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अपडेटेड August 1st 2024, 11:45 IST

आरक्षण को लेकर बड़ी खबर, SC ने पलटा 2004 का फैसला; अब कोटे के अंदर कोटे को मंजूरी मिली

2004 में दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एससी-एसटी जनजातियों में सब कैटेगरी नहीं बनाई जा सकती। फिलहाल 7 जजों की संविधान पीठ ने फैसला पलट दिया है।

Reported by: Digital Desk
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सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण मामले में बड़ा फैसला दिया। | Image: PTI/File

SC-ST quota sub-classifications: सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को लेकर बहुत बड़ा फैसला सुनाया है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने कोटा के अंदर कोटा को मंजूरी दे दी है। सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संविधान पीठ ने बहुमत से फैसला दिया है कि राज्य सरकार अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में सब कैटेगरी बना सकती है। 7 जजों की बेंच ने 2004 में ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए 5 जजों के फैसले को पलट दिया है। 2004 में दिए उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एससी/एसटी जनजातियों में सब कैटेगरी नहीं बनाई जा सकती। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने 6:1 के बहुमत से निर्णय लिया है कि एससी, एसटी कोटे में उपवर्गीकरण किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपने फैसले में कहा कि सब कैटेगरी बना सकती हैं। सीजेआई ने कहा कि अनुसूचित जाति और जनजाति के उपवर्गीकरण यानी कैटेगरी अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता है, क्योंकि इन उपवर्गों को सूची से बाहर नहीं रखा गया है। अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 15, 16 में ऐसा कुछ नहीं है, जो राज्य को किसी जाति को उपवर्गीकृत करने से रोकता हो।  कोर्ट ने ये भी टिप्पणी की कि उपवर्गीकरण का आधार राज्य के सही आंकड़ों पर आधारित होना चाहिए, इस मामले में राज्य अपनी मर्जी से काम नहीं कर सकता। हालांकि आरक्षण के बावजूद निचले तबके के लोगों को अपना पेशा छोड़ने में कठिनाई होती है।

पिछड़े समुदायों को प्राथमिकता देना राज्य का कर्तव्य- जस्टिस गवई

जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि पिछड़े समुदायों को प्राथमिकता देना राज्य का कर्तव्य है, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के केवल कुछ लोग ही आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि जमीनी हकीकत से इनकार नहीं किया जा सकता कि एससी/एसटी के भीतर ऐसी श्रेणियां हैं जिन्हें सदियों से उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। उप-वर्गीकरण का आधार ये है कि एक बड़े समूह में से एक ग्रुप को अधिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है। जस्टिस गवई ने कहा कि अनुसूचित जाति के क्रीमी लेयर (संपन्न वर्ग) के बच्चों की तुलना गांव में मैला ढोने वाले अनुसूचित जाति के व्यक्ति के बच्चों से करना बेईमानी होगी।

जस्टिस बीआर गवई ने बाबा साहेब अंबेडकर का एक बयान पढ़ा कि- 'इतिहास बताता है कि जब नैतिकता का सामना अर्थव्यवस्था से होता है, तो जीत अर्थव्यवस्था की होती है।'  जस्टिस बीआर गवई ने अपने अलग, लेकिन सहमति वाले फैसले में कहा कि राज्यों को SC-ST वर्गों से क्रीमी लेयर को भी बाहर करना चाहिए।

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पब्लिश्ड August 1st 2024, 11:45 IST