अपडेटेड 10 October 2024 at 17:11 IST
Ratan Tata Idea Cheep Car for Middle Class: भारत के पद्मविभूषण और दिग्गज उद्यमी रतन टाटा का बुधवार (9 अक्टूबर) की रात मुंबई के कैंडी ब्रीच अस्पताल में निधन हो गया। रतन टाटा ने देश के लिए ऑटोमोबाइल क्षेत्र में जो काम किया है उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है। ये रतन टाटा ही थे जिन्होंने देश की आम जनता के लिए एक बजट कार की न सिर्फ परिकल्पना की थी बल्कि उसे साकार भी कर दिखाया था। देश की मिडिल क्लास फैमिली को कार देने के लिए रतन टाटा को काफी संघर्ष करना पड़ा था। इतना आसान न था देश के आम आदमी को कार में बैठाना लेकिन रतन टाटा ने अपने मजबूत इरादों से असंभव को भी संभव कर दिखाया था।
नैनो कार बनाने के पीछे रतन टाटा की कोई व्यापारिक रणनीति नहीं थी बल्कि इसके पीछे छिपी थी उनकी मानवीय संवेदना। देश के आम आदमी को कार देने का सपना रतन टाटा ने 2000 के शुरुआत में देखा था, वो भी ऐसे समय जब टाटा समूह फैमिली कार को लेकर मार्केट में फ्लॉप हो गया था। इसी दौरान एक तरफ उन्होंने फैमिली कार प्लांट बेचने का मन भी बना लिया था लेकिन अमेरिका में उनकी फोर्ड कार के चेयरमैन के साथ हुई डील के दौरान उनका इरादा बदल गया, और उन्होंने भारत आकर किसी भी तरह से टाटा की फैमिली कार प्लांट को आगे बढ़ाने में लगाया। आइए आपको बताते हैं कैसे रतन टाटा के मन में मिडिल क्लास फैमिली को कार में बैठाने का सपना पनपा और कितने संघर्षों के बावजूद उन्होंने इस सपने को पूरा कर दिखाया।
एक दिन रतन टाटा अपनी कार में बैठकर कहीं जा रहे थे तभी बारिश होने लगी। इसी दौरान एक परिवार एक स्कूटर पर 4 लोगों के साथ बैठकर जा रहा था। अचानक हुई बारिश से उन्होंने बचने की कोशिश की लेकिन तेज बारिश में उनका स्कूटर फिसल गया और वो सभी लोग गिर गए। इस घटना रतन टाटा को झकझोर दिया था। उनके मन में विचार आया कि अगर इस परिवार के पास एक कार रही होती तो शायद ये लोग बारिश से बच भी जाते और बारिश में सफर का लुत्फ भी उठा सकते थे। इस घटना के बाद उन्होंने तय किया कि वो मिडिल क्लास फैमिली के लिए भी एक ऐसी कार बनाएंगे जो उनके बजट में हो, जिससे कि वो भी अपने परिवार के साथ बारिश में भी सुरक्षित सफर का मजा ले सके।
रतन टाटा ने साल 2000 में इसकी परिकल्पना की थी और महज 9 सालों में इसे साकार कर दिखाया। साल 2008 के ऑटो एक्सपो में पेश करने के बाद टाटा ने नैनो कार को साल 2009 में लांच कर दिया था। ये सफर बताने में जितना आसान लग रहा है उतना था नहीं। रतन टाटा की इस लखटकिया कार को बनाने में उन्हें बहुत संघर्षों को सामना करना पड़ा था। लखटकिया कार (टाटा नैनो) रतन टाटा का ड्रीम प्लान था वो इस प्लान में अपना नफा-नुकसान नहीं तलाश रहे थे बल्कि वो देश के लिए कुछ करना चाहते थे इसलिए ये प्रोजेक्ट उनके लिए ड्रीम प्रोजेक्ट जैसा था। पश्चिम बंगाल के सिंगूर में टाटा नैनों बनाने के लिए प्लांट लगाया गया था लेकिन विपक्ष के विरोध के बाद उन्हें ये प्लांट गुजरात के साणंद में शिफ्ट करना पड़ा था। आइए आपको बताते हैं सिंगूर के विरोध की कहानी जब टाटा नैनों प्लांट को सिंगूर से गुजरात शिफ्ट करना पड़ा था।
साल 2006 में जब रतन टाटा ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट लखटकिया कार (टाटा नैनों) बनाने का प्रस्ताव पश्चिम बंगाल की वाम सरकार को भेजा तो उन्होंने इसका भरपूर स्वागत किया और टाटा समूह को लगभग 100 एकड़ जमीन 99 सालों की लीज पर दिया। इस दौरान पश्चिम बंगाल में विपक्षी नेता ममता बनर्जी ने इस प्लांट का जबरदस्त विरोध किया और इसे रोकने के लिए वो भूख हड़ताल पर बैठ गईं। ममता का कहना था कि किसानों की जमीन को जबरिया अधिग्रहण करने का आरोप लगाया और 26 दिनों तक आमरण अनशन के लिए बैठीं रहीं। वहीं इस मामले में वाम सरकार का कहना था कि राज्य की बदहाल अर्थव्यवस्था पटरी पर ले आने के लिए यहां पर निवेश और उद्योगों को बढ़ावा देने की जरूरत है।
पश्चिम बंगाल के सिंगूर में हो रहे राजनीतिक विरोध के साथ-साथ सिंगुर के किसानों के विरोध के बाद रतन टाटा ने 3 अक्टूबर 2008 को नैनो प्रोजेक्ट को सिंगूर से बाहर ले जाने का ऐलान कर दिया। अब ये प्लांट गुजरात के साणंद में लगाया गया। यहां पर टाटा का ये प्रोजेक्ट भले ही पश्चिम बंगाल से बाहर चला गया लेकिन ममता बनर्जी ने वो कर दिखाया जो साढे़ तीन दशक से कोई नहीं कर सका था। साल 2011 में ममता बनर्जी ने 34 साल से सत्ता में बैठे वाम शासन को बंगाल से उखाड़ फेंका। सिंगूर आंदोलन ने ममता के राजनीतिक करियर में उन्हें सबसे बड़ी छलांग दी। 1977 से लगातार पश्चिम बंगाल में राज कर रहे वाम शासन को ममता ने 2011 के विधानसभा चुनाव में उखाड़ फेंका
अपना ड्रीम प्रोजेक्ट अपने टारगेट से दूर होता देख रतन टाटा काफी दुखी हो गए थे। तब मौजूदा प्रधानमंत्री और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्री रतन टाटा को एक एसएमएस भेजा , जिसमें केवल "सुस्वागतम" लिखा था, ताकि उन्हें टाटा नैनो फैक्ट्री को गुजरात में स्थानांतरित करने के लिए राजी किया जा सके। इसके बाद पूरे प्लांट को गुजरात के साणंद में ट्रांसफर किया गया यहां पर नया प्रोजेक्ट तैयार करने में महज 14 महीने ही लगे थे जबकि सिंगूर में 28 महीने लग गए थे। साल 2009 में रतन टाटा का ड्रीम प्रोजेक्ट सफल होकर सड़कों पर उतर आया था और अब मिडिल क्लास फैमिली को भी सस्ती कार मुहैया हो गई थी। इस तरह से बड़े संघर्षों के बाद रतन टाटा ने मिडिल क्लास को कार देने का सपना साकार किया था।
इसके बाद साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने टाटा मोटर्स के लिए पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा 997 एकड़ कृषि भूमि के अधिग्रहण को रद्द कर दिया और 9,117 भूस्वामियों को इसे वापस करने का आदेश दिया। 30 अक्टूबर 2023 को, टाटा मोटर्स ने सिंगुर प्लांट मामले में 766 करोड़ रुपये (लगभग 103 मिलियन डॉलर) का मध्यस्थता पुरस्कार और 11% ब्याज हासिल किया । तीन सदस्यीय मध्यस्थ न्यायाधिकरण ने सर्वसम्मति से टाटा मोटर्स के पक्ष में फैसला सुनाया, जिससे उन्हें सिंगुर में परित्यक्त नैनो कार विनिर्माण सुविधा से संबंधित नुकसान की भरपाई हुई।
पब्लिश्ड 10 October 2024 at 17:11 IST