अपडेटेड 2 April 2025 at 22:31 IST
भगवान राम के रघुकुल से जुड़ता है मेवाड़ राजवंश, 54वें महाराज थे महाराणा प्रताप अब गद्दी पर बैठे लक्ष्यराज सिंह, पूरी वंशावली
राजघराने की पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार मेवाड़ राजघराने में नए राजा को 16 उमराव और सलूम्बर रावत गद्दी पर बैठाते हैं। लक्ष्यराज सिंह इस राजवंश के 77वें वंशज हैं
- भारत
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Lakshyaraj Singh Mewar coronation : मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार के सदस्य स्वर्गीय अरविंद सिंह मेवाड़ के बाद राजवंश को नया 'महाराज' मिल गया है। बुधवार को करीब 450 साल पुराने ऐतिहासिक उदयपुर सिटी पैलेस में पूरे शाही अंदाज में विधि-विधान के साथ लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ का राज्याभिषेक किया गया। राजपूतों का इतिहास ऐसी कई लड़ाईयों से रक्तरंजित है। जब किसी राजवंश में गद्दी के लिए दो भाईयों में लड़ाई हुई हो। मेवाड़ राजपरिवार में वर्तमान की स्थिति भी ऐसी ही है। इससे पहले विश्वराज सिंह का 77वें वंशज के रूप में राजतिलक हुआ था। वहीं लक्ष्यराज सिंह खुद को मेवाड़ वंश का असली उत्तराधिकारी बताते हैं।
भारत की आजादी के बाद राजशाही तो खत्म हो गई, लेकिन राजघरानों ने अपनी परंपराओं को जारी रखा। 2 अप्रैल, 2025 को मंत्रोच्चारण और शंखनाद के बीच कुलगुरु समेत तमाम संत-महात्माओं की उपस्थिति में 'मेवाड़ के महाराज' के रूप में लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ को औपचारिक रूप से कुलगुरु डॉ. वागीश कुमार गोस्वामी (Mewar Kulguru Baghish Kumar Goswami) ने गद्दी पर बैठाया। लक्ष्यराज सिंह ने मेवाड़ राजवंश के 76वें संरक्षक के रुप में गद्दी संभाली है। गद्दी पर बैठने के बाद लक्ष्यराज सिंह ने एकलिंगनाथजी के किए दर्शन किए और हरित राज कुलगुरु के सामने दंडवत होकर आशीर्वाद लिया।
पगड़ी उतारकर पहनी केसरिया पाग
लक्ष्यराज सिंह के पिता और मेवाड़ राजवंश के 75वें वंशज अरविंद सिंह का निधन 16 मार्च, 2025 को हुआ था। बुधवार को लक्ष्यराज सिंह का 'गद्दी दस्तूर' समारोह हुआ, जिसमें उन्होंने शोक की पगड़ी उतारकर केसरिया पाग पहनी और एकलिंग जी मंदिर में विधि-विधान के साथ पूजन किया। यह समारोह एक परंपरागत रस्म है, जो परिवार की विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी का संकेत है। मेवाड़ में अब भले ही राजशाही का शासन नहीं है, लेकिन आज भी राजपरिवार की परंपराओं को लेकर समाज में सम्मान और गहरी संवेदनशीलता है।
कैसे होता है राजतिलक?
राजघराने की पारंपरिक मान्यताओं की जानकारी रखने वालों के अनुसार मेवाड़ राजघराने में नए राजा को 16 उमराव और सलूम्बर रावत गद्दी पर बैठाते हैं। मेवाड़ राजघराने की परंपरा के अनुसार, गद्दी पर बिठाने और राजतिलक करने का विशेष अधिकार सलूम्बर रावत के पास होता है। गोगुंदा में माहाराणा प्रताप का राजतिलक भी सलूम्बर के रावत कृष्णदास चुंडावत ने किया था। रावत कृष्णदास चूंडावत ने महाराणा उदयसिंह की मौत के बाद जगमाल को हटाकर प्रताप को गद्दी पर बैठाया था।
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रघुकुल से मेवाड़ का संबंध
लक्ष्यराज सिंह या विश्वराज सिंह, मेवाड़ राजवंश के 77वें वंशज हैं। मेवाड़ राजवंश की शुरुआत राजा गुहिल से शुरू हुई थी। मेवाड़ राजघराने के वंश-वृक्ष के अनुसार राजा गृहसेन तक के राजा वल्लभी रहे और उनके बाद हुए राजा गुहिल (गुहादित्य/गुहदत्त) के वंशज मेवाड़ के नरेश हुए। इससे पहले इस वंश के 156 राजा हुए थे। महाराणा प्रताप खुद मेवाड़ राजघराने के 54वें महाराणा थे। बताया जाता है कि राजस्थान का मेवाड़ राजवंश ही पहले रघुकुल था। राजा रघु से रघुवंश की शुरूआत हुई थी। इसी वंश में राजा दिलीप, राजा दशरथ और भगवान श्रीराम हुए।
मेवाड़ राजघराने की वंशावली
बदलते रहे राजवंश और कुल के नाम
मेवाड़ की वंशावली के अनुसार आदित्य नारायण (अव्यक्त) इस कुल के पहले राजा थे। रघुकुल की शुरुआत राजा रघु से हुई इससे पहले इस कुल को इक्ष्वाकु कुल कहा जाता था। राजा इक्ष्वाकु अपने कुल के 7वें राजा थे। इक्ष्वाकु कुल से पहले के इस कुल को सूर्यवंश के नाम से जाना जाता था, सूर्यवंश में राजा मनु हुए। समय के साथ-साथ राजवंशों और कुल का नाम बदलता चला गया, राजस्थान का मेवाड़ राजघराना खुद को भगवान श्रीराम का वंशज मानता है।
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Published By : Sagar Singh
पब्लिश्ड 2 April 2025 at 22:31 IST