अपडेटेड 1 May 2025 at 19:26 IST
Kedarnath Dham: हल्की बारिश के बीच केदारनाथ धाम पहुंची बाबा केदार की डोली, कल सुबह 7 बजे खुलेंगे कपाट
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग स्थित श्री केदारनाथ धाम की पंचमुखी डोली विधिविधान के साथ मंदिर परिसर में पहुंच गई, अब बस कुछ ही क्षण बाकी है।
- भारत
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उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग स्थित श्री केदारनाथ धाम की पंचमुखी डोली विधिविधान के साथ मंदिर परिसर में पहुंच गई, अब बस कुछ ही क्षण बाकी है, जब 2 मई 2025 की सुबह 7 बजे बाबा केदार के कपाट खुल जाएंगे। श्रद्धालुओं के लिए यह बेहद खुशी की खबर है। हिमालय की गोद में बसे इस प्राचीन ज्योतिर्लिंग के दर्शन को लेकर देशभर के भक्तों में उत्साह चरम पर है।
कपाट खुलने की सभी तैयारी पूरी हो चुकी हैं। मंदिर को 108 कुंतल फूलों से सजाया गया है। इस दौरान मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के लिए खास इंतजाम किए गए। कपाट खुलने के अवसर पर स्थानीय तीर्थ पुरोहितों के साथ-साथ बड़ी संख्या में श्रद्धालु बाबा के धाम पहुंच चुके है। रंग बिरंगी फूलों से सजा बाबा का धाम चारों तरफ खूबसूरत छटा बिखेर रहा है ऋषिकेश, गुजरात से आई पुष्प समिति द्वारा मंदिर को सजाया गया है।
भक्तों को कपाट खुलने का इंतजार
फूलों की खुशबू श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर रही है। पूरा धाम परिसर बाबा के जयकारों से गूंज रहा है। देश-विदेश से आए भक्तों अब कपाट खुलने का इंतजार है, ताकि श्रद्धालु बाबा के दर्शन कर सके।
बारिश का सिलसिला शुरू
कपाट खुलते वक्त बाबा के धाम में जमकर बारिश हुई। इस दौरान श्रद्धालुओं ने भी बर्फबारी का खूब आनंद उठाया। हर वर्ष कपाट खुलने से पहले बाबा के धाम में इंद्रदेव प्रसन्न होते हैं और जमकर बारिश होती है वहां मौजूद तमाम श्रद्धालु सुहाने मौसम का भी लुत्फ उठा रहे हैं।
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चारों धामों की कई रोचक बातें
उत्तराखंड को देवभूमि भी कहा जाता है। यहां पर चारों धामों की कई ऐसी रोचक बाते हैं, जो आपको सोचने पर मजबूर कर देंगी। आज हम आपको बद्रीनाथ मंदिर से जुड़ी हुई कुछ रोचक बातें बताएंगे। बद्रीनाथ मंदिर चार धामों में से एक है। बद्री नाथ पूरी दुनिया में हिंदू आस्था के सर्वश्रेष्ठ मंदिरों में से एक है। चार धामों में से पहले बद्रीनाथ धाम में हर साल लाखों श्रद्धालु विश्व भर से दर्शन करने के लिए आते हैं। इस मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी से लेकर सोलहवीं शताब्दी तक हुआ था और कई सारे परिवर्तन भी हुए थे। चलिए आपको इस मंदिर की कुछ खास बातें बताते हैं।
कैसे शुरू हुई थी पूजा?
हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, बदरीनाथ की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई है। यह मूर्ति चतुर्भुज ध्यान मुद्रा में है। जब बौद्धों का प्राबल्य हुआ तब उन्होंने इसे बुद्ध की मूर्ति मानकर पूजा आरम्भ की थी। शंकराचार्य जी अपने बदरीधाम निवास के दौरान 6 महीने यहां रुके थे। इसके बाद वह केदारनाथ चले गए थे।
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कई बार पहुंचा मंदिर को नुकसान
बद्रीनाथ मंदिर को भारी बर्फबारी और बारिश के कारण कई बार नुकसान पहुंचा है, लेकिन गढ़वाल के राजाओं ने मंदिर के नवीनीकरण के साथ ही इसका विस्तार भी किया। सन् 1803 में इस क्षेत्र में आए भूकंप से मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा। आपको बता दें कि इस घटना के बाद जयपुर के राजा ने मंदिर का फिर से निर्माण करवाया था।
मंदिर के नीचे है गर्म पानी का कुंड
इस मंदिर के ठीक नीचे औषधीय गुणों से युक्त गर्म पानी का कुंड भी मौजूद है। इस कुंड के पानी में सल्फर की अच्छी खासी मात्रा पाई जाती है। श्रद्धालु भगवान बद्रीनाथ के दर्शनों से पहले इस कुंड में जरूर स्नान करते हैं। माना जाता है कि इस कुंड में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं, जो श्रद्धालुओं को चर्म रोग जैसी समस्याओं को ठीक कर देते हैं। भगवान बद्रीविशाल के इस मंदिर का उल्लेख तमाम प्राचीन हिंदू ग्रंथों में मिलता है। इन ग्रंथों में भागवत पुराण, स्कंद पुराण और महाभारत आदि प्रमुख हैं।
Published By : Nidhi Mudgill
पब्लिश्ड 1 May 2025 at 19:21 IST