Published 12:51 IST, November 26th 2024
कानपुर: 150 साल पुराना पुल गंगा में गिरा, इसी ब्रिज से क्रांतिकारियों पर अंग्रेजों ने चलाई थी गोली
कानपुर से ऐतिहासिक पुल गिरने की खबर आई है, 150 साल पुराने गंगा के पुल का एक हिस्सा गिर गया। बताया जाता है कि यह पुल भारत की आजादी की लड़ाई का गवाह रहा है।
Advertisement
Kanpur Ganga Bridge History: कानपुर से ऐतिहासिक पुल गिरने की खबर आई है, 150 साल पुराने गंगा के पुल का एक हिस्सा गिर गया। बताया जाता है कि यह पुल भारत की आजादी की लड़ाई का गवाह रहा है। अंग्रेजों ने इसी ब्रिज से क्रांतिकारियों पर गोलियां भी चलाई थी। स्थानीय लोगों के लिए ये पुल बेहद खास था। इसलिए इस पुल के ढहने से लोग भी भावुक हो गए हैं और कई लोग इस ऐतिहासिक धरोहर के लिए शोक व्यक्त कर रहे हैं। जो कानपुर को लखनऊ से जोड़ने का काम करता था। हालांकि 4 साल पहले ही इस पुल को कानपुर प्रशासन ने आने-जाने के लिए बंद कर दिया था।
बता दें कि लगभग 147 वर्ष पहले अंग्रेजों के शासन में बनवाए गए पुराने गंगापुल की कई कोठियों में बीते साल बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गई थी। पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों ने तत्कालीन जिलाधिकारी को पुल की कोठियों में दरारों की जांच करने के बाद रिपोर्ट दी थी कि अब यह पुल वाहनों के आवागमन के योग्य नहीं बचा है। काफी जर्जर हालत में पहुंच चुका है। जिसपर कानपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी आलोक तिवारी ने इसे बंद करा दिया था। 5 अप्रैल 2021 को इस पुल को पूरी तरह से बंद कर दिया गया।
आजादी की लड़ाई का गवाह रहा पुल
कानपुर से शुक्लागंज जाने के रास्ते में गंगा नदी के ऊपर बना अंग्रेजों के जमाने का ये पुल आजादी की लड़ाई का भी गवाह रहा है। एक बार क्रांतिकारी जब गंगा पार कर रहे थे तब अंग्रेजों ने इस पुल के ऊपर से उनपर फायरिंग कर दी थी। कुछ साल पहले जब यह पुल बंद किया गया तो उन्नाव के शुक्लागंज में रहने वाली 10 लाख की आबादी पर काफी फर्क पड़ा। इसको चालू करने के लिए उन्नाव के सांसद से लेकर कई विधायक और मंत्रियों ने मुख्यमंत्री से लेकर प्रशासन तक दौड़ लगाई थी। लेकिन कानपुर आईआईटी ने इसकी चेकिंग करके बता दिया था यह पुल जर्जर है, चलने लायक नहीं है और कभी भी गिर सकता है।
ब्रिटिश काल में हुआ था निर्माण
यह British era bridge लगभग 150 साल पुराना था और अपनी वास्तुकला के कारण ऐतिहासिक महत्व रखता था। अंग्रेजी शासन के दौरान 1870 के दशक में अवध एंड रुहेलखंड कंपनी लिमिटेड द्वारा इस पुल का निर्माण शुरू किया गया था। इसे डिजाइन जेएम हेपोल ने किया था, जबकि निर्माण कार्य एसबी न्यूटन और ई वेडगार्ड के नेतृत्व में हुआ था। इस पुल का उद्देश्य कानपुर और शुक्लागंज को जोड़ना था, जो उस समय का एक महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग था।
एक पुल, दो कार्य
यह पुल (British era bridge) अपनी डबल-स्टोरी संरचना के लिए प्रसिद्ध था। शुरुआत में इसके ऊपरी हिस्से पर नैरो गेज रेलवे लाइन थी, जिस पर ट्रेनें चलती थीं, जबकि निचले हिस्से से हल्के वाहन और पैदल यात्री गुजरते थे। इस पुल का उपयोग 50 वर्षों तक रेलवे और सड़क यातायात के लिए किया गया। हालांकि, जैसे-जैसे यातायात बढ़ा, रेलवे के लिए एक अलग पुल बना और पुराने पुल के दोनों हिस्सों को सड़क यातायात के लिए समर्पित कर दिया गया।
पुल के ढहने से लोग हुए भावुक
पुल की स्थिति पिछले कुछ वर्षों में खराब हो गई थी और रखरखाव की कमी के कारण यह अब खतरनाक हो चुका था। तीन साल पहले इसे यातायात के लिए बंद कर दिया गया था, जिससे किसी भी प्रकार की दुर्घटना का खतरा टल गया। इस पुल की घटना ने स्थानीय निवासियों को गहरा आघात पहुंचाया है, क्योंकि यह सिर्फ एक यातायात मार्ग नहीं, बल्कि उनके इतिहास और पहचान का हिस्सा था। इस पुल के ढहने से लोग भावुक हो गए हैं और कई लोग इस ऐतिहासिक धरोहर के लिए शोक व्यक्त कर रहे हैं। कई फिल्मों की शूटिंग भी इस पुल पर हुई थी, जिससे यह और भी प्रसिद्ध हो गया था। अब यह पुल इतिहास बनकर रह गया है, लेकिन इसके अवशेष गंगा के पानी में हमेशा एक याद के रूप में मौजूद रहेंगे।
Updated 12:51 IST, November 26th 2024