अपडेटेड 14 February 2025 at 11:03 IST
वो राज्य जिसने देश में सबसे पहले देखा राष्ट्रपति शासन, कांग्रेस में पड़ी थी फूट और CM ने दे दिया था इस्तीफा
पंजाब देश का ऐसा पहला राज्य था, जहां 26 जनवरी 1950 में संविधान लागू होने के दो साल के भीतर ही राष्ट्रपति शासन लगाने की जरूरत पड़ी।
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President Rule: मणिपुर राज्य में 13 फरवरी से राष्ट्रपति शासन लागू हो चुका है। नया मुख्यमंत्री नहीं चुने जाने की स्थिति में मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगा है। इससे मणिपुर देश का ऐसा पहला राज्य बना है, जो सबसे अधिक बार राष्ट्रपति शासन के अधीन आया है। एन बीरेन सिंह ने 9 फरवरी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और राज्य में बहुमत वाली बीजेपी अगला सीएम नहीं चुन पाई। उस स्थिति में विधानसभा के दो सत्रों के बीच का समय भी निकल गया। नतीजन मणिपुर में राज्यपाल की रिपोर्ट के बाद राष्ट्रपति शासन का ऐलान कर दिया गया।
संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा होती है, जिससे मतलब होता है राज्य सरकार को निलंबित करना और केंद्र का सीधा शासन लागू करना। केंद्र संबंधित राज्य का सीधा नियंत्रण अपने हाथ में लेती है। फिलहाल यहां मणिपुर की बात ना करके पंजाब की बात करते हैं, क्योंकि पंजाब ऐसा राज्य है, जिसने पूरे देश में सबसे पहले राष्ट्रपति शासन देखा है। किन परिस्थितियों में पंजाब में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगा वो भी समझते हैं...
देश में सबसे पहले पंजाब में लगा राष्ट्रपति शासन
पंजाब देश का ऐसा पहला राज्य था, जहां 26 जनवरी 1950 में संविधान लागू होने के दो साल के भीतर ही राष्ट्रपति शासन लगाने की जरूरत पड़ी। 20 जून 1951 में पंजाब में राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा की गई थी। राज्य में लगभग एक साल तक राष्ट्रपति शासन रहा, जो 17 अप्रैल 1952 तक चला। वो इसलिए कि गोपीचंद भार्गव मुख्यमंत्री थे। कांग्रेस पार्टी में अंदरुनी फूट पैदा हुई थी। इस बगावत के चलते सीएम गोपीचंद भार्गव ने 16 जून 1951 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। इससे कैबिनेट भी भंग हो गई। बाद में विधानसभा को निलंबित करते हुए पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की गई थी। उस समय पंजाब के राज्यपाल सी एम त्रिवेदी हुआ करते थे।
पंजाब में दूसरा सबसे लंबा राष्ट्रपति शासन रहा
इसके दो साल बाद भी पंजाब में ऐसे ही हालात देखे गए। संयुक्त दलों के समर्थन से ज्ञान सिंह राड़ेवाला मुख्यमंत्री बने थे। तब यादवेंद्र सिंह पंजाब के राजप्रमुख थे। विधायक उस समय बार-बार अपना समर्थन बदल रहे थे। दल बदल की सियासत को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई में मुख्यमंत्री समेत 4 मंत्रियों के खिलाफ फैसला आया था। नतीजन मुख्यमंत्री ज्ञान सिंह राड़ेवाला को अपना इस्तीफा देना पड़ा। ज्ञान सिंह राड़ेवाला ने अपने सहयोगियों के साथ ही अपना इस्तीफा दिया था। इस स्थिति में 4 मार्च 1953 में पंजाब में फिर से राष्ट्रपति शासन लगाने जाने की उद्घोषणा की गई थी। वैसे पंजाब देश का दूसरा राज्य है, जहां सबसे लंबी अवधि 4 साल 9 महीने और 15 दिन (15 मई 1987 से 25 फरवरी 1992) तक राष्ट्रपति शासन रहा है।
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Published By : Dalchand Kumar
पब्लिश्ड 14 February 2025 at 11:03 IST