। बेबस गांव वाले कहते हैं, जानते हैं मर जाएंगे, पर यहां रहना मजबूरी है।
टेनरी वह कारखाना या कार्यशाला होती है, जहां जानवरों की कच्ची खाल को केमिकल रिएक्शन के जरिए टिकाऊ चमड़े में बदल दिया जाता है। इस प्रक्रिया में खाल से बाल, मांस और चर्बी हटाकर उसे सड़ने से बचाया जाता है, ताकि बाद में उसी चमड़े का उपयोग जूते बैग जैसे उत्पाद बनाने में किया जा सके।
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विधायक ने टंकी तो लगावाई, पर पानी नहीं
स्थानीय विधायक सतीश महाना का पत्थर तो गांव में है पर पानी की टंकी में पानी नहीं है। टंकी सूखी मिली। उसमें एक बूंद पानी नहीं था। वहीं गांव के लोगों ने खुद के ही पैसे जोड़कर हैंडपंप को सही करते दिखे। गांव में दस्त, त्वचा रोग, गर्भपात, पशुओं की मौत और दूध की कमी जैसी समस्याएं आम हो चुकी हैं। जाना गांव आज विकास नहीं, बल्कि सिस्टम की लापरवाही की मार झेल रहा है।
क्या बोलीं कानपुर की मेयर
वहीं जाना गांव को लेकर कानपुर की मेयर प्रमिला पांडे ने संज्ञान लेते हुए बताया कि कल से जी वहां पानी की व्यवस्था कराई जाएगी और वहां के जिम्मेदार अधिकारियों से जवाब मांगा जाएगा अगर किसी की लापरवाही सामने आयी तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी।
Published By : Ankur Shrivastava
पब्लिश्ड 11 December 2025 at 12:01 IST