अपडेटेड 30 July 2025 at 18:06 IST
NISAR Satellite Launch: ISRO-NASA का सबसे बड़ा मिशन 'निसार' श्रीहरिकोटा से हुआ लॉन्च, पूरी धरती को करेगा स्कैन
ISRO और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA के संयुक्त प्रयास से बनाया गया निसार (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) सैटेलाइट आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॅान्च कर दिया गया।
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भारत और अमेरिका की साझेदारी में बुधवार को एक ऐतिहासिक कदम उठाया गया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ISRO और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA के संयुक्त प्रयास से बनाया गया निसार (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) सैटेलाइट आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॅान्च कर दिया गया। यह सैटेलाइट GSLV Mk-II रॉकेट के जरिए 747 किलोमीटर की सूर्य-समकालिक कक्षा (Sun-Synchronous Orbit) में स्थापित किया जाएगा।
आपको बता दें कि ‘निसार’ मिशन को पिछले साल लॉन्च किया जाना था, लेकिन एंटीना खराब होने से इसकी लॉन्चिंग टल गई थी। इसरो और नासा मिलकर पहली बार ऐसा सेटेलाइट लॉन्च कर रहे हैं जो पूरी धरती पर नजर रखेगा। निसार प्रत्येक 12 दिनों पर समूची पृथ्वी की भूमि व बर्फीली सतहों को स्कैन करेगा। यह एक सेंटीमीटर स्तर तक की सटीक फोटो खींचने व प्रसारित करने में सक्षम है।
निसार मिशन के तहत जुटाया जाने वाला डेटा दुनियाभर के शोधकर्ताओं को मुफ्त में उपलब्ध कराया जाएगा। मिशन के तहत लॉन्च होने वाला सैटेलाइट धरती के सबसे खतरनाक इलाकों को स्कैन करेगा। विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए पहले से तैयारी करने में मदद करेगा।
क्या है निसार और क्यों है ये मिशन खास
NISAR यानी नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार एक ऐसा सैटेलाइट है, जो धरती की सतह के सूक्ष्म से सूक्ष्म बदलावों को भी पकड़ सकता है। हर मौसम और हर स्थिति में, चाहे बादल हों, घना जंगल हो, या रात का अंधेरा यह सैटेलाइट सबकुछ देख सकता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है डुअल-फ्रीक्वेंसी रडार तकनीक, जिसमें NASA का L-बैंड और ISRO का S-बैंड एक साथ काम करते हैं। यह तकनीक पहली बार किसी एक सैटेलाइट में इस्तेमाल की जा रही है।
NISAR हर 12 दिन में पृथ्वी के लगभग पूरे हिस्से को स्कैन करेगा। 743 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित यह सैटेलाइट 97 मिनट में पृथ्वी की परिक्रमा करेगा। यह दुनिया का पहला सैटेलाइट है, जो स्वीपSAR तकनीक का उपयोग करके 242 किलोमीटर चौड़े क्षेत्र को उच्च रिजॉल्यूशन के साथ स्कैन करेगा। यह तकनीक इसे बादलों, धुएं, और अंधेरे को भेदकर 24 घंटे, हर मौसम में पृथ्वी की सतह की तस्वीरें लेने में सक्षम बनाती है।
ISRO ने कितना किया है खर्च
इसरो ने इस मिशन में 788 करोड़ रुपये (लगभग 96 मिलियन डॉलर) का योगदान दिया है, जो कुल लागत का एक छोटा हिस्सा है। फिर भी, भारत को इस मिशन से मिलने वाले लाभ अपार हैं। सबसे पहले, NISAR का डेटा पूरी तरह से ओपन-सोर्स होगा, जिसका मतलब है कि भारतीय वैज्ञानिक, किसान, और आपदा प्रबंधन टीमें इसे मुफ्त में उपयोग कर सकेंगे।
3 साल तक काम करेगा सैटेलाइट
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मिशन के तहत लॉन्च होने वाले सैटेलाइट को धरती से 747 किलोमीटर ऊपर पृथ्वी की कक्षा (LEO) में स्थापित किया जाएगा और यह मिशन 3 साल तक काम करता रहेगा।
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Published By : Ankur Shrivastava
पब्लिश्ड 30 July 2025 at 17:42 IST