अपडेटेड 19 June 2025 at 16:02 IST
ईरान और इज़रायल के बीच चल रहे तनावपूर्ण हालात के बीच एक ऐतिहासिक तथ्य एक बार फिर चर्चा में आ गया है। ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई का भारत, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश से गहरा संबंध रहा है। इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि खामेनेई के दादा सैयद अहमद मुसावी का जन्म 19वीं शताब्दी की शुरुआत में उत्तर प्रदेश के बाराबंकी ज़िले के किंतूर गांव में हुआ था। सैयद अहमद मुसावी एक धर्मगुरु थे, जो बाद में वर्ष 1830 में भारत से ईरान चले गए थे। ईरान जाकर उन्होंने धार्मिक जीवन को आगे बढ़ाया और वहीं बस गए। उनके वंशजों में से एक अयातुल्ला अली खामेनेई आगे चलकर ईरान के सर्वोच्च नेता बने और देश की राजनीति, कूटनीति और धार्मिक नेतृत्व में निर्णायक भूमिका निभाई।
ईरान के पहले सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई का एक ऐतिहासिक संबंध भारत के उत्तर प्रदेश राज्य से भी जुड़ा हुआ है। इतिहासकारों के अनुसार, खामेनेई के दादा, सैयद अहमद मुसावी का जन्म 19वीं सदी की शुरुआत में बाराबंकी जिले के किंतूर गांव में हुआ था। सैयद अहमद मुसावी उस दौर में शिक्षा और सामाजिक चेतना के क्षेत्र में काफी सक्रिय थे। वह गांव के लोगों को शिक्षित करने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे और शिक्षा के महत्व को लेकर उन्हें लगातार प्रोत्साहित करते थे। उनके योगदान को आज भी किंतूर गांव के इतिहास में एक गौरवपूर्ण अध्याय माना जाता है। वर्ष 1830 में सैयद अहमद मुसावी भारत से ईरान चले गए, जहां उनका परिवार बाद में स्थायी रूप से बस गया। उनके वंशजों में से ही अली खामेनेई का जन्म हुआ, जिन्होंने आगे चलकर ईरान के सर्वोच्च नेता के रूप में वैश्विक पहचान बनाई।
ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई का भारत से जुड़ाव केवल पारिवारिक नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और बौद्धिक स्तर पर भी महत्वपूर्ण रहा है। ऐतिहासिक दस्तावेजों और स्थानीय परंपराओं के अनुसार, उनके दादा सैय्यद अहमद मूसवी हिंदी का जन्म 1790 के आसपास उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के किंतूर गांव में हुआ था। सैय्यद अहमद मूसवी एक प्रतिष्ठित शिया इस्लामी विद्वान थे। अपने गहन धार्मिक ज्ञान और समाज में प्रभाव के कारण, उन्हें स्थानीय लोग 'हिंदुस्तानी मुल्ला' के नाम से जानते थे। किंतूर में उनका व्यक्तित्व न केवल धार्मिक बल्कि शैक्षिक और सामाजिक चेतना का भी प्रतीक था। वर्ष 1830 के आसपास, सैय्यद अहमद मूसवी भारत से ईरान प्रवास कर गए, जहां उन्होंने धार्मिक जीवन को आगे बढ़ाया और वहीं स्थायी रूप से बस गए। उनके वंशजों में आगे चलकर अयातुल्ला अली खामेनेई का जन्म हुआ, जिन्होंने आधुनिक ईरान की राजनीतिक और धार्मिक दिशा तय की।
20वीं सदी के मध्य में, जब ईरान में पहलवी वंश का शासन था, देश के राजा की नीतियां जनविरोधी मानी जाती थीं। वह पश्चिमी देशों, विशेष रूप से अमेरिका, के प्रभाव में शासन चला रहे थे। जनता पर अत्याचार बढ़ते जा रहे थे, धार्मिक स्वतंत्रता कुचली जा रही थी और परंपरागत इस्लामी मूल्यों को दरकिनार किया जा रहा था। इन्हीं परिस्थितियों में, अयातुल्ला रूहुल्लाह खामेनेई ने शाह रजा पहलवी शासन के विरुद्ध मुखर आंदोलन छेड़ा। उन्होंने खुलकर राजा की नीतियों का विरोध किया। शाह ने अयातुल्ला खामेनेई को देश से निर्वासित कर दिया और 7 जनवरी 1978 को एक ईरानी अखबार में उन्हें 'भारतीय एजेंट' कह कर बदनाम करने की कोशिश की गई। लेकिन इसका उलटा असर हुआ आम लोग सड़कों पर उतर आए, और खामेनेई के पक्ष में व्यापक जनांदोलन शुरू हो गया। परिणामस्वरूप, 16 जनवरी 1979 को शाह ईरान छोड़कर भाग गया, और 1 फरवरी 1979 को अयातुल्ला खामेनेई ईरान वापस लौटे। यह वापसी केवल एक व्यक्ति की नहीं थी, यह ईरान की आत्मा की वापसी मानी गई और फिर 11 फरवरी 1979 को, दुनिया ने देखा कि ईरान में इस्लामी क्रांति सफल हो गई, और इस्लामी गणराज्य की स्थापना हुई। अयातुल्ला खामेनेई को ईरान का पहला सर्वोच्च नेता (Supreme Leader) घोषित किया गया। यह एक ऐसा पद था जो धार्मिक और राजनीतिक दोनों स्तरों पर सर्वोच्च अधिकार रखता है।
पब्लिश्ड 19 June 2025 at 16:02 IST