अपडेटेड 9 December 2025 at 09:58 IST

'पजामे की डोरी खींचना रेप नहीं', इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार; CJI सूर्यकांत बोले- ऐसी टिप्पणियां...

चीफ जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने कहा कि कोर्ट के ऐसे आदेशों और कमेंट्स का सेक्सुअल असॉल्ट सर्वाइवर्स पर डराने वाला असर पड़ता है, इस हद तक कि उन पर केस वापस लेने का दबाव आ सकता है।

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Supreme Court of India
Supreme Court of India | Image: ANI

सुप्रीम कोर्ट ने रेप और सेक्सुअल असॉल्ट के मामलों में देश भर की अदालतों द्वारा दिए गए विवादित और महिला विरोधी आदेशों पर चिंता जताई। कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे पर रोक लगाने के लिए ज्यादा जानकारी इकट्ठा करने के बाद हाई कोर्ट के लिए गाइडलाइंस का एक डिटेल्ड सेट जारी किया जा सकता है।

चीफ जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने कहा कि कोर्ट के ऐसे आदेशों और कमेंट्स का सेक्सुअल असॉल्ट सर्वाइवर्स पर डराने वाला असर पड़ता है, इस हद तक कि उन पर केस वापस लेने का दबाव आ सकता है।

चीफ जस्टिस कांत ने कहा कि अगर ऐसे सभी मामलों की डिटेल्स मौजूद हैं तो सुप्रीम कोर्ट पूरी गाइडलाइंस ला सकता है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस विवादित फैसले पर बहुत सख्त कमेंट किए, जिसमें कहा गया था कि 'पजामे का नाड़ा तोड़ना और ब्रेस्ट पकड़ना रेप की कोशिश के आरोप के लिए काफी नहीं है।'

CJI ने साफ शब्दों में कहा- 

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कोर्ट्स, खासकर हाई कोर्ट्स को, फैसले लिखते समय और सुनवाई के दौरान हर कीमत पर ऐसी बुरी बातों से बचना चाहिए। 

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया। CJI ने कहा - 'हम हाई कोर्ट का ऑर्डर खारिज करेंगे और ट्रायल जारी रहने देंगे।'

एक और कमेंट का किया जिक्र

सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट शोभा गुप्ता ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक और रेप केस के बारे में जानकारी शेयर की, जिसमें कहा गया था- 

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'औरत ने खुद मुसीबत बुलाई, उसके साथ जो कुछ भी हुआ, उसके लिए वही जिम्मेदार है। क्योंकि रात हो चुकी थी। इसके बावजूद, वह उसके साथ कमरे में गई।'

एडवोकेट ने कहा कि कलकत्ता हाई कोर्ट और राजस्थान हाई कोर्ट ने भी ऐसे कमेंट किए हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि आज भी सेशन कोर्ट की कार्यवाही में एक लड़की को 'इन कैमरा' (बंद कमरे में) कार्यवाही के दौरान परेशान किया गया।' इस पर CJI ने कहा, 'अगर आप ये सभी उदाहरण दे सकते हैं, तो हम गाइडलाइंस जारी कर सकते हैं।'

क्या है इलाहाबाद हाई कोर्ट वाला मामला?

कासगंज, UP की एक महिला ने 12 जनवरी, 2022 को कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई। उसने आरोप लगाया कि 10 नवंबर, 2021 को वह अपनी 14 साल की बेटी के साथ कासगंज के पटियाली में अपनी ननद के घर गई थी। वह उस शाम घर लौट रही थी। रास्ते में उसे गांव के ही रहने वाले पवन, आकाश और अशोक मिले।

पवन ने उसकी बेटी को अपनी बाइक से घर छोड़ने की पेशकश की। मां ने उस पर भरोसा करके उसे बाइक पर बैठा लिया, लेकिन रास्ते में पवन और आकाश ने लड़की के प्राइवेट पार्ट को पकड़ लिया। आकाश ने उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की और उसके पजामे का नाड़ा तोड़ दिया। लड़की की चीखें सुनकर ट्रैक्टर से गुजर रहे सतीश और भूरे मौके पर पहुंचे। आरोपियों ने उन्हें देसी पिस्तौल दिखाकर धमकाया और भाग गए।

पीड़िता की मां FIR दर्ज कराने गई। जब पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की, तो उसने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। आरोपी पवन और आकाश के खिलाफ IPC की धारा 376, 354, 354B और POCSO एक्ट की धारा 18 के तहत केस दर्ज किया गया। वहीं, आरोपी अशोक के खिलाफ IPC की धारा 504 और 506 के तहत केस दर्ज किया गया। आरोपियों ने समन ऑर्डर को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दायर की।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 19 मार्च को क्या कहा?

'किसी लड़की के प्राइवेट पार्ट्स को पकड़ना, उसके पजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे जबरदस्ती पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना रेप या 'रेप की कोशिश' नहीं माना जाएगा।'

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने 2 आरोपियों के खिलाफ धाराओं में बदलाव करते हुए यह फैसला सुनाया। 3 आरोपियों के खिलाफ दायर क्रिमिनल रिवीजन पिटीशन भी स्वीकार कर ली गई।

सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस फैसले पर खुद संज्ञान लिया था। तत्कालीन जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने कहा-

यह बहुत गंभीर मामला है और यह फैसला देने वाले जज ने बहुत इनसेंसिटिविटी दिखाई। हमें यह कहते हुए बहुत दुख हो रहा है कि फैसला लिखने वाले व्यक्ति में सेंसिटिविटी की पूरी तरह कमी थी।

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Published By : Kunal Verma

पब्लिश्ड 9 December 2025 at 09:58 IST