अपडेटेड 8 October 2024 at 23:22 IST

उच्चतम न्यायालय ने आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला किया खारिज, जानें वजह

आत्महत्या के लिए उकसाने से संबंधित मामलों में कानून के सही सिद्धांतों को समझने और लागू करने में अदालतों की असमर्थता के कारण अनावश्यक मुकदमों को बढ़ावा मिलता है।

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Supreme Court
Supreme Court | Image: ANI

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि आत्महत्या के लिए उकसाने से संबंधित मामलों में कानून के सही सिद्धांतों को समझने और लागू करने में अदालतों की असमर्थता के कारण अनावश्यक मुकदमों को बढ़ावा मिलता है।

उच्चतम न्यायालय ने आत्महत्या के लिए कथित रूप से उकसाने के एक मामले में तीन आरोपियों के खिलाफ लखनऊ की एक अदालत में लंबित कार्यवाही को रद्द कर दिया। न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि वह मृतक के परिवार के सदस्यों की भावनाओं से अनभिज्ञ नहीं है, जिन्होंने पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करायी थी, लेकिन अंततः मामले को देखना तथा यह सुनिश्चित करना पुलिस और अदालत का काम है कि आरोपों का सामना कर रहे व्यक्तियों को अनावश्यक रूप से परेशान न किया जाए।

‘इन दिनों चलन यह है कि...’

उच्चतम न्यायालय ने तीन अक्टूबर के अपने आदेश में कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाने) के तहत अपराध दर्ज करने के लिए आवश्यक तत्व तभी पूरे होंगे, जब मृतक ने आरोपी के प्रत्यक्ष उकसावे के कारण आत्महत्या की हो।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इन दिनों चलन यह है कि अदालतें पूरी सुनवाई के बाद ही अपराध के पीछे की मंशा को समझ पाती हैं। इसने कहा, ‘‘समस्या यह है कि अदालतें सिर्फ आत्महत्या के तथ्य को ही देखती हैं और इससे ज्यादा कुछ नहीं। हमारा मानना ​​है कि अदालतों की ऐसी समझ गलत है। यह सब अपराध और आरोप की प्रकृति पर निर्भर करता है।’’

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'आत्महत्या के लिए उकसाने से संबंधित कानून के सही सिद्धांतों…'

पीठ ने कहा कि अदालतों को यह पता होना चाहिए कि आत्महत्या के लिए उकसाने से संबंधित कानून के सही सिद्धांतों को रिकॉर्ड में मौजूद तथ्यों के आधार पर कैसे लागू किया जाए। इसने कहा, ‘‘आत्महत्या के लिए उकसाने के मामलों में कानून के सही सिद्धांतों को समझने और लागू करने में अदालतों की असमर्थता के कारण अनावश्यक मुकदमों को बढ़ावा मिलता है।’’

उच्चतम न्यायालय ने तीन आरोपियों द्वारा दायर उस अपील पर अपना आदेश पारित किया जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के मार्च, 2017 के आदेश को चुनौती दी गई थी। आदेश में उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के अनुरोध संबंधी उनकी याचिका को खारिज कर दिया गया था।

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पीड़ित एक निजी फर्म का कर्मचारी था और पिछले 23 वर्षों से कंपनी में काम कर रहा था। रिकॉर्ड में यह बात सामने आई कि उस व्यक्ति ने नवंबर, 2006 में लखनऊ के एक होटल के कमरे में आत्महत्या कर ली थी और उसके बाद उसके भाई ने स्थानीय पुलिस में प्राथमिकी दर्ज कराई थी।

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Published By : Ruchi Mehra

पब्लिश्ड 8 October 2024 at 23:22 IST