अपडेटेड 1 July 2025 at 19:46 IST
Etah samosas bribe : उत्तर प्रदेश के एटा जिले में एक ऐसा अनोखा रिश्वत कांड सामने आया है, जो सुनने में जितना हास्यास्पद है, उतना ही गंभीर और शर्मनाक भी। यहां 12 साल की बच्ची के साथ रेप जैसे जघन्य अपराध की जांच करने वाले दारोगा ने 6 समोसे में अपना ईमान बेच दिया। नाबालिग से रेप की जांच कर रहे जांच अधिकारी ने छह समोसों की रिश्वत लेकर न केवल मामले को दबाने की कोशिश की, बल्कि न्याय की पूरी प्रक्रिया को ही तेल में तले समोसे की तरह चटपटा बना दिया।
नाबालिग से रेप के आरोपी ने मामले में जांच करने वाले पुलिस अफसर को 6 समोसे खिलाए और उसने पूरा केस पलट दिया। जब मामला कोर्ट पहुंचा तो, पॉक्सो कोर्ट ने लताड़ लगाते हुए दारोगा के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया। ये पूरा केस न सिर्फ कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हमारा सिस्टम इतना सस्ता हो गया है कि 6 समोसे की कीमत में न्याय बिक सकता है?
रेप केस में जांच करने पहुंचे अफसर पर आरोप लगे हैं कि उसने 6 समोसों की रिश्वत लेकर अंतिम रिपोर्ट (FR) दाखिल कर दी। आरोपी वीरेंद्र समोसे की दुकान करता है। जांच अधिकारी ने चश्मदीद गवाहों के बयान दर्ज नहीं किए और पीड़ित के बयान को भी नजर अंदाज किया। FR को आम भाषा में "केस बंद" करने की रिपोर्ट भी कहते हैं। स्पेशल पॉक्सो कोर्ट ने फाइनल रिपोर्ट को रद्द कर दिया है। पॉक्सो न्यायालय के जज ने आरोपी के खिलाफ कार्यवाही शुरू करदी है।
1 अप्रैल, 2019 को स्कूल से घर लौट रही 12 साल की किशोरी के साथ रेप की घटना हुई थी। इसका आरोप गांव के ही वीरेंद्र पर लगा था। पीड़ित ने हिम्मत दिखाते हुए थाने में FIR दर्ज कराई, लेकिन कहानी यहीं से एक अजीब मोड़ लेती है। जांच के लिए नियुक्त दारोगा ने, इस मामले की गंभीरता को समझने के बजाय, अपनी भूख को तरजीह दी। आरोप है कि दारोगा ने आरोपी वीरेंद्र की दुकान से छह समोसे रिश्वत के रूप में लिए और बदले में अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर दी। दारोगा ने न चश्मदीद गवाहों के बयान दर्ज किए गए, न ही पीड़िता की बात को गंभीरता से लिया गया।
इस मामले को स्पेशल पॉक्सो कोर्ट के जज एमपी सिंह राणा ने गंभीरता से लिया। पीड़ित के भाई ने FR के खिलाफ कोर्ट में आपत्ति दर्ज की, जिसके बाद यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि दारोगा ने 6 समोसों के बदले केस को दबाने की कोशिश की थी। कोर्ट ने FR को रद्द कर दारोगा के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए हैं।
यह मामला हमें सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर कब तक हमारा सिस्टम ऐसी लापरवाही और भ्रष्टाचार को बर्दाश्त करता रहेगा? क्या एक बच्ची का दर्द, उसका न्याय, छह समोसों से कम कीमती है? पॉक्सो कोर्ट का यह फैसला एक उम्मीद की किरण है, लेकिन यह काफी नहीं है। जरूरत है ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सख्त नियमों और उनको सही से लागू करने की। ताकि भविष्य में कोई दारोगा समोसे के लालच में किसी मासूम का हक न छीन सके।
पब्लिश्ड 1 July 2025 at 19:46 IST