अपडेटेड 1 September 2024 at 19:59 IST

'भगवान के घर देर है,अंधेर नहीं, लेकिन...', रेप के फैसलों में देरी पर फूटा राष्ट्रपति का गुस्सा

राष्ट्रपति मूर्मू ने रेप के फैसले में देरी को लेकर भड़कते हुए कहा कि भगवान के घर देर है अंधेर नहीं, लेकिन देर कितनी हो सकती है? 32 साल, 12 साल, 20 साल, 10 साल?

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President Droupadi Murmu
राष्ट्रपति द्रौपदी मर्मू | Image: Sansad TV

कोलकाता में फीमेल डॉक्टर के साथ हुए रेप और मर्डर मामले को लेकर भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि भगवान के घर देर है अंधेर नहीं, लेकिन देर कितनी हो सकती है? हमलोगों को सोचना चाहिए। इससे पहले भी राष्ट्रपति मुर्मू ने कोलकाता रेप केस पर दुख जताते हुए कहा था कि वो निराश और डरी हुई हैं। 

राष्ट्रपति मुर्मू ने महिलाओं के साथ हो रहे जघन्य अपराध को लेकर कहा, "भगवान के घर देर है अंधेर नहीं, लेकिन देर कितनी हो सकती है? 32 साल ?, 12 साल ? , 20 साल ?, 10 साल ?, हम लोगों को सोचना चाहिए। जिसको 32 साल बाद न्याय मिलेगा, तब तक उनके चेहरे से मुस्कान ही खत्म हो जाएगी, जिंदगी ही खत्म हो जाएगी। इसके बारे में गहराई से सोचना चाहिए।"

पीड़ित डरे रहते और अपराधी निर्भीक घूमते हैं: राष्ट्रपति मुर्मू

राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा, "भारत के उच्चतम न्यायालय ने लोकतंत्र की न्याय व्यवस्था में सजग प्रहरी के रूप में अमूल्य योगदान दिया। न्याय के प्रति आस्था-श्रद्धा का भाव हमारी परंपरा का हिस्सा रहा है। साधन संपन्न लोग अपराध के बाद भी निर्भीक घूमते हैं, जो लोग उनके अपराधों से पीड़ित होते हैं, वो डरे-सहमे रहते हैं। महिला पीड़िताओं की स्थिति और भी खराब होती है, क्योंकि समाज के लोग भी उनका साथ नहीं देते हैं।"

बार-बार तारीख देने की संस्कृति से गरीबों को कष्ट होता है: राष्ट्रपति मुर्मू

उन्होंने कहा कि इस पर आंकलन और सुधार हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। गांव का गरीब आदमी कोर्ट कचहरी जाने से डरता है। बहुत मजबूरी से ही अदालत की न्याय प्रक्रिया में भागीदार बनता है, क्योंकि उसे लगता है कि न्याय के लिए लड़ना उसके जीवन को और अधिक कष्टमयी बना सकता है। उसके लिए गांव से अदालत तक जाना बहुत बड़े मानसिक और आर्थिक दबाव का कारण बन जाता है। बार-बार तारीख देने की संस्कृति से गरीब लोगों को कष्ट होता है, उसकी कल्पना भी बहुत से लोग नहीं कर पाते।

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द्रौपदी मुर्मू ने कहा, "इस स्थिति को बदलने का हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए। सामान्य व्यक्ति का तनाव कोर्ट कचहरी के वातावरण में बढ़ जाता है। अदालत में लोग घबराहट में अपने पक्ष की बातें भी नहीं कह पाते हैं। बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के मामले में न्यायालय के निर्णय एक पीढ़ी गुजर जाने के बाद आते हैं, तो सामान्य व्यक्ति को लगता है कि न्याय प्रक्रिया में संवेदनशीलता कम है। गांव के गरीब लोग अदालत में नीचे से ऊपर तक जितने न्यायाधीश हैं, सभी को भगवान मानते हैं, क्योंकि वहां न्याय मिलता है।

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Published By : Kanak Kumari Jha

पब्लिश्ड 1 September 2024 at 19:59 IST