अपडेटेड 17 December 2025 at 16:30 IST
Karnataka: नौसैनिक अड्डे के पास समुद्र तट पर आराम फरमा रहा था प्रवासी सीगल, पीठ पर लगा था GPS डिवाइस, चीन कर रहा जासूसी या फिर...
GPS Tracker on Bird: उत्तरा कन्नड़ के कारवार में GPS ट्रैकर वाली प्रवासी सीगल मिला है और इसका कनेक्शन चीन से जुड़ रहा है। क्या यह जासूसी के लिए भेजा गया है या वैज्ञानिक अध्ययन के लिए इसका इस्तेमाल हो रहा था? वन विभाग की जांच ने क्या बताया? हम इसे समझते हैं।
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GPS Tracker on Bird: उत्तरा कन्नड़ (Uttara Kannada) के कारवार में एक प्रवासी सीगल देखा गया है, जिसपर GPS ट्रैकर लगा हुआ है। यह पक्षी थिम्मक्का गार्डन के पीछे आराम कर रहा था, जहां इसकी अजीब बनावट ने लोगों का ध्यान खींचा। करीब से देखने पर सीगल की पीठ पर एक GPS ट्रैकिंग डिवाइस लगी मिली। जिसके बाद तुरंत स्थानीय लोगों ने वन विभाग के मरीन विंग के अधिकारियों को इसकी जानकारी दी।
शुरुआती जानकारी के मुताबिक इस GPS ट्रैकर से पता चला की इसका संबंध चीन से है, ऐसे में इस खबर को चीन द्वारा पक्षियों के जरिए जासूसी (Spy Birds) वाले पहलू से भी देखा जा रहा था। लेकिन बाद में GPS ट्रैकर की डिटेल्स से जानकारी सामने आई कि, इसका संबंध चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज-रिसर्च सेंटर फॉर इको-एनवायरनमेंटल साइंसेज से है।
GPS ट्रैकर की जांच करने पर क्या मिला?
सूचना मिलने के बाद वन विभाग के अधिकारियों ने पक्षी को पकड़ा और उसकी जांच की। मिली रिपोर्ट के मुताबिक, GPS ट्रैकर की डिटेल्स से पता चलता है कि इसका संबंध चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज-रिसर्च सेंटर फॉर इको-एनवायरनमेंटल साइंसेज से है।
वन अधिकारियों की मानें तो, ऐसे GPS ट्रैकर्स का इस्तेमाल सीगल की आवाजाही, खाने के व्यवहार और माइग्रेशन पैटर्न का अध्ययन करने के लिए वैज्ञानिक रिसर्च के लिए किया जाता है। इसके बाद अधिकारियों ने बताया कि आगे की जानकारी के लिए संबंधित रिसर्च एकेडमी से संपर्क करने की कोशिश की जा रही है।
पक्षी माइग्रेशन रिसर्च! लेकिन विदेशी ट्रैकर्स से सावधानी जरूरी
प्रवासी पक्षी जैसे सीगल हर साल हजारों किलोमीटर की यात्रा करते हैं। GPS ट्रैकर्स से उनके पैटर्न का अध्ययन पर्यावरण संरक्षण में मदद करता है। ऐसे डिवाइस जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का मूल्यांकन करने में मददगार साबित होते हैं। लेकिन विदेशी ट्रैकर्स से जुड़े मामलों में सावधानी बरतना जरूरी है। सुरक्षा पहलू से भी चीन-भारत सीमा विवाद को लेकर देखा जाए तो ऐसे घटनाएं संवेदनशील हो सकती है। वहीं कई इको-एनवायरनमेंटल रिसर्च सेंटर वैश्विक अध्ययन करते हैं। इसके अलावा कारवार जैसे तटीय क्षेत्रों में प्रवासी पक्षी अक्सर देखने को मिलते हैं।
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Published By : Sujeet Kumar
पब्लिश्ड 17 December 2025 at 16:30 IST