अपडेटेड 24 April 2025 at 13:46 IST

EXPLAINER/ Pahalgam Terror Attack: पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत की पाक पर 'वाटर स्ट्राइक', 5 प्वाइंट में समझें कैसे टूटेगी PAK की कमर?

Pahalgam Terror Attack : कश्मीर के पहलगाम स्थित बैसारन घाटी में हुए आतंकी हमले में 28 लोगों की मौत के बाद, भारत सरकार ने कड़े और निर्णायक कदम उठाए हैं।

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Indus Water Treaty Ended
Pahalgam Terror Attack: पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत की पाक पर 'वाटर स्ट्राइक', 5 प्वाइंट में समझें कैसे टूटेगी PAK की कमर? | Image: Republic

India Big Action on Pakistan After Pahalgam Terror Attack: मंगलवार (22 अप्रैल) को जम्मू-कश्मीर पहलगाम में हुए आंतकी हमले ने पूरे देश को गम और गुस्से में डुबो दिया। इस हमले में 28 निर्दोष लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। मरने वालों में से दो विदेशी पर्यटक भी शामिल थे। कई लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं, और देशभर में शोक की लहर दौड़ गई है। इस हमले के बाद, भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा कदम उठाते हुए करारा जवाब देना शुरू कर दिया है। भारत का सबसे महत्वपूर्ण और दूरगामी कदम था सिंधु जल संधि को स्थगित करना। सिंधु जल संधि, जो दोनों देशों के बीच पानी के बंटवारे से जुड़ी है, अब स्थगित कर दी गई है, जिससे पाकिस्तान को न केवल पानी के संकट का सामना करना पड़ सकता है, बल्कि कई क्षेत्रों में बिजली संकट भी उत्पन्न हो सकता है।

भारत के इस एक्शन से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ सकता है, खासकर उसकी जीडीपी पर। सिंधु जल संधि के तहत, पाकिस्तान को भारत से काफी मात्रा में पानी मिलता है, जो कृषि और उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण है। अगर यह पानी उपलब्ध नहीं होता, तो पाकिस्तान को अपनी खेती और अन्य आवश्यकताएं पूरा करने में दिक्कतें आ सकती हैं। साथ ही, कई राज्य अंधेरे में डूब सकते हैं क्योंकि जल विद्युत परियोजनाएं भी प्रभावित हो सकती हैं। भारत का यह कड़ा कदम न केवल पाकिस्तान को एक मजबूत संदेश देने के लिए है, बल्कि यह आतंकवाद के खिलाफ भारत की दृढ़ता और संकल्प को भी दर्शाता है।
 


पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत का कड़ा एक्शन

कश्मीर के पहलगाम स्थित बैसारन घाटी में हुए आतंकी हमले में 28 लोगों की मौत के बाद, भारत सरकार ने कड़े और निर्णायक कदम उठाए हैं। बुधवार को सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) की बैठक में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया। इस बैठक में, भारत ने 1960 में हुए सिंधु जल समझौते (Indus Waters Treaty) को तत्काल प्रभाव से स्थगित करने का निर्णय लिया। यह कदम भारत की बदलती रणनीति का हिस्सा है, जो पहलगाम आतंकी हमले के बाद उठाया गया है। सिंधु जल संधि के स्थगित होने से, पाकिस्तान को सिंधु नदी के जल का वह अधिकार अब नहीं मिलेगा, जो उसे पहले मिलता था। इसका पाकिस्तान की कृषि, ऊर्जा और समग्र अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ सकता है, क्योंकि सिंधु नदी पाकिस्तान के लिए लाइफ लाइन मानी जाती है। आइए आपको 5 प्वाइंट्स में बताते हैं कि भारत के इस फैसले से कैसे टूटेगी पाकिस्तान की कमर


एग्रीकल्चर पर बड़ा असर जमीन हो सकती है बंजर

पाकिस्तान की लगभग 80% सिंचित भूमि सिंधु नदी के पानी पर निर्भर है। अगर इस जल स्रोत में कोई रुकावट आती है तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। सिंधु जल संधि के स्थगन के बाद, पाकिस्तान में प्रमुख फसलों जैसे गेहूं, चावल और कपास की पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, जो न केवल देश की अर्थव्यवस्था, बल्कि खाद्य सुरक्षा (फूड सिक्योरिटी) के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा सिंचाई में कमी के कारण लवणता (salinity) की समस्या से पाकिस्तानी कृषि भूमि बंजर होनी शुरू हो जाएगी और ये समस्या पानी नहीं मिलने पर और भी गंभीर हो सकती है, जो पहले से ही पाकिस्तान की कृषि भूमि के 43% हिस्से को प्रभावित कर रही है। यह लवणता बढ़ने से कृषि उत्पादन में और कमी आ सकती है, जिससे खाद्यान्न संकट और अधिक गहरा हो सकता है।

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पाकिस्तान नें बढ़ेगा रोजगार संकट

सिंधु जल संधि के स्थगन के बाद अगर पानी की आपूर्ति पर रुकावट आती है तो पाकिस्तान में कृषि उत्पादन में कमी आ सकती है। इसका सीधा असर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार पर पड़ेगा, क्योंकि अधिकांश ग्रामीण जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। फसलों की पैदावार कम होने से ग्रामीण रोजगार बुरी तरह प्रभावित हो सकता है, जिससे आर्थिक अस्थिरता और डिफॉल्ट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसके अलावा, कृषि संकट के कारण बेरोजगारी बढ़ने से पाकिस्तान के बड़े शहरों, जैसे लाहौर और कराची, पर शहरी प्रवास का दबाव भी बढ़ सकता है। लोग रोज़गार की तलाश में इन शहरों की ओर पलायन कर सकते हैं, जिससे शहरी इलाकों में जनसंख्या घनत्व बढ़ेगा और शहरों में रहने की स्थिति और भी कठिन हो सकती है।

निर्यात में रुकावट और आर्थिक स्थिति पर बड़ा असर

भारत द्वारा सिंधु जल संधि को स्थगित करने के बाद पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ सकता है। जल प्रवाह में कमी के कारण, पाकिस्तान के प्रमुख कृषि निर्यात जैसे बासमती चावल में गिरावट आ सकती है। इससे न केवल कृषि उत्पादन में कमी आएगी, बल्कि पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार (फॉरेक्स रिजर्व) पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। बासमती चावल जैसे निर्यात के घटने से, पाकिस्तान को मिलने वाली विदेशी मुद्रा में कमी आ सकती है, जिससे पाकिस्तानी रुपया कमजोर हो सकता है। इससे पाकिस्तान की जीडीपी पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि निर्यात से प्राप्त होने वाली आय देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाती है। इस पानी संकट के कारण पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति संकटग्रस्त हो सकती है, और उसकी मुद्रा और विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ सकता है।

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बिजली उत्पादन पर दिखेगा बड़ा असर

पाकिस्तान की पावर सप्लाई पर सिंधु नदी के पानी पर निर्भरता गहरी है, खासकर जल विद्युत उत्पादन के मामले में। तरबेला और मंगला बांधों से होने वाला जल विद्युत उत्पादन जो देश की कुल विद्युत आपूर्ति का लगभग 30% हिस्सा प्रदान करता है, अब संकट में पड़ सकता है। यदि सिंधु नदी से जल का प्रवाह कम होता है तो इन बांधों से जल विद्युत उत्पादन प्रभावित हो सकता है, जिससे पाकिस्तान में बिजली की आपूर्ति ठप हो सकती है। पाकिस्तान की कई जल विद्युत परियोजनाओं के लिए सिंधु नदी बेहद महत्वपूर्ण है, और यदि नदी से पानी की आपूर्ति में रुकावट आती है, तो इसका सीधा असर देश की ऊर्जा क्षेत्र पर पड़ेगा। इससे न केवल बिजली की कमी हो सकती है, बल्कि ऊर्जा संकट भी पैदा हो सकता है, जो पाकिस्तान की समग्र अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा।

पाकिस्तान में बढ़ेगा अंतर प्रांतीय तनाव

सिंधु जल संधि के स्थगन और जल प्रवाह में कमी के कारण पाकिस्तान में अंतर-प्रांतीय जल तनाव (Water Tension) एक गंभीर मुद्दा बन सकता है। जल की कमी से प्रांतों के बीच विवाद उत्पन्न हो सकते हैं, जैसा कि 1991 के जल समझौते के दौरान देखा गया था। उस समय पंजाब, सिंध, खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान ने जल आवंटन के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे लेकिन यह करार कई विवादों में फंस गया था और प्रांतों के बीच गंभीर तनाव पैदा हुआ था। अब, जब सिंधु नदी से जल आपूर्ति में रुकावट आएगी, तो इन प्रांतों के बीच जल वितरण को लेकर फिर से विवाद हो सकता है। पानी की कमी से प्रांतों के बीच संघर्ष और विवाद बढ़ सकते हैं। जो 1991 के समझौते के बाद उत्पन्न ऐतिहासिक तनाव को फिर से सामने ला सकते हैं। इस जल तनाव का असर केवल राजनीतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य पर नहीं बल्कि पाकिस्तान के समग्र आंतरिक शांति और स्थिरता पर भी पड़ेगा।

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Published By : Ravindra Singh

पब्लिश्ड 24 April 2025 at 13:46 IST